… इसी जनता ने यूनियन-जैक को उतार फेंका था

दोलत्ती

: न्यायपालिका पर अविश्वास, पुलिस का इस्तेमाल आम आदमी के खिलाफ, अफसर बेलगाम, नीतियां चंद व्यावसायिक घरानों के हक में, सीमाएं असुरक्षित और सरकारें डींगें मारने लगी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : प्रशासन और पुलिस और प्रशासनिक ढांचे का जन्म तथा उसका चरित्र केवल सत्ता के इशारे पर काम करने के लिए होता है और हमेशा होता ही रहेगा। हुक्मरानों को समझ लेना चाहिए कि अंग्रेजों से देश को आजादी ऐसे पुलिस व प्रशासनिक ढांचे के अफसरों ने नहीं दिलाई थी, बल्कि वे तो गोरी हुकूमत के पक्ष में आम जनता के अन्दोलन के खिलाफ कदमताल ही करते रहे, जनआक्रोश का दमन ही करते रहे थे और उनको प्रताडि़त ही करते रहे थे। जबकि लेकिन अंग्रेजी सरकार के निरंकुश, हिंसक और उत्पीड़नकारी रवैये के खिलाफ आम जनता का गुस्सा बेकाबू हो चुका था, उसने विक्टोरिया का यूनियन-जैक उतार फेंका था।

आजाद हिंदुस्तान की सरकारों को यह समझ लेना चाहिए कि सत्ता का अर्थ नौकरशाहों, पुलिस और चंद दरबारियों के नाम पर बैठी सरकार नहीं, बल्कि असल सत्ता का असल मतलब होता है आम आदमी। हुक्‍मरानों को यह भी समझ लेना चाहिए कि समाज में बदलाव सरकार नहीं करती है, बल्कि यह काम आम जनता की जन-अपेक्षाओं के अनुरूप लागू करती है।

यह सच हमारे हुक्मरानों को हमेशा याद करते रहना चाहिए। खास कर तब, जब सरकार के खिलाफ़ माहौल बनने लगा हो, न्यायपालिका पर अविश्वास उबलने लगा हो, पुलिस का इस्तेमाल प्रशासन के लिए नहीं बल्कि आम आदमी के खिलाफ होने लगा हो, अफसर बेलगाम और लुटेरे की शक्ल अख्तियार करने लगे हों, देश में अलगाव की आग भड़कने लगी हो, राज्यों में घरेलू स्तर पर अराजकता बढ़ने लगी हो, नीतियां चंद व्यावसायिक घरानों के हक में घेराबंदी करने लगी हों, सीमाएं असुरक्षित होने लगी हो और सरकारें डींगें मारने और सफेद झूठ बोलने में जुट गयी हों।

हुक्‍मरानों को यह बात अपने दिमाग में घुसेड़ लेना चाहिए कि कोई भी सरकार सिर्फ लुभावने नारों और झूठे वादों से ही नहीं चलती है। अगर ऐसा ही होता, तो सत्‍ता का तख्‍त यूं ही न बदलता रहता। याद रखिये कि गरीबी हटाओ के नारे को इंदिरा गांधी ने खूब भुनाया था। अनुशासन का नारा भी इंदिरा गांधी ने खूब बेचा था, लेकिन आपातकाल के नाम पर उन्‍होंने अनुशासनों की धज्जियां उड़ा डाली थीं। न्‍यायपालिका को अपनी दासी-लौंडी और चेरी में तब्‍दील कर दिया था इंदिरा गांधी ने। लेकिन उनकी सरकार का हश्र क्‍या रहा। बावजूद इसके कि इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में जो ठोस कदम उठाये थे, वह बेमिसाल और अप्रतिम भी थे।

जी हां। हुक्मरानों को हमेशा यह समझ लेना चाहिए कि बदलाव सरकार नहीं, बल्कि सरकार के तौर-तरीके से ही आम जनता तय करती है कि आइंदा वह क्या फैसला करे।

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