: सोशल मीडिया में आप जैसे मासूम परिंदों को चंगुल में फंसाने के लिए चिड़ीमारों की तादात बेहिसाब है : जरूरत उनसे भयभीत होने नहीं, उनको बेहिचक जुतियाने की है : मैसेंजर में अनजाने लोगों से ठोंक बजा कर ही वीडियो-कॉल कीजिएगा : क्या वकील, पत्रकार बड़ा अफसर अथवा बिल्डर या बिजनेसमैन, अधिकांश लोग ऐसे चिड़ीमारों की साजिशों वाले फंदों के मारे हैं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : इश्क और जिस्मानी जरूरत अलग-अलग बातें हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन दोनों ही जरूरतों का किसी भी शख्स में खासा अहम स्थान होता है। न आप इश्क के बिना रह सकते हैं, और न ही जिस्मानी जरूरतों के बिना। ठीक उसी तरह, जैसे सांस, भूख, प्यास, वगैरह-वगैरह। सेक्स भी तो उसी श्रेणी में है, जीवन के अविभाज्य अंग की तरह। सच बात तो यही है कि ऐसा न होता, तो न आज न हम होते, और न ही आप होते। कोई प्रेम की पराकाष्ठा के साथ जिस्मानी रिश्ते स्थापित करता है, कोई स्नेह में, तो कोई बाजारू सामान के तौर पर। कोई किसी की मजबूरी में अपनी जरूरत को इस्तेमाल के तौर पर तब्दील करता है, तो कोई हिंसा थोपना शुरू कर देता है सेक्स पर।
जबकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी जरूरत में सोशल मीडिया के मैसेंजर या वाट्सऐप में उतावली के चक्कर में फंस जाते हैं। लेकिन ऐसे अधिकांश लोगों को एक जबर्दस्त झटका होता है। क्योंकि वे सोशल मीडिया में किसी भूखे मासूम चिडि़या की तरह हो जाते हैं, जिन्हें चारा फेंक कर बेहिसाब चिड़ीमार लोग मौजूद होते हैं, जो उनकी जिस्मानी जरूरतों को उनकी सबसे बड़ी कमजोर नस समझ उसको दुहना शुरू कर देते हैं। ऐसे मासूम भूखे परिंदों को जाल में फंसा कर ऐसे चिड़ीमार लोग उस चिडि़या को सोशल मीडिया ही नहीं, उनके घर, परिचित क्षेत्र, समाज और उनके दफ्तर में ही सार्वजनिक रूप से नंगा कर देने की धमकी देते हैं। कई लोगों के साथ तो यह आत्महत्या की कगार तक में पहुंचा देते हैं ऐसे चिड़ीमार धोखेबाज।
मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है। लेकिन मैंने ऐसे चिड़ीमार गिरोह को इतना बड़ा झटका दे दिया, कि वे खुद ही अपना बोरिया-बिस्तर लेकर मेरे सोशल-मीडिया से भाग निकले। लेकिन कुमार सौवीर जरा अलग मिट्टी के बने हैं। उन्हें धमका पाना फिलहाल किसी के वश की बात अब तक नहीं हो पाया है।
लखनऊ में एक मित्र हैं, हाईकोर्ट में बड़े वकील माने जाते हैं। उनके एक करीबी मित्र भी हाईकोर्ट में खासा नाम रखते हैं। आज मेरी बातचीत मेरे मित्र का संदर्भ लेकर उनके मित्र से हुई। उन्होंने अपने एक मित्र का किस्सा सुनाया। यह सज्जन सरकार में एक बड़े ओहदे पर हैं। मैंने अपनी बातचीत में अपने साथ हुए उस घटना को सिलसिलेवार बताया, और यह समझाते हुए साहस दिलाने की कोशिश की, कि यह एक सहज घटना है, ठीक उसी तरह आप पसीना आने पर रूमाल या दोपट्टे पर अपना चेहरा पोंछते हैं। पेशाब या टट्टी करने शौचालय में जाते हैं, संतानोत्पादन करते हैं, पानी का ग्लास उठाते हैं, या थाली से कौर उठा लेते हैं।
बहरहाल, समाज में ऐसे मासूम परिंदों की संख्या बेहिसाब है। हमने अपना किस्सा केवल इसी मकसद से आज फिर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है, ताकि लोग इस मसले पर अपनी झिझक खत्म करें और धोखेबाजों को करारा थप्पड़ रसीद करें। इसके बावजूद समझ में नहीं आ रहा हो उनको, तो वे सीधे मुझसे सम्बन्ध कर सकते हैं। फिलहाल, मेरे अनुभवों को फिर से पढि़ये और अपने आसपास के परिचय-क्षेत्र में शामिल लोगों को साहस देने की कोशिश कीजिए। फिलहाल तो मेरे साथ हुई घटना को देखने-समझने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए।
सोशल-मीडिया में मंडराती ब्लैकमेलर “विष-कन्याएं”
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