: फर्रुखाबाद जिला अस्पताल में जबर्दस्त हंगामा, राजी-खुशी को रेप व डॉक्टर का तनाव बना सांप्रदायिक मुद्दा : 20 जुलाई की घटना, मेडिकल जांच 24 अगस्त को: डॉक्टर का अस्पताल में चिल्लाना और तोड़फोड़ करना विक्षप्तता का सबूत : बलात्कारी को बचाने की साजिश डॉक्टर कभी भी न करेगी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : फर्रुखाबाद जिला अस्पताल में तैनात एक महिला चिकित्सक के रवैये को लेकर पूरे देश में हंगामा खड़ा होने लगा है। मसला है एक मुसलमान युवक द्वारा एक युवती के साथ बनाया गया शारीरिक संबंध, और बाद में डॉक्टर द्वारा उस युवती का मेडिकल नहीं करने का। इसी बात को लेकर फर्रुखाबाद में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। आपको बता दें कि यह महिला चिकित्सक मुसलमान बिरादरी की है, और उस पर आरोप लगाया जा रहा है कि उसने अपनी बिरादरी के युवक को बचाने के लिए युवती का मेडिकल करने से इनकार कर दिया था।
लेकिन दोलत्ती डॉट कॉम द्वारा की गयी तफतीश के मुताबिक सच तो यही है कि यह कहानी सरसरा बेबुनियाद है और उसकी बुनावट केवल सांप्रदायिक माहौल बनाने के लिए ही की जा रही है। दोलत्ती ने इस मामले में सात लोगों से बातचीत की है। इनमें दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ हैं विजय सिंह और पुलिस क्षेत्राधिकारी प्रदीप सिंह प्रमुख हैं।
घटना के अनुसार बीती 20 जुलाई को यहां की एक स्थानीय हिन्दू युवती के साथ एक मुस्लिम युवक का शारीरिक संबंध हो गया था। इसमें कोई जोर-जबर्दस्ती का केस नहीं था, जिस तरह रेप के तौर पर उसे पेश किया गया। पूरी राजी-खुशी से यह प्रेम-संबंध स्थापित हुए थे। अभी तक यह खुलासा नहीं हो पाया है कि 20 जुलाई-22 से पहले भी इन दोनों के बीच कोई ऐसे रिश्ते थे अथवा नहीं। बहरहाल, उस घटना के कुछ दिनों बाद वह युवती अपनी बहन के यहां चली गयी थी।
22 अगस्त को उसके पिता फर्रुखाबाद रेलवे स्टेशन से उसे ला कर घर ले गये थे। यह भी अब तक खुल पाया है कि वह क्यों अपनी बहन के घर गयी, अचानक गयी अथवा किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक गयी। यह भी पता नहीं चल पाया है कि वह युवती 22 अगस्त को क्यों वापस लौटी और उसके पिता उसे क्यों लेकर घर वापस लाये। लेकिन उसके बाद वह 24 अगस्त को उसके पिता ने उस युवती के साथ बलात्कार का एक मुकदमा दर्ज कराया, जिसमें युवती के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किये मुसलमान युवक को आरोपी बनाया। 24 को ही उस युवती को मेडिकल जांच के लिए पुलिसवाले जिला अस्पताल ले गये। वक्त था करीब साढ़े आठ बजे देर शाम।
घटना के अनुसार उस दौरान महिला डॉक्टर आसमां शेख की ड्यूटी थी। आसमां उस दिन सुबह आठ बजे से ही ड्यूटी पर तैनात थीं। वजह यह कि उस दिन भी वहां की चार में से एक महिला डॉक्टर अवकाश पर थीं। लगातार मरीजों की भारी भीड़, प्रसव और ऑपरेशन का भारी दबाव और एक मेडिकल जांच भी कर चुकी थीं आसमां। जानकार बताते हैं कि एक मेडिकल जांच में कुल मिला कर चार घंटों तक का वक्त लगता है। आसमां की तबियत भी खराब थी, लेकिन वह लगातार ड्यूटी पर ही तैनात रही थीं। कई भर्ती महिलाओं को प्रसव-पीड़ा शुरू हो चुकी थी, उनमें से कई महिलाओं के आपरेशन भी उन्हें करना था। काम का भारी दबाव था और आसमां लगातार जूझ ही रही थीं।
डॉ आसमां शेख के लिए यह मुमकिन नहीं था कि वे तड़प रही प्रसूति से तड़प रही महिलाओं को इग्नोर कर दें। यह भी था कि बीते 20 जुलाई की घटना के एक महीना बाद के बाद की परिस्थितियों में उस युवती की मेडिकल जांच में कोई विशेष तब्दीली नहीं पायी जा सकती थी। इसलिए उन्होंने उपरोक्त महिला को मेडिकल जांच के लिए लाये गये पुलिसवालों से कहा कि आज मेडिकल जांच करा पाना मुमकिन नहीं हो सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि वे आज के बजाय कल ही इस युवती को लेकर अस्पताल लायें। अस्पताल के एक डॉक्टर और कर्मचारियों ने बताया कि उस दिन वर्कलोड बहुत था और डॉक्टर आसमां अपसेट भी थीं। इसी बीच एक न्यूज चैनल न्यूज-24 के स्ट्रिंगर अंशुल ने वीडियो बनाना शुरू कर दिया। इस पर डॉ आसमां गुस्से में आ गयीं। जोर-जोर से चिल्लाने लगीं और उसके बाद उन्होंने हाथ उठा कर रिपोर्टर अंशुल का मोबाइल तोड़ दिया।
इस पर हंगामा खड़ा हो गया। कट्टर हिन्दूवादी लोग और संगठनों ने इस पर तूल दे दिया कि डॉक्टर आसमां मुसलमान हैं, इसलिए अपने बिरादरी के युवक को बचाने की जुगत में हैं। उन लोगों का कहना था कि अभियुक्त मुसलमान बिरादरी से आता है। इन लोगों ने ट्विटर, फेसबुक समेत सारी सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा कर दिया। मकसद सिर्फ यह कि माहौल सांप्रदायिक बन जाये।
कुछ भी हो, इस पूरे मामले में उन्होंने रेप के अभियुक्त को बचाने की कवायद कत्तई नहीं की होगी। लेकिन इतना जरूर है कि अपना आपा खो देना और तोड़-फोड़ करना किसी भी डॉक्टर पर शोभा नहीं करता है। आसमां को अगर ज्यादा मानसिक या शारीरिक दिक्कत हो रही थी तो सीएमओ या सीएमएस को कोई स्थापन्न व्यवस्था कर सकते थे। किसी भी संस्थान में समय से अधिक ड्यूटी लेना कानूनन गलत तो होता ही है, लेकिन अधिकांश मामलों में यह अक्सर होता ही रहता है। वे अपनी बात अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कह सकती थीं। लेकिन इस तरह चिल्लपों करना उनकी बेहूदगी ही थी। उनका इस तरह चिल्लाना उनकी विक्षप्तता का परिचायक बन सकता है। सवाल उठ सकता है कि जब आप अपने कमरे में इस तरह का व्यवहार कर सकती हैं, तो फिर मरीजों के प्रति आपका क्या रवैया हो सकता है।