बुत गया समर्पित डॉक्‍टरी का आखिरी चिराग, लेकिन डॉ पीवी तिवारी स्‍मृतियों में हमेशा रहेंगी

सैड सांग

: वामपंथी के नाम पर लफ्फाजी से कोसों दूर खांटी कामरेड की साक्षात मूर्ति रही हैं पुष्‍पा तिवारी : महज दो रूपयों में जीवन भर मरीजों की सेवा करती थीं डॉ तिवारी : कल गुरूवार को भैंसाकुण्‍ड में अग्नि को समर्पित होगी डॉ तिवारी की पार्थिव देह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सबसे बड़ी खबर यह कि लखनऊ के रहने वाली और महानतम वामपंथ-सेवी डॉक्‍टर पुष्‍पावती तिवारी ने इहलोह छोड़ कर हम सब की स्‍मृतियों में हमेशा-हमेशा के लिए जीवन्‍त रहने का फैसला किया है।  करीब नब्‍बे बरस की आयु में आज डॉ तिवारी ने आज कानपुर में अपना पार्थिव शरीर त्‍याग दिया। उनका लौकिक शरीर कल गुरूवार दोपहर सवा बजे भैंसाकुण्‍ड स्थित बिजली शव-दाहगृह में अग्नि को समर्पित किया जाएगा। लेकिन इसके पहले उनकी देह को दोपहर बारह बजे विधानसभा के ठीक सामने स्थित सीपीआईएम के प्रदेश मुख्‍यालय में दर्शनार्थ लाया जाएगा।

ग्‍लास्‍तनोस्‍त और पैरीस्‍त्रोइका के आगमन से यूएसएसआर यानी संयुक्‍त रूस गणराज्‍य बिखर गया, जबकि वैश्विक आर्थिक उदारीकरण की शर्तों और मलाईदार रपटीली डगर में फिसल कर श्रमिक आंदोलन का चरित्र ही बदल गया। नतीजा यह कि कम्‍युनिज्‍म आंदोलन के ढांचे चरमरा पड़े। विरोध की गड़गड़ाती जो गगनचुम्‍बी आवाजें किसी भी इजारेदार और निरंकुश सत्‍ता केंद्रों को बुरी तरह दहला देती थीं, वे धीरे-धीरे लफ्फाजियों में ही सिमटती रहीं।

लेकिन शंकरदयाल तिवारी और उन जैसे कम्युनिस्‍टों पर इस का तनिक भी असर नहीं पड़ा। यूपी सीपीएम के सचिव थे शंकरदयाल तिवारी। मूल जिला था उन्‍नाव। वहीं की रहने वाली पुष्‍पावती के साथ उनके पिता ने शंकरदयाल तिवारी से विवाह करा दिया था। श्‍वसुर भी वाम आंदोलन के घुर समर्थक थे। पुष्‍पावती ने शंकरदयाल तिवारी की राजनीति को ही नहीं, बल्कि अपने हजारों-हजार मरीजों को सम्‍भाला, उनकी देखभाल की, दवाएं कीं, और उन्‍हें स्‍वस्‍थ्‍य या आयुष उपलब्‍ध कराया। मुरलीनगर और उदयगंज के रामलीला मैदान के गेट के ठीक सामने वाली गली में डॉ पीवी तिवारी की क्‍लीनिक थी, जिसमें डॉ तिवारी सुबह से लेकर दे रात तक मरीजों की देखभाल करती थीं।

डॉक्‍टरों से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

भगवान धन्‍वन्तरि

बेहद सौम्‍य, मृदु और मितभाषी डॉक्‍टर तिवारी को गुस्‍सा तो मानो आता ही नहीं था। उन्‍हें तब भी गुस्‍सा नहीं आया, जब लोग उन्‍हें मकान किराये पर देने से कतराते थे। जबकि उन्‍हें अपने परिवार के लिए केवल पैर फैलाने भर की जरूरत थी। वे तो सर्वेंट-क्‍वार्टर तक भी खुदको सीमित कर सकती थीं। इसके लिए वे एक बार जब लखनऊ के जिलाधिकारी के पास अर्जी लगाने पहुंचीं, तो डीएम ने छूटते ही जवाब दिया:- अरे बाप। अच्‍छा तो आप कम्‍युनिस्‍ट हैं। लेकिन मैं आपकी मदद कर खुद के लिए संकट में नहीं डाल सकता।

यह हादसा सुन कर डॉ तिवारी के पिता का दिल दहल गया। उन्‍होंने डॉ तिवारी को इजाजत दी, और उसके बाद डॉ तिवारी ने अपने मायके की सम्‍पत्ति बेच कर हुसैनगंज के अड़गड़ा क्षेत्र में एक दो-मंजिला मकान बना लिया। अपनी बहन के मकान के बगल में ही।

डॉ पुष्‍पावती तिवारी केवल अपने परिवार तक ही सीमित रहती थीं, जिसमें उनके पति, बच्‍चे, खानदान, इष्‍ट-मित्र, वामपंथी, उनके परिवारीजन और उनके साथ जुड़े असंख्‍य मरीजों तथा उनके खानदान से जुड़े लोग। इससे ज्‍यादा न तो उन्‍होंने कुछ सोचा, और न ही इससे इतर उन्‍हें कोई समय भी नहीं मिल पाया।

राजधानी के हुसैनगंज में अड़गड़ा मोहल्‍ले में रहने वाली डॉ पुष्‍पावती तिवारी स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ के तौर प्रख्‍यात थीं। उन्‍होंने वामपंथियों के परिवारों को नि:शुल्‍क चिकित्‍सा मुहैया करायी। जबकि बाकी मरीजों से वे केवल दो रूपये मात्र की ही शुल्‍क वसूलती थीं। गरीब और अशक्‍त मरीजों को भी उनके क्‍लीनिक से मुफ्त इलाज और दवाएं दी जाती थीं। अपनी चिकित्‍सकीय सेवा में डॉ तिवारी ने सैकड़ों और हजारों ही नहीं, बल्कि असंख्‍य महिलाओं और परिवारों की गोद में किलकारियां सुनाने में अपना योगदान निभाया। हमारे पूरे परिवार में जन्‍मे सभी बच्‍चों के जन्‍म और उनकी देखभाल डॉ तिवारी ने ही की।

अजब-गजब दुनिया होती है आयुष चिकित्‍सकों की। अगर आप उनसे जुड़ी खबरों को देखना-बांचना चाहते हों, तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

चिकित्‍सक

डॉ तिवारी की प्रैक्टिस पर विराम तब लगा, जब उन्‍हें मस्तिष्‍क आघात पहुंचा। हालांकि स्‍मृति पर हमला नहीं हुआ था, लेकिन उनका दाहिना और उंगलियां कमजोर हो गयीं। इसके बाद से उनकी हालत गड़बड़ होने लगी थी। नतीजा वे अपनी बेटी के पास कानपुर चली गयीं। मगर अभी एक हफ्ता पहले ही वे बाथरूम में फिसल कर गिरीं, जिसमें उनका दाहिना कूल्‍हा टूट गया। हालांकि उसके बाद इस चोट पर ऑपरेशन किया गया, लेकिन कोई भी सुधार नहीं आया। और आज देर शाम करीब साढ़े नौ बजे……

डॉ तिवारी के एक बेटा और एक बेटी है। बेटा अतुल तिवारी हैं, जो मुम्‍बई में विख्‍यात लेखक और अभिनय के तौर पर अपनी धाक जमा चुके हैं। जबकि बेटी अंजलि कानपुर मेडिकल कालेज से पैथालॉजी से एमडी हासिल कर अपनी प्रैक्टिस चला रही हैं। कानपुर में ही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *