साहित्‍यकार अपने पुरस्‍कार वापस करते रहे, भाजपा प्रचंड हो गयी

सैड सांग

: अपनी औकात से बाहर निकल गये थे यह तथाकथित साहित्‍यकार और कवि : आप सिर्फ बोलते हैं, पुरस्‍कार की रकम वापस करते तो साहस जिन्‍दा रहता आपमें : जाइये, बाराबंकी, बरेली और सहानपुर हादसों पर लिखिये :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जब आप किसी पर तमाचे मारते हैं, तो उसका मकसद यह होता है कि उसे चोट पहुंचा कर उसे मजबूर कर देना कि वह अपनी करतूतों से बाज आये। लेकिन कई सींकिया पहलवान ऐसे भी होते हैं, जिनके तमाचे उठने से पहले ही उनकी उलटी कुटम्‍मस हो जाती है। इतना ही नहीं, दूर-दूर तक खड़े लोगों की हिम्‍मत भी पस्‍त हो जाती है। आशय यह कि ऐसे सींकिया पहलवान अपनी औकात से बाहर निकल कर हल्‍ला मचाते हैं।

ठीक यही तो हुआ था। मोदी की सरकार आते ही साहित्यकर्मियों में अपने पुरस्‍कार वापस करने की होड़ छेड़ दी थी। बड़ी चिल्‍ल-पों हुई। लेकिन उसके बाद सारी सिट्टी-पिट्टी गुम।

नतीजा क्‍या निकला। राजस्‍थान के अलवर में गौ-रक्षकों ने सिर्फ आशंका में एक मुसलमान युवक की हत्‍या कर दी। रोमियो स्‍क्‍वैड के नाम पर हिन्‍दू वाहिनी के लोग पूरे यूपी में कब्‍जा कर चुके हैं। इश्‍क पर खलल डालने के लिए। और अब तो दिल्‍ली तक में भाजपा का कब्‍जा हो गया उनका।

वजह जानते हैं आप?

सच बात तो यह है कि आपमें कूवत ही नहीं थी। दुनिया भर की चालें चल कर आपने सरकारी पुरस्‍कार हासिल कर खुद को साहित्‍यकार और कवि के तौर पर स्‍थापित करने की खोखली हैसियत हासिल की थी। नतीजा सामने है। पुरस्‍कार वापस का ऐलान तो आपने कर दिया था, लेकिन उसकी रकम आप दबाये-डकार मारे बैठे रहे। भेडि़या-धंसान में आपकी मिमियाती आवाज दो-चार दिन तो उचकी, लेकिन बाद में खामोशी अख्तियार कर लिया आपने।

आप में दम भी नहीं था। आप न तो समाजवादी पार्टी की सरकारी-प्रश्रय वाली असह्य गुण्‍डागर्दी के खिलाफ लिख-बोल सकते थे, न कांग्रेस के खोखलेपन पर आवाज उठा सकते थे। आप में इतना भी दम नहीं था कि आप आप-पार्टी और बसपा जैसी झगड़ालू पार्टी के खिसकते जनाधार को सूंघ कर प्रतिक्रिया कर सकते।

और तो और, जरा बाराबंकी और सहारनपुर और बरेली के हादसों पर नजर डालिये। बाराबंकी में एक कप्‍तान की खाल खिंचवाने जैसी अमानवीय धमकी दे रही है एक बदतमीज भाजपा सांसद प्रियंका सिंह रावत, लेकिन आप खामोश हैं। बरेली का एक विधायक एक बैंक-प्रबंधक को जमकर कूटने-पीटने के बाद उसका अपहरण कर लेता है, लेकिन आपकी बोलती ही बंद है। सहारनपुर के बड़े कप्‍तान के घर सैकड़ों भाजपाई हंगामा करते हैं, लेकिन आप निर्वीय खड़े हैं।

अच्‍छा एक सवाल का जवाब दीजिए कि इन भयावह हालातों पर आपने कोई भी कविता या कहानी-निबंध वगैरह लिखा भी है या नहीं ?

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