IPS तो पालतू है IAS का। साहब कहे तो भौंको, वर्ना कोने में सड़ो

मेरा कोना

: सर्विसेज की तैयारी कर रहे एक मेधावी युवक ने मेरी बिटिया डॉट कॉम से शेयर की अपनी भावनाएं : पहले तो सपने में भी दिखता था वर्दी पर सजा मैं और मेरा व्‍यक्तित्‍व : अब चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन आईपीएस नहीं बनूंगा : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- 29 :

नई दिल्‍ली : बचपन से जबसे होश सम्भाला था हमेशा से एक ही सपना था की बड़ा होकर police officer बनूँगा। अक्षय कुमार की फ़िल्मों का ऐसा शौक़ था कि मन करता की police inspector बनूँगा। फिर पिता जी ने समझाया “बेटा inspector नहीं police में ही जाना है तो आई॰पी॰एस॰ बनना”। बस फिर क्या था हो गया भूत सवार की आई॰पी॰एस॰ बनना है। बाक़ी लड़कों से पूछा जाता क्या बनोगे तो लड़का लोग बोलते डॉक्टर बनेंगे engineer बनेंगे कुछ बोलते आई॰ए॰एस॰ बनेंगे पर हम अलग थे। हम बोलते आई॰पी॰एस॰ बनना है। जो सुनता वो चौंक जाता। सब कहते बनना है तो आई॰ए॰एस॰ बनो पुलिस में क्या रखा है?

मगर हम तो ठहरे नादान,वर्दी का एसा भूत सवार की फितूर उतरने का नाम ही नही लेता था। जब भी किसी चौराहे पर किसी SP को खड़ा देखते चार सिपाही के साथ मन में एक जोश आ जाता ! वाह ! क्या जलवे हैं कप्तान साहब के…पर इस बात से तो अंजान ही थे कि क्या बीतती होगी SP साहब पर 24 घंटा duty करके।

थोड़े बड़े हुए,तो एक SSP साहब आये लखनऊ जो अपने को “encounter specialist” कहते थे। उनके तो क्या ही कहने थे। रोज अखबार में फोटो छपता-“UP का दया नायक”। बस हम तो उनके जबरा फैन हो गये। उनसे भेंट का मौका मिला तो लपक कर पैर छू लिये सम्मान भाव से। उन्होने भी काफी मोटीवेट किया और हमारा इरादा और पक्का हो गया की अब तो आई॰पी॰एस॰ बनकर ही मानेंगें। वो अलग बात है की बड़े होने पर मालूम चला कि उनके encounter आदि की जितनी हवा मीडिया में बनाई गयी थी, असल में उतना कुछ नही था।

खैर जब पूरी तरह से समझ आने की उम्र आई, तब एक एसी घटना घटी जिसने मुझे फिर से सोचने को मजबूर कर दिया की आखिर क्या पुलिस कि वो ही हैसियत है जो बचपन से मैं सोचता आया हूं?

हाल में जब सिविल सेवा परीक्षा का form आया तब उसमें सेवा की preference देनी थी। जहां सारे सार दोस्तों ने IAS भरा,मैने प्रथम पर IPS भरा। सब हैरान थे,बोले से क्या कर रहा है? पर मुझ पर कोई फर्क नही पड़ा। कुछ लड़के तो एसे भी थे जिन्होने IPS के बजाये income tax को 2nd preference दी ias के बाद। बोले साला पुलिस में कौन जायेगा उससे बेहतर income tax में नौकरी करेंगे। पर हम तो अपनी ही धुन में थे।

मेरे पिता जी एक सरकारी अफसर रहे हैं। 2009 की बात है,उन दिनों वो पश्चिम उप्र के एक जिले में तैनात थे। मैं छुट्टियों में वहीं गया हुआ था। एक दिन पिता जी के विभागीय कैबिनट मंत्री का दौरा लगा उस जिले में। मैं भी पिता जी के साथ चला गया। वहां पहुंचा तो देखा कि मंत्री जी डीएम साहब के साथ जनता दरबार लगाये बैठे थे। तभी वहां एक नेता जी आये और मंत्री जी के चरण छूकर अपने इलाके के कोतवाल की शिकायत करने लगे की कैसे वो उनके साथ “cooperate” नही कर रहा था। बस फिर क्या था डीएम साहब ने वहां मौजूद एएसपी को फर्मान सुना दिया की बुलाइये उस नामुराद कोतवाल को। कोतवाल जी पहुंचे और उनका जो सार्वजनिक सम्मान समारोह डीएम साहब ने किया वो देखने लायक था।

फिर जाते-जाते डीएम साहब ने फर्मान सुना दिया एएसपी और सीओ को-“इनके सस्‍पेंशन की संस्तुति करिये,मैं अभी कप्‍तान को बोलता हूं आर्डर निकालने को”।

ये सब देखकर मैं तो हैरान रह गया ! कहां गंगाजल का अजय देवगन और कहां ये असल ज़िंदगी का SP जिसको DM के आदेश पे चलना पड़ता है।

उसी दिन समझ आ गया था की असल ज़िंदगी में पुलिस मात्र एक कठपुतली है IAS और नेताओं के हाथ की।

आज सुबह जब आलोक रंजन का प्रकरण सामने आया है तब तो मेरा विश्वास और बढ़ गया है की आईएएस ही राजा है। आईपीएस तो दारोगा से भी नीचे है। कुछ भह हो, है तो पालतू कुत्ता ही आईएएस का। जब आईएएस कहे तब भौंको वर्ना कोने में पड़े रहो।

अब तौबा करता हूं अब IPS नही बनना है। अब तो IAS का लक्ष्य रखूंगा। सारा फितूर उतर गया आज मोक्ष प्राप्त हो गया। (क्रमश)

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