खैर, कुल बात में होगी। यह बताओ कि यह नेकलेस किसने दिया

मेरा कोना

: आखिरकार वह बड़ा बिल्डर है, जिसने इतना महंगा हार केवल तोहफे में दे डाला : यह पहला मौका है जब बड़े लोगों की ओछी बातें अब छोटे लोगों का बड़ा चटखारा बन गयीं : हीरों का बेशकीमती हार देना और कुबूल करना कोई सामान्य बात नहीं होती : इस हार ने आम आदमी के दिल-दिमाग में सिंड्रेला को जिन्दा कर दिया : अब ब्यूरोक्रेसी को देना होगा इससे जुड़े सवालों का जवाब : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- 30 :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बचपन में हर शख्स ने यह कहानी सुनी या पढ़ी ही होगी, जिसमें एक गरीब लड़की के सपने अचानक साकार हो गये और एक राजकुमार ने उसे बेशकीमती जेवर और कपड़े देकर उसे अपना लिया। लेकिन चूंकि ऐसा केवल सपना में ही मुमकिन होता है, इसलिए आज जब यूपी की ब्यूरोक्रेसी में तीस लाख से भी ज्याेदा रूपयों के हीरों के नेकलेस-सेट पर विवाद खड़ा हुआ, तो यक-ब-यक ऐसे सपने फिर से आम आदमी में जिन्दा हो गये। लेकिन यह हर्ष के बजाय अब घृणा और वितृष्णा के स्तर पर हुआ। इसके बाद से अब अनगिनत सवाल उठने शुरू हो गये, जो आखिरकार सत्ता , राजनीति और नौकरशाही को आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दे रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह उठ रहा है कि आखिर किस शख्सि से तीस लाख रूपयों का हीरों का नेकलेस-सेट उपहार में दिया। ऐसे  दौर में जब कोई किसी भिखारी को एक दमड़ी तक नहीं दे पाता है, ऐसे में अब वह कौन शख्स है जिसे इतना कीमती तोहफा बस यूं ही दे दिया। आखिर उस शख्स की इस दयानतदारी का मकसद क्या था। उसके कौन से लाभ उस शख्स से जुड़े थे। और उस शख्स ने उस तोहफे को कुबूल करके आखिर कौन सा काम उस शख्स का निपटा दिया, जिसने वह तोहफा उस अधिकारी को दे दिया।

सवाल चूंकि अब उन घटनाओं के तार को लेकर जुड़ने लगे हैं, जिसमें लखनऊ के वरिष्ठ  पुलिस अधीक्षक राजेश पाण्डेय को अचानक उनके पद से हटा दे दिया। और इतना ही नहीं, अचानक उनका तबादला भी रोका गया और फिर उसके बाद मुख्यमंत्री को खुद ट्विट करके ऐलान करने की जरूरत पड़ गयी कि लखनऊ की अगली एसएसपी मंजिल सैनी ही होंगी। इतनी उहापोह की क्या जरूरत पड़ी। आखिरकार किन ताकतों ने यह तबादला कराया, फिर किन लोगों ने उसे रूकवाया और लेकिन फिर उस तबादले पर मोहर भी लगा दी गयी।

अब इन खबरों के केंद्र में मुख्य सचिव आलोक रंजन हैं। कहने की जरूरत नहीं कि आलोक रंजन नौकरशाही के मुखिया के होने के चलते राज्यर में कानून-व्यवस्था  और मानवाधिकार संरक्षण जैसे महत्वरपूर्ण कार्य-दायित्वों के प्रमुख और जिम्मेदार भी हैं। ऐसे में अब सवाल यह उठने लगा है कि पिछले दो महीनों तक आखिरकार किन कारणों के चलते आलोक रंजन के घर के दो नौकरों पर किस आधार पर अमानवीय ताड़ना दी गयीं। क्‍यों उन्हें अवैध हिरासत में क्या रखा गया। क्याो कारण थे जब उनमें से एक ने अपनी प्रताड़ना से आजिज आकर आत्महत्या तक करने का फैसला कर लिया। हालांकि वह इसमें सफल नहीं हो पाया, लेकिन इसके बाद से ही इस खबर को तूल मिल गया।

सवाल यह है कि इस प्रताड़ना में पुलिस की भूमिका क्या था। वह क्याे कारण थे कि जब पुलिस अफसरों में यह चर्चा शुरू हो गयी कि चूंकि यह मामला बहुत ऊंचे स्तर तक का है, इसलिए उसे अब येन-केन-प्रकारेण निपटाया जाना ही श्रेयस्कर होगा। लखनऊ में तैनात एक मंझोले पुलिस अफसर के अनुसार यह राय बनी थी कि कैसे भी हो, उक्त  हीरों के सेट की कीमत नकद  अदा करा दी जाए और इसके लिए जिले भर के पुलिसवाले बाकायदा लेकिन चुपचाप चंदा वसूल कर एकत्र कर लें। लेकिन सूत्रों के मुताबिक वह तो गनीमत थी कि राजेश पाण्डेय ने ऐसा करने से सख्त मना कर दिया। हालांकि इसकी कीमत चुकाने के तौर पर राजेश पाण्डेय को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

अब मूल सवाल पर आइये। यह बूझिये कि वह शख्स  कौन है जिसने वह बेशकीमती हार कथित तौर पर आलोक रंजन की पुत्रवधू को दिया था। इस सवाल का जवाब खोजना अब सर्वाधिक महत्ववपूर्ण है। क्यों कि उसके बाद ही तय हो पायेगा कि आखिरकार उस शख्स को इतना महंगा तोहफा देने की जरूरत क्याव पड़ी और अगर दिया भी तो उसका कौन सा लाभ वह उठाया। अब तक मिली खबरों और विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक यह नेकलेस-सेट एक बड़े बिल्डर ने दिया था।

जाहिर है कि खोज अभी जारी है

(क्रमश)

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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