: पूरा परिसर जातिवाद का अखाडा़ बन गया :
एलएस बिष्ट
लखनऊ : हुजूर यह होना ही था। अंतत: डस ही लिया एससी-एसटी एक्ट ने उस नामी संस्था को जिसका अपनी गुणवत्ता के लिये दुनिया भर मे नाम रहा है। यहां पढने का सपना संजोते हैं इंजीनियरिंग के छाञ। बेहतरीन प्रतिभाओं को देने वाली यह विश्वविख्यात संस्था है आइआइटी कानपुर।
एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने चार प्रोफेसरों के खिलाफ एक्ट के तहत रिपोर्ट लिखाई है । यहां के छाञ, व दूसरे टीचर इस घटना से सन्न रह गये। पूरा परिसर जातिवाद का अखाडा़ बन गया है। आरोपित प्रोफेसरों मे डा मित्तल भी शामिल हैं जिहें प्रतिष्ठित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी मिला है।
खबर है कि ऐसे मे कई नामी प्रोफेसर संस्थान छोड़ने का मन बना रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा । इस संस्था का एक गौरव व गरिमा रही है। क्या वोट के लिये दलित कार्ड खेलने वाली मोदी सरकार इस एक्ट के दुरूपयोग को महसूस करेगी या फिर देश,समाज जाये चूल्हे भाड़े में इलेक्शन जीतने से मतलब।