: सच बोल कर अपने गले में फांसी का फंदा चूम लिया एकीकरण विभाग के सचिव ने : अखिलेश सरकार में झूठ पर मलाई की हांड़ी, सच बोलने पर फांसी : इसके पहले खुद अखिलेश यादव ने ही एक आयुक्त से पूछा था कि कितनी घूस देकर यह पोस्टिंग पाये हो : यह वाजिब सवाल है कि किसी आईएएस को जिलाधिकारी क्यों नहीं बनाया गया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह अखिलेश यादव की सरकार में सब कामधाम सिस्टम से चल रहा है। वाजिब रेट में। लेकिन गारंटीशुदा नहीं। बाकी तो छोडि़ये, सरकारी ओहदा का भी खुला रेट चल रहा है। यूपी में जिलाधिकारी की कुर्सी हथियाने के लिए बाकायदा रेट फिक्स हो चुका है। किसी भी अदने से जिले के लिए डीएम गिरी चाहने वाले आईएएस अफसर को कम से कम 70 लाख रुपये अदा करना होता है। हालांकि यूपी के बड़े ओहदों पर कमीशनखोरी की खूब खबर थी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को। हमीरपुर में इलाहाबाद मंडलायुक्त को सरेआम डांटते हुए अखिलेश ने पूछ लिया था कि कितना घूस देकर यह पोस्टिंग पाये हो तुम। लेकिन जब डीएम जैसे ओहदों को हासिल करने वाले रेट की कीमत का सार्वजनिक खुलासा अशोक कुमार ने किया तो सपा-सरकार के हाथों से तोते उड़ गये।
यह खुलासा किया है यूपी के राष्ट्रीय एकीकरण विभाग के सचिव अशोक कुमार ने। उन्होंने एक बैठक में ही ऐसे सरकारी कामधाम के रेट का खुलासा कर पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश को सन्नाटे में खड़ा कर दिया है। अब यह दीगर बात है कि अशोक कुमार ने जैसे ही यूपी के किसी भी जिलाधिकारी की कुर्सी हासिल करने के लिए खुला रेट बताने की नयी बेईमान धंधे का खुलासा किया, उप्र सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया। सपा सरकार ने इस बयान को राष्ट्रीय एकीकरण सचिव के पद पर कार्यरत अशोक कुमार के सरकारी सेवा आचरण नियमावली के उल्लंघन का आरोपी माना है और उसके तत्काल बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया।
गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से बस्ती के नोडल अधिकारी नियुक्त अशोक कुमार तीन दिवसीय दौरे पर शुक्रवार को जिले में विकास कार्यो का निरीक्षण कर रहे थे। निरीक्षण के दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा था कि डीएम बनने के लिए 70 लाख रुपये लगते हैं। यह रकम होती तो वह भी डीएम बन गए होते। अशोक कुमार यूपी प्रांतीय प्रशासनिक सेवा (पीसीएस) के जरिये सरकारी सेवा में आए हैं और प्रोन्नत होकर आईएएस बने। उन्हें 1999 बैच की वरिष्ठता हासिल है।
समाजवादी सरकार के दौरान अब तक वह मुख्यधारा के पदों पर नियुक्त नहीं किये गये हैं। उनकी टिप्पणी के संबंध में अशोक से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया मगर वह उपलब्ध नहीं हुए। इसी दौरान उन्होंने कहा कि अगर मेरे पास भी पैसा होता तो मैं भी कहीं का डीएम बन जाता। प्रदेश में जिलाधिकारी बनने के 70 लाख रुपया होना जरुरी है। मेरे पास इतना रुपया नहीं था, इसी कारण से मैं डीएम नहीं बन पाया। डीएम तो नहीं बन पाया और मैं कमिश्नर बनना नहीं चाहता।
आपको बता दें कि करीब एक साल पहले हमीरपुर में खनन के मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वहां मौजूद इलाहाबाद के मंडलायुक्त को डपटते हुए सीधे-सीधे सवाल उछाल दिया था कि:- घूस में कितनी रकम देकर यह पोस्टिंग हथियाया है तुमने।
इसके फौरन बाद ही अखिलेश सरकार ने उक्त मंडलायुक्त को निलम्बित कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद यह सवाल अनुत्तरित ही रहा कि अगर किसी मंडल के कमिश्नर की कुर्सी हासिल करने के लिए कोई आईएएस अफसर घूस देगा, तो फिर यह रकम किसे देखा। जाहिर है कि कमिश्नर के बाद सीधे मुख्य सचिव और फिर मुख्यमंत्री की कड़ी बचती है। तो सवाल यह है कि उक्त मंडलायुक्त ने अगर किसी को घूस दिया भी तो, वह रकम किसके पास गयी।