होशियार ! फर्जी खबर छापते हैं हिन्‍दी के अखबार

बिटिया खबर

: हिन्‍दुस्‍तान ने तो फर्जी ऑपरेशन की फर्जी खबर ही छाप डाली : हिन्‍दुस्‍तान, अमर उजाला, या जागरण। विश्‍वसनीयता जूतों की नोंक पर : संपादन नहीं, खौ-खौ करता है अमर उजाला का सम्‍पादक तो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : लखनऊ की पत्रकारिता में पत्रकार नहीं, बल्कि दलाल और ठेकेदारों का ही बोलबाला है। चाहे वह सम्‍पादक हो या फिर किसी समाचार संस्‍थान का रिपोर्टर, अधिकांश का दामन दागदार है। ऐसे लोग खबरों की दलाली ही नहीं, बल्कि वे खबरों को प्‍लांट करने तक का धंधा खूब करते हैं। न रिपोर्टर को खबर सूंघन-खोजने और लिखने की तमीज है और न ही खबरों को सम्‍पादित का जिम्‍मा उठाये लोगों को। उनके संस्‍थान में क्‍या चल रहा है या कौन सी खबर कौन लिख रहा है, इसका समय ही नहीं है सम्‍पादकों में।

अंग्रेजी अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने पिछली फरवरी को एक मशहूर शख्सियत की खबर में किसी दूसरे मशहूर शख्‍स की फोटो के साथ लगा दी। दरअसल, देश के प्रख्‍यात साहित्‍यकार गिरिराज किशोर जी का निधन हो गया था। इस खबर पर टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने साहित्‍यकार गिरिराज किशोर के बजाय विश्‍व हिन्‍दू परिषद के नेता आचार्य गिरिराज किशोर की फोटो छाप दी, जिनका पांच बरस पहले ही निधन हो चुका था। इस पर जब दोलत्‍ती ने सवाल उठाया तो टाइम्‍स ऑफ इंडिया के सम्‍पादक प्रवीन कुमार ने पहले तो इस गलती का ठीकरा अपने प्रशिशु उप-सम्‍पादकों पर थोपना चाहा, लेकिन जब मैंने खबर में सम्‍पादक प्रवीन कुमार को फोन कर उनकी सम्‍पादकीय भूमिका पर सवाल उठाया, तो प्रवीन कुमार ने बेहद शालीनता के साथ अपनी गलती मान ली।

लेकिन अमर उजाला के संपादक राजीव सिंह में तो तनिक भी तमीज नहीं बरामद हो पायी। पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह से जुड़ी एक खबर पर सवाल उठाने पर राजीव सिंह एकदम ही भड़क गया और बिफर कर उल्‍टा सवाल फेंकने लगा कि:- ‘आपका मकसद मुझे बदनाम करना है या फिर अमर उजाला को बदनाम करना चाहते हैं आप।‘ मैं भी साफ कह दिया कि तुम और तुम्‍हारा अखबार दोनों ही इसी लायक हो।

किसी भी हादसे पर उसके अगले दिन सारे अखबारों की प्रतियों को पढ़ लीजिए। आपको सारे आंकड़े गड़बड़ ही मिलेंगे। आप अपना माथा फोड़ने लगेंगे। साफ अहसास हो जाएगा कि यह रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि केवल सुनी-सुनी अफवाहें ही शब्‍दों में छाप देते हैं अखबार। जिम्‍मेदारी का तो कोई अहसास ही नहीं। शर्म का नाम न तो उनकी कलम में है, न उनकी भाषा या उनके चेहरे पर। सिर्फ लिख मारा, बिना सोचे-समझे कि इसका अंजाम क्‍या होगा। इसमें सभी अखबार एक-दूसरे से बाजी मारने में जुटे रहते हैं।

हिन्‍दुस्‍तान ने चार महीना पहले एक बड़ी फर्जी खबर लिख दी, कि राजधानी के एक नर्सिंग होम ने एक मरीज से 80 हजार रुपयों की उगाही तो कर ली, लेकिन उसके अपेंडिक्‍स का आपरेशन न कर सिर्फ पट्टी-मलहम लगा दिया। जब मैंने हिन्‍दुस्‍तान अखबार में मेडिकल बीट देखने वाले रजनीश को फोन किया तो उनका जवाब था कि यह खबर सुशील ने लिखी है। फोन पर संपर्क करने पर सुशील ने साफ बताया कि उन्‍हें उस नर्सिंग होम और उसके डॉक्‍टर का नाम नहीं याद है। इस पर जब मैंने हैरत जतायी कि बिना जानकारी के यह खबर कैसे लिखी गयी, तो सुशील ने वायदा किया कि वह शाम तक पूरी जानकारी दे देंगे। अगले दिन फिर वही जवाब मिली कि काम में बिजी होने के चलते वे फंसा था, लेकिन दो-तीन दिनों में जानकारी दे दूंगा।

हफ्ते बाद जब मैंने संपादक को फोन किया, तो फोन नहीं उठा। तब से हर दो-चार दिन में संपादक को फोन करता हूं, लेकिन फोन नहीं उठता है।

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