बासी तथ्यों पर लफ्फाजी की चाशनी, बेहूदा बर्फी परोसी समूह सम्पादक ने

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: नोटबंदी के सूख चुके संकटों को ताजा बनाने की कवायद की गयी पश्चिमी यूपी के विश्लेषण में : विषाक्त नदियों से भड़के कैंसर की भयावहता को केवल दो लाइनें में श्रद्धांजलियां : यूपी की शहरी सड़कों के सिकुड़ते आकार को पश्चिमी की चुनौती मान लिया सम्पादक ने :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यूपी विधानसभा चुनाव की रिपोर्टिंग करने की सलाह न जाने किसने शशि शेखर को दे डाली, कि हिन्दुस्तान अखबार के पाठकों की वाकई शामत आ चुकी है। होना तो यह चाहिए था कि बुढ़ौती के आलम में शशि शेखर अपने आफिस में बैठ कर सम्पादन करते, लेकिन अचानक उन में रिपोर्टिंग की चुल्ल भड़क गयी। लिहाजा वे चुनावी दौरे पर निकल पड़े। अब हालत यह है कि इस अखबार का पाठकों के सामने दुहरी मार पड़ रही है। सम्पादन का कामधाम तो पहले ही से पूरी तरह चौपट हो चुका था, उस पर तुर्रा यह चमका कि शशि शेखर की अधकचरी और बासी तथ्यों वाली रिपोर्ट चबाना मजबूरी हो चुकी। हर ओर बंटाढार।

ताजा मामला है कि यूपी में चल रहे विधानसभा चुनाव का। पूरे देश की नजर में यूपी का यह चुनाव बेहद अहम है। सभी समाचार संस्थानों के सम्पादकों ने अपने रिपोर्टरों को इस चुनावी दंगल का कवरेज के लिए भिड़ा दिया है। लेकिन हिन्दुस्‍तान के समूह सम्पादक शशि शेखर का मन अब चूंकि सम्पादन से उचटता जा रहा है, इसलिए वे अक्‍सर सम्पादन क्षेत्र से बाहर निकल कर अपने तेजे-तलवारें तेज करने निकल पड़ते हैं। फिलहाल वे यूपी में क्षेत्र-वार रिपोर्टिंग के लिए कमर कस फील्ड में निकल गये हैं।

फिलहाल तो शशि शेखर की कलम से “हाल-ए-दिल”, “तबले पे थाप” और “तंज” जैसे तकिया-कलाम ज्यादा ही गूंजा करते हैं। अपनी यात्रा के पहले दौर में वे एक दिन मुजफ्फरनगर से लेकर मेरठ तक की सड़क नाप गये। चाय की किसी गुमटी पर लोगों से बतियाये भी, तो नोटबंदी जैसे राख बन चुके मुद्दे पर। कैराना जैसे क्षेत्रों में लोगों के पलायन वाले भाजपाई स्टंट को उन्होंने मुख्य चुनावी मुद्दा मानने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद कि इसी चुनाव में इसी पलायन पर भाजपा ने अपने कमर कस रखी है। लेकिन शशि शेखर उसे अनदेखा करते हैं। वे पश्चिम यूपी को पूर्वांचल के मुकाबले पर सम्पन्न मानते हैं, यही सबसे बड़ी गलती है। आखिर पूर्वांचल से पश्चिम की तुलना क्यों की शशि शेखर ने। पूर्वांचल से ज्यादा गम्भीर बदहाली तो बुंदेलखंड की है, जहां गला तर करने के लिए पानी तक की समुचित व्यवस्था नहीं।

शशि शेखर की नजर में पश्चिम में काली, हिंडन, कृष्‍णा, कृष्णी जैसे छोटी नदियों के किनारे कैंसर बढ़ रहा है, लेकिन हैरत की बात है कि शशि शेखर ने आज तक हिन्दु‍स्तान अखबार को अपने अभियान में शामिल नहीं किया। पश्चिम की जिन समस्याओं को शशि शेखर प्रमुख चुनौती मानते हैं, इस चुनाव में एक भी चुनौती कैराना जैसे हादसों के मुकाबले बेहद बौनी हैं। और फिर सबसे बड़ी समस्या तो इस अखबार में सम्पादकों द्वारा सम्पादन-कर्म से विचलित होकर सीधे रिपोर्टिंग में जुट जाना ही है। जिसका नतीजा यह हो रहा है कि इस अखबार में सम्पादन की भारी ब्लंडर्स की घटनाओं का तूफान उमड़ता जा रहा है। रिपोर्टरों पर कोई लगाम नहीं। ज्यादा रिपोर्टर मनचाही खबरें प्लांट करने में जुटे हैं।

“गैंग्स आफ वासेपुर” नामक फिल्म  में एक पंच-लाइन टाइप डॉयलॉग है, जिसमें नायिका अपने बेटे को कायर साबित करते हुए झुंझलाते हुए बोलती है:- “तुमसे यह नहीं हो पायेगा।” ठीक इसी तर्ज पर देश के बड़े सम्पादकों में शामिल शशि शेखर का विश्लेषण किया जाने की अनुमति दी जाए तो शशि शेखर के सम्पादकत्व वाले अखबार हिन्दुस्तान का प्रत्येक पाठक चीत्कार-आर्तनाद कर बैठेगा कि:- शशि शेखर भाई, बहुत हो गया। अब या तो सम्पादन कर लो, और या फिर रिपोर्टिंग। एकसाथ यह दोनों काम कर पाना तुम्हारे बस का नहीं रहा। तुमसे नहीं हो पायेगा।

फिलहाल हिन्दुस्तान अखबार की खबरें पाठक-वर्ग में बाकायदा माखौल और ठेलुआपन्थी जैसी छवि में तब्दील होती जा रही हैं। पिछले कुछ वक्त में इस अखबार में खबरों के नाम पर बने मजाकों-लतीफों का जायजा लेने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

हिन्दुस्तान अखबार में दे झमाझम

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