हिजाब ! आपकी जाहिलियत का लाभ आपको क्‍यों मिले ?

बिटिया खबर

: कर्नाटक और ईरान के आंदोलन में हम तो ईरान के साथ ही रहेंगे : आतिथ्‍य-सत्‍कार में बेमिसाल कुर्द लोग अपनी औरतों को सम्‍मान नहीं देते : ईरान में शासन तो आम आदमी के खिलाफ शत्रु हो गया : मॉरल-पुलिसिंग एक अमानवीय कलंक है, उसका तत्‍काल सफाया अनिवार्य :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हिजाब पर हंगामा अब कर्नाटक से लेकर ईरान तक बेशुमार और थाना-कचेहरी से लेकर आगजनी तक पसरा चुका है। मसला मुसलमान युवतियों और महिलाओं ही नहीं, नन्हीं-मुन्नी बच्चियों तक भड़क गया है। भारत में कहीं हिजाब के समर्थन बवाल चल रहा है, तो ईरान में खिलाफ जेहाद आंदोलन चल रहा है। अब तो ईरान के साथ कुर्दिस्‍तान ने भी स्त्रियों की आजादी के खिलाफ एकसाथ कदमताल करना शुरू कर दिया है। आपको बता दें कि कुर्दिस्तान तुर्की, ईरान और इराक नामक तीन देशों में बंटा है। कुर्द लोगों के पास अपना कोई खास देश नहीं है और वे लगातार अपने लिए खुद एक देश की खोज में हैं, मगर शर्मनाक बात यह है कि इनका अतिथिसत्कार तो बेमिसाल होता है, लेकिन अपनी स्त्रियों के प्रति उनका क्‍या रवैया है, यह इन देशों में हालिया चल रहे विद्रोह को साफ देखा जा सकता है।
लेकिन असमंजस यह है कि दोनों ही महिलाएं मुसलमान है। मगर समझ में ही नहीं आ रहा है कि कुरान-हदीस को थाम कर किसके साथ खड़ी हैं, और कौन अपनी निजी आजादी के लिए फैसलाकुन जंग कर रही है? हैरत की बात है कि यह दोनों ही जगहों की महिलाएं अपनी बात स्थापित करने के लिए खून-खच्‍चर तक पर आमादा हैं। दोनों ही के पास अपने-अपने मूल्‍य हैं, और दोनों ही लोग अपने मूल्यों के लिए अडिग हैं और किसी भी कीमत पर न्याय चाहती हैं। आग भी लगाने पर आमादा हैं और खून बहाने पर भी आमादा हैं।
सच बात तो यही है कि चाहे वह ईरान समेत कुर्दिस्‍तान का माहौल हो या फिर कर्नाटक के बहाने पूरे भारत में औरतों की आजादी को पैरों तले रौंदने की साजिशें चल रही हैं। तीनों ही जगहों में मॉरल-पुलिसिंग ने सारी हदें पार कर डाली हैं। तीनों ही जगहों पर मॉरल-पुलिसिंग आंदोलनकारियों के समर्थन के बजाय, आंदोलनकारियों के खिलाफ भी जेहाद करने के लिए हरचंद कोशिशें कर रहा है। भारत में तो यह मामला दो-तरफा पॉलिटिकल हो गया है, जिसमें सरकार फिलहाल केवल मूक-दर्शक ही बनी दिख रही है, और बॉल फिलहाल अदालत के पाले में पड़ी हुई है। जबकि ईरान और कुर्दिस्‍तान में यह आम आदमी के खिलाफ सरकार की साजिशों का एक प्रत्‍यक्ष रणनीति बन चुकी है। खास बात तो यह है कि इस मामले में एक तरफ है, तो दूसरी ओर सिर्फ औरतें ही नहीं, बल्कि उनके साथ पूरे देश के पुरुष भी खड़े हो चुके हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ईरान में ऐसा इसके पहले नहीं हुआ। सन-1979 से ही ईरान का कट्टर चेहरा अचानक भड़क उठा। बावजूद इसके लिए सन-2015 में उन्‍हें हवाई जहाज चलाने की इजाजत हासिल कर ली। मगर इस पूरी आजादी 22 बरस की महसा आमिनी की हत्‍या के बाद किर्च-किर्च बिखर गयी। ईरान में बिना हिजाब के अपने परिवार के साथ पकड़ी गयी आमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत ने ईरान में ‘एंटी हिजाब’ मूवमेंट को और ज्यादा भड़काया है। अरेस्ट होने के कुछ देर बाद ही वो कोमा में चली गईं और 16 सितंबर को पुलिस कस्टडी में उनकी मौत हो गई थी. लेकिन महसा की मौत के बाद कुर्दिस्तान से लेकर तेहरान तक देश के कई इलाक़ों में विरोध प्रदर्शन भड़क गए। कुर्दिश क्षेत्र में प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सोमवार को पाँच लोगों की मौत हो गई। ईरान में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़प में 31 लोगों की मौत हो चुकी है।
पूरा ईरान दहल रहा है, लेकिन इसी बीच राष्‍ट्रपति रईसी ने शर्त रखी कि इंटरव्यू के पहले एंकर क्रिस्टीन हिजाब पहन लें, वरना वे इंटरव्‍यू नहीं देंगे। एंकर ने मांग खारिज कर दी, नतीजा उनका इंटरव्यू रद्द कर दिया गया। नतीजा साफ है कि ईरान की सरकार ने अब आम जनता और मीडिया के खिलाफ एकजुट जंग का ऐलान कर दिया है।
लेकिन अब तो सवाल यह है कि ईरान और कुर्दिस्‍तान की ताजा आग में हम कर्नाटक के आंदोलन के साथ किसके साथ खड़े हों। एक तरफ तो ईरान जैसी बेहद पढ़ी-लिखी और आजादी-पसंद महिलाओं तथा उनके साथ का अवाम वहां के क्रूर शासक के खिलाफ खड़ा हो चुका है, जबकि हमारे भारत में हिजाब को मान्‍यता दिलाने के लिए देश के कुछ हिस्‍सों में बवाल खड़ा हो गया है। तर्क दिया जा रहा है कि हिजाब का समर्थन वही समुदाय कर रहा है, जहां शिक्षा बेहद कम है, और इसलिए वे हिजाब हटाने लायक अब तक नहीं हो पाये हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि ईरान और कुर्दिस्‍तान की महिलाओं के साथ वहां के पुरुष एकसाथ सीना ताने खड़े हुए हैं लेकिन कर्नाटक समेत देश के कुछ हिस्‍सों में महिलाओं के हिजाब का आंदोलन शुरू से ही कट्टरवादी ताकतों के इशारे पर भड़कता रहा है। औरतों को आगे बढ़ा कर पुरुष पीछे होते हैं और पीठ-पीछे ही राजनीति की रोटियां सेंकते हैं।
लेकिन यह तर्क अब बेमानी है। हमें देखना ही होगा कि हम किसके साथ खड़े होना पसंद करेंगे? उनके साथ जो पढ़े-लिखे और आजादी-पसंद हैं, या फिर जो निहायत जाहिल हैं और हमेशा जाहिलाना अंदाज ही अपनाये रखना चाहते हैं। अगर आप जाहिल है, तो आपको जाहिलियत का लाभ कैसे दिया जा सकता है?

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