: बुलंदशहर के पड़ोस में ही है हापुड़, दूरी चालीस किलोमीटर : मरणासन्न हालत में है मासूम बच्ची, नाराज नागरिकों ने राजमार्ग पर लगाया जाम : अब तो समझ में नहीं आता है कि किस दरिन्दों के शासन के तले रहते हैं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ओहो अखिलेश यादव भइया,
राधे-कृष्ण राधे-कृष्ण।
क्या चल रहा है आजकल ? सरकार, उसके कारिन्दे और कार्यकर्ताओं-नेताओं का क्या हालचाल है?
अरे हां, एक बात बताना तो भूल ही गया मैं। वो बुलन्दशहर का नाम तो आपने सुना ही होगा। अरे वही जहां एक 14 साल की बच्ची और उसकी मां के साथ कई दरिन्दों के साथ हुए बलात्कार के हादसे को आपके मंत्री आजम खान ने समाजवादी पार्टी की सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने राजनीतिक साजिश के तौर पर बयान किया था। हां हां, जी हां वही बुलन्दशहर। बिलकुल अभी-अभी खबर मिली है कि उसी बुलंदशहर से 40 किलोमीटर दूर हापुड़ में चार साल की एक बच्ची के साथ कुछ अज्ञात दरिन्दों ने अपहरण करके उसके साथ बलात्कार कर उसे जंगल में फेंक दिया है।
खैर, छोडि़ये। इन खबरों में क्या रखा है। लड़कों से गलती तो हो ही जाती है। है न ?
अाप अपना सुनाइये, सुना है आपने मानसरोवर-कैलाश यात्रा की यात्रा में गये 74 तीर्थयात्रियों को दस-दस हजार रूपयों का नेग दिया है और बदले में अपनी सरकार को जिताने के लिए आशीर्वाद भी मांगा है। भई तीर्थयात्रा पर निकले हैं यह गरीब-गुरबा जैसे लोग, साधु-संन्यासी। तीन लाख से कम नहीं होती है यह यात्रा। अब इसमें सरकार अगर चंदा नहीं देगी, तो धर्म और राष्ट्र कैसे संचालित हो सकेगा। धर्म से ही तो राष्ट्र मजबूत होगा, समाज का नवनिर्माण होगा। जन-कल्याण के दरवज्जे फट्टाक से खुल जाएंगे। खुल जा सिम-सिम। है कि नहीं। खुल- मैं तो कहता हूं कि बिलकुल ठीक किया। कौन अपनी जेब से दिया है आपने, जो दुख होगा। सरकारी खजाना था, उसे खाली करना कोई अपराध तो होता नहीं है। फिकर नॉट। मस्त रहो, सायकिल पथ के नाम पर धकाधक खजाना धकाधक फूंकते रहो। नव-निर्माण की राह उसी तरह होगी। पहले सायकिल-पथ, फिर उसके बाद उस पर अवैध कब्जा। आपकी इस योजना का प्रभावी असर खूब पड़ना शुरू हो गया है।
और हां, जरा किसी बड़ी पुलिस अफसर को मौके पर भेज दीजिए। मेरी सलाह है कि पुलिस विभाग की महानिदेशक सुतापा सान्याल को भेजिए। उन्हें ऐसे मामले निपटाने-सुलटाने का खासा अनुभव है। लखनऊ के मोहनलालगंज में दो साल पहले एक युवती की रक्तरंजित और नंगी युवती की लाश की बरामदी में महामना सुतापा सान्याल जी ने अथक परिश्रम किया था। दिन-एक कर दिया था। इतना ही नहीं, जो नर-पशु दरिंदों ने पांच-सात की तादात में यह हत्या की थी उसे सुतापा सान्याल ने एक झटके में ही सिर्फ एक आदमी के मत्थे पर मढ़ दिया था। तो मेरी सलाह तो यही है कि सुतापा सान्याल से ज्यादा काबिल पुलिस अफसर आपको पूरी दुनिया में नहीं मिलेगा। चुटकियों में मामला सुलटा देंगी सुतापा बहन जी। अरे महारत है उन्हें ऐसे मामलों को ऐसे तरीके से देखने और ऐसे मामलों में ऐसे आकाओं के इशारों को समझने की।
और हां, बुलंदशहर वाली बच्ची में तो आपने एक-एक लाख रूपयों का मुआवजा दे दिया था। इसलिए हापुड़ वाला मामला आपके गले में फिर फंस जाएगा। कुछ न कुछ तो आपको करना ही पडे़गा। तो दस-पांच हजार रूपया का मुआवजा बोल दीजिए, बच्ची के इलाज के लिए। और फिर हल्के के दारोगा को टाइट कर दीजिए। वह सब कुछ खोल-निपटा देगा।
मीडिया वाले निहार मुंह बैठे रहते हैं। हर वक्त भूखे ही रहते हैं। आपका संदेशा मिल भर जाए, तो मामला चौंचक कर देंगे। उनका धंधा ही वही है। कोई धमकी देने-शेने की तो कोई बात है नहीं। मीडिया आयेगा तो सारी पुरानी हड्डी फेंक कर आयेगा, नयी की उम्मीद में लपक कर पहुंच जाएंगे। सीपों-सीपों करते बजाते पहुंच जाएंगे। और अगर कोई पत्रकार कुछ तीन-पांच करे तो फिर उसे निपटाने के लिए आप उस एक पत्रकार से कहियेगा। सीधे आप मत बोलियेगा। अपने चेले-चापड़ों से या अफसरों से कहियेगा कि जाए वहां के पत्रकारों को सेट करे। आप सीधे कहेंगे तो वह उसकी कीमत बहुत बढ़ा देगा। लेकिन वह है पक्का कारसाज। सेटिंग-गेटिंग में माहिर है। चिरकुट अफसरों में उसका खासा रंग जमा रहता है। बहुत ऊंची-ऊंची फेंकता है कि लोग फंस ही जाते हैं उसके झांसे में। उसका नाम याद न आये तो किसी भी सड़क-गली से गुजरते आदमी से पूछ लीजिएगा कि वह पत्रकार कौन है, जो हर रात दारू पीकर इलाहाबाद, लखनऊ, गाजियाबाद, दिल्ली, और जयपुर तक पीटा जाता है।
बस, आपका काम खत्तम।
जय समाजवाद, जय लोहिया, जय मुलायम