: गीता और भागवत का भावार्थ तक कण्ठस्थ हैं देवराज : पूरे विश्वविद्यालय में देवराज के निलम्बन की खबर किसी पहाड़ टूटने जैसी महसूस की गयी : आश्चर्य यह कि उप मुख्यमंत्री के निर्देश पर हुई देवराज का निलम्बन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हर सड़ते-गंधाते शैक्षिक तालाबों में केवल केएस तोमर जैसे नरभक्षी कुलसचिव ही नहीं होते हैं। बल्कि देवता समान लोग भी होते हैं ऐसे गंदे तालाबों में। मसलन कमल, और कमल-दल। जिनकी पहचान तालाब से नहीं, बल्कि उनके गुण, सौंदर्य और उनकी उपयोगिता और उपादेयता से जानी-पहचानी जाती है।
ऐसे ही एक देव-तुल्य शख्स हैं देवराज, यानी डॉक्टर देवराज। प्रतापगढ़ के रहने वाले देवराज जाति के तौर पर तो पटेल यानी कुर्मी अर्थात कूर्मि-क्षत्रिय कुल में जन्मे हैं। लेकिन शिक्षालयों के विशालकाय जगत माने जाने वाले वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुल सचिव के ओहदे पर हैं। लेकिन बिलकुल अभी-अभी खबर आयी है कि प्रदेश सरकार ने डॉक्टर देवराज को निलम्बित कर दिया है।
देवराज प्रदेश के किसी भी विश्वविद्यालय में कुल सचिव के पद पर सुशोभित करने वाले इकलौते शीर्ष अधिकारी हैं, जिन्हें डी-लिट की उपाधि हासिल है। देवराज की पहचान एक प्रशासक के तौर पर तो है ही, लेकिन उससे ज्यादा उनकी ख्याति उनकी विद्वता और सरलता को लेकर है। अपने जीवन में पारिवारिक तानाबाना पर बेहद प्रताडि़त शख्स माने जाने वाले देवराज की छवि मूलत: बेहद भावुक, खुला दिल और लोगों के प्रति स्नेही भाव रखने वालों की है। भागवत और गीता के श्लोक और उनकी व्याख्याएं उन्हें कण्ठस्थ हैं, ऐसा उन्हें जानने-पहचानने वाले शिक्षक और कर्मचारी भी मानते हैं।
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ऐसा भी नहीं कि देवराज में कोई कमी ही नहीं हो। लेकिन सच बात यही है कि जो भी उनकी कमी या गलतियां हैं, वे मूलत: उनकी सरलता के चलते ही हैं। करीब दस साल पहले जब वे कानपुर में सहायक रजिस्ट्रार हुआ करते थे, एक भीषण दुर्घटना में उनके हाथ-पैरों की हड्डियां बुरी तरह टूट गयीं। इस हादसे में उनके भाई की मौत भी हो गयी थी। उसके बाद वे डिप्रेशन में आ गये। लम्बे समय तक इलाज चला उनका। अन्तर्मुखी होते गये देवराज। बाद में उन्हें बियर पीने की लत आ गयी। ऐसा नहीं कि वे इसमें टल्ली हो जाते थे। लेकिन लोग बताते हैं कि दो-चार बार वे बियर पीकर आ गये थे दफ्तर। लेकिन कभी भी कोई बेईमानी या किसी से कोई बेअदबी उन्होंने नहीं की। हालांकि जानकार बताते हैं कि मौजूदा कुलपति से उनकी पटरी जरा कम ही खाती थी।
सच बात तो यह है कि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के तीस साल के दौरान देवराज के अलावा एक भी कुलसचिव ऐसा नहीं आया, जिस पर कोई आरोप नहीं लगा हो।
डॉ देवराज के निलम्बन की खबर से पूरे विश्वविद्यालय में सन्नाटा जैसा फैल गया है। खास तौर पर यह सबसे ज्यादा लोगों में आक्रोश और निराशा का माहौल हो गया है, जब यह पता चला कि डॉ देवराज के निलम्बन का कारण प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा जैसे विद्वान का हाथ है।