हनुमान के घर लक्ष्‍मी जी का प्रवेश कराने पर हंगामा, पत्रकार समेत 14 लोगों के जेल जाने की नौबत

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: मंदिर पर जबरिया कब्‍जा करने पर आमादा थे यह बलवाई, मैंने मुकदमा कर दिया : जुल्‍फी प्रशासन वाले शहर के रूहट्टा वाले मंदिर को लेकर झगड़ा अब थाना-कचेहरी तक पहुंचा : अरे वह लफंगा है बबवा, बोले जागरण के पूर्व ब्‍यूरो चीफ : चार दिन बीत जाने के बावजूद किसी भी अखबार ने एक भी लाइन नहीं लिखी इस घटना पर :

कुमार सौवीर

जौनपुर : यह घर था गदाधारी और लाल लंगोटी वाले हनुमान जी का। साठ साल पहले रूहट्टा मोहल्‍ले के रहने वाले रघुनंदन गुप्‍ता में एक अचानक भक्ति उमड़ी, तो उन्‍होंने हनुमान जी का यह मंदिर बनवा डाला। एक होम्‍योपैथिक डॉक्‍टर के उपाध्‍याय कम्‍पाउंडर और उनकी पत्‍नी इस मंदिर की देखभाल करते थे। एक दिन उपाध्‍याय जी गोलोक चले गये तो उनका काम सम्‍भाल लिया उनके बेटे ओमप्रकाश उपाध्‍याय उर्फ बाबा ने।

इधर पूरे देश भर की मार्किट में नये-नये भगवानों और देवियों का आगमन पूरे तामा-झामा के साथ शुरू हुआ तो उनकी धमक रूहट्टा तक भी पहुंच गयी। पहले दुर्गा जी, फिर सरस्‍वती जी, फिर साईं जी, फिर, फिर, फिर, फिर न जानी का का देवी-देवता रूहट्टा का कल्‍याण करने के लिए पधारने लगे। उन सब का स्‍वागत करने के लिए यहां के बनिया और धनी-मानी और प्रभावशाली लोगों ने मामला बाउंड्री पर ही लोक-कैच कर लिया। अचानक लक्ष्‍मी जी को यहां बुलाने के लिए इन प्रभुत्‍वशालियों ने स्‍वागत गीत लिखना-गाना शुरू कर दिया। यह भी फैसला हुआ कि जो हनुमान मंदिर गुप्‍ता जी ने बनवाय दिया था, उसमें ही लक्ष्‍मी जी को भी बिराजमान करा दिया जाए। लक्ष्‍मी जी है टनाटन्‍न सम्‍पदा की महरानी, यहां रहेंगी तो जुल्‍फी प्रशासन यहां के कानून-व्‍यवस्‍था को भले ही न सम्‍भाल पाये, धनागम को सुरक्षित तो कर ही लेगा।

लेकिन बाबा को जैसे ही इसकी भनक लगी, वह गांजा की चिलम फेंक कर सीधे मंदिर के गेट पर अंगद की तरह अड़ गया। बोला:- ई लाल लंगोटे वाले का अस्‍थान बा, एहिजा कउनौ लक्षमी-मक्षमी के न रहल दिहल जाई। आवा सामने कोई भौंस— के, टंगिया चीर के केरारबीर के किन्‍नारे फेंक देबै। तुम हनुमान जी के चरित्‍तर पर दाग लगावत हवा। बुजरौ के। ई ना चली।

दरअसल, बाबा को आशंका थी कि मोहल्‍ले वाले लक्ष्‍मी जी की स्‍थापना के बहाने मंदिर पर कब्‍जा करना और उसे मंदिर के बाहर निकाल देने की साजिश कर रहे हैं। ऐसे में उसे यही रास्‍ता सुझाया कि वह मंदिर पर लक्ष्‍मी जी की प्रतिमा की स्‍थापना का विरोध करे। लेकिन बात जब गाली-गलौज तक पहुंच गयी तो मोहल्‍ले के कई लोग भी वहां जुटने लगे। बाबा भी गालियां देने लगा, तो वहां मौजूद लोगों ने भी उसे जमकर गरियाया। इसी बीच दैनिक जागरण के पूर्व ब्‍यूरो चीफ ओमप्रकाश सिंह भी भागे-भागे पहुंचे। बगल में ही उनका मकान था। गालियों की बारिश खुलेआम हो रही थीं। दोनों ही ओर से। हां हां, आदर-फादर और उनकी महिलाओं को भी नापा-तौला जा रहा था।

ओम प्रकाश सिंह की धाक-साख या जौनपुर में थी। कौन सी खबर छपनी है, या नहीं छपनी है, उन्‍हें खूब पता था। अखबार के दबंग। न जाने कितनों को दक्खिन लगाया और न जाने कितनों को मलाई चटवा दी। और यह ससुर बबवा, एकरे की मा—। आजकल बीमारी बहुत चहेंटती है ओमप्रकाश को। निदान, सुबह छह कल्‍ली लस्‍सुन निहार मुंह कूंचते हैं, जैसे किसी विरोधी को चबा रहे हों। बाकी दिन भर गरियाते हैं कि दुनिया में दो चीजों में से केवल एक ही होनी चाहिए। या तो बीमारी, या फिर लहसुन। शरीर भी सींकिया, ऐसे में गुस्‍सा बहुत आता है। बाबा की हरकतें ओमप्रकाश की बर्दाश्‍त के बाहर चली गयीं। ऐसे में जो थोड़ी-बहुत बची-खुची ताकत बची थी, उसे सहेट कर ओमप्रकाश सिंह ने उसके गाल पर थप्‍पड़ चहेट दिया।

बस फिर क्‍या था। बाबू साहेब हमरा के पीट देहलें, उनकरा के मजा चिखाइल जाई जरूर। यही नारा मन ही मन लगाते हुए बाबा गया थाने। संतरी की मुट्ठी में पचास का नोट घुसेड़ा और सीधे कोतवाल के मेज के सामने बोला:- साहब, हमारे मंदिर में लूट हो गयी। सारा गहना-पैसा-कुडिंया सब लूट गये लुटेरे। नामजद रिपोर्ट करानी है। अब आप साहब ऐसा करो कि उन सालों की गां—- में डंडा डाल दो, तब हनुमान जी को तसल्‍ली-राहत पहुंच पायेगी।

उधर थानेदार ने जब ओमप्रकाश सिंह का नाम सुना तो रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय उसे भगा दिया। लेकिन बबवा भी था बहुत खांटी। पहुंच गया अदालत, और सीजेएम के यहां अर्जी लगवा कर आदेश करा लिया पुलिस को, कि मुकदमा दर्ज करो। अब मजबूरन नगर कोतवाली ने उसकी एफआईआर दर्ज कर ली और विवेचना सौंप दी सराय पोख्‍ता चौकी के दारोगा हरीप्रकाश यादव को सौंप दी है। मैने इस मुकदमे के बारे में पूछताछ के लिए कोतवाल रामभरोसे कुशवाहा को फोन किया तो वह फुसफुसाते हुए बोले:- सर, मैं अभी मीटिंग में हूं। बाद में फोन करता हूं। अब यह अलग बात है कि वह बाद अब तक नहीं आया।

ओमप्रकाश सिंह से जैसे ही पूछा, तो उसने छूटते ही बाबा को गरियाना शुरू कर दिया। बोले: यह हरामखोर है। हमारा ही खाता है, हमें ही गरियाता है। जीना हराम कर रखा है साले ने। दिन भर लफंडई करता है और बना घूमता रहता है बाबा। साले के पास बीड़ी पीने के पैसे नहीं होते, लूट किस बात की होगी।

खैर, बाबा ने अपनी रिपोर्ट में ओमप्रकाश सिंह, दुर्गेश मौर्य, आकाश मौर्य, विनय, नंदेश अग्रहरी, पवन गुप्‍ता, श्रीत श्रीवास्‍तव, विनीत गुप्‍ता, शिवप्रसाद, ािव शंकर, नवीन गुप्‍ता, धीरज गुज्ञता, मनोज कुमार मौर्य, पंकज गुप्‍ता, बहादुर मौर्य आदि को नामजद किया है।

यह तो हुई यह इस क्षेपक की बात। लेकिन कितने शर्म की बात है कि चार दिन पहले यह रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद जौनपुर के किसी भी अखबार ने उस मामले में एक लाइन भी नहीं लिखी। कितनी बेशर्म होती जा रही है पत्रकारिता।

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