हजार-पांच सौ पत्रकार मर जायेंगे तो क्या ? सभी चाहते हैं

दोलत्ती

: मीडिया-मरकज बनते जा रहे हैं अखबार संस्थान : जंजीरों से बांधकर पत्रकारों से एजेंडे और प्रोपेगैंडा लिखवाए जाते हैं : 

अमित पांडेय

इलाहाबाद : सरकार को मीडिया के मरकजों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। हो सकता है, सरकार भी यही चाहती हो कि हजार-पांच सौ मीडियकर्मी भी अगर कोरोना की भेंट चढ़ जाएं तो क्या दिक्कत है? लेकिन यकीन मानिए आपके दुश्मन मीडिया हाउसेज में काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकार नहीं हैं। उनके हाथों को जंजीरों से बांधकर उनसे एजेंडे और प्रोपेगैंडा लिखवाए जाते हैं।
बहरहाल मुद्दा यह नहीं है। फिलहाल सोचने वाली बात यह है कि मीडियाकर्मियों को जिन अमानवीय हालातों में काम करना होता है और अपना दुख व शोषण छिपाना होता है वह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
देश के ज्यादातर मीडिया संस्थानों में साफ-सफाई, सोशल डिस्टेंसिंग और न्यूनतम वर्कफोर्स के साथ काम करने के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है, इसके अलावा मीडिया खुद तो यह बताएगा ही क्यों कि उनके मरकज में कितने जमाती ढेर हुए, ऊपर से सरकारी आंकड़ों में भी मीडियाकर्मियों को शामिल नहीं किया जा रहा है।

सैलरी काटना और जिंदगी बर्बाद करने की धमकियां तो मीडियाकर्मियों के लिए अभिवादन सूचक शब्द हैं, अपनी जिंदगी जोखिम में डालकर काम पर निकलने वाले लोगों को खुद भी नहीं पता कि वे कितना बड़ा संकट हैं और खुद कितने गहरे संकट में हैं। असल में मीडिया की नौकरी में एक अलग ही तरह का नशा होता है जो किसी शराब या अफीम में भी नहीं मिलता ऐसे में जिन्हें इसकी लत लग चुकी है उनको किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके साथ या उनके आसपास किसी के भी साथ क्या हो रहा है, लेकिन जो होश में हैं और मजबूर हैं उनको तो बोलना चाहिए, लेकिन इस मामले में मीडिया हाउसेज के मालिक बेहद शातिर हैं।

मालिकों ने होश वालों के होश ठिकाने लगाने के लिए बड़े-बड़े नशेड़ियों को बिठा रखा है जिनकी मौजदूगी ही आपको नकारात्मकता और भय से भर देती है, जब उनके मुंह से जहर निकलता है तो कोई भी होश में नहीं रह पाता।

खैर, फिलहाल सरकार से यही गुजारिश है कि आप कभी मीडीयाकर्मियों को उनका हक तो दिला नहीं सकते, कम से कम देश को बड़े संकट से बचा लें, क्योंकि जब पूरे देश में कोरोना नियंत्रण में होगा तब मीडिया के मरकज तबाही मचाएंगे। पूरे लॉकडाउन के दौरान मीडीकर्मियों ने खुला विचरण किया है और देश के हर मीडिया हाउस में कोरोना पैर पसार चुका है लेकिन मीडिया के मठाधीशों को अपनी सनक और हनक के सिवा कुछ नहीं दिखता। उन्हें लगता है कि 10 मरेंगे तो 100 उसकी जगह कम पैसे में काम करने को तैयार खड़े हैं, फिर भला क्यों इन चवन्नियां को बचाया जाए।

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