टैक्‍स से चलते सरकारी स्‍कूलों की नहीं, मिडिल क्‍लास को है अपनी जेब की फिक्र

सैड सांग

: शिक्षा व्‍यवसाय की रफ्तार में कदमताल करते मिडिल क्‍लास की चिंता अलहदा : जहां गरीब बच्‍चे पढ़ते हैं, उसकी सुधार पर धेला भी चिन्‍ता नहीं करता मध्‍य आय वर्ग : अपनी जेब कुछ हल्‍की हो सकने से अलावा कुछ सोचने को तैयार ही नहीं होते नव-धनाढ्य :

प्रभात त्रिपाठी

लखनऊ : देश के मध्‍य आय वर्ग के वर्ग चरित्र और उसकी सोच व क्रियाविधि को समझने के लिए आइये हम कुछ सवाल और कई गम्‍भीर विरोधाभास आपके सामने पेश करना चाहते हैं। इन विरोधाभासों से आपको अहसास हो जाएगा कि अपने हितों को लेकर यह वर्ग कितना संकुचित और निहायत स्‍वार्थी व्‍यवहार करता है। कहने की जरूरत नहीं कि अपने इन्‍हीं स्‍वार्थी रवैयों के चलते यह वर्ग देश के गरीब तबके के हितों से बिलकुल अलग खड़ा हो जाता है, जहां वहां चल रहे मानवीय संघर्षों से उसका लेनादेना ही हमेशा-हमेशा के लिए खत्‍म हो जाता दिखता है।

मध्य वर्ग उत्तर प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री से निजी शिक्षण संस्थानों की फीस नियन्त्रित करने की मांग कर रहा है। कहने की बात नहीं कि यह तथाकथित मध्य वर्ग निहायत ही स्वार्थी तरीके से व्यवहार करता है, और केवल अपने स्वार्थ के लिए चिंतित रहता है।

यह वर्ग टैक्स के पैसों से चलने वाले सरकारी स्कूलों के स्तर को लेकर चिंतित नजर नहीं आता क्योंकि यह उन स्कूलों का रुख ही नहीं करता। यह भी चिन्ता नहीं करता है कि जिन आर्थिक दुर्बल वर्ग के लोग इस सरकारी शिक्षा व्यवस्था के भरोसे हैं वे वहाँ इसलिए हैं क्योंकि वे फीस देने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए उनके साथ खड़ा होना जरूरी है। यह वर्ग जन सूचना अधिकार अधिनियम के इस्‍तेमाल को लेकर भी द्वेष भाव रखता है। क्योंकि उसे लगता है कि इसका बोझ तो उसी के कांधों पर आता है।

शिक्षा व्यवसाय बन चुकी है और व्यवसाय लाभ के लिए किया जाता है अतः व्यवसायियों से लाभ न लेने की अपेक्षा करना व्यर्थ है। निजीकरण का समर्थक होकर भी निजी संस्थानों पर अंकुश लगाने की मांग करते हुए यह वर्ग बड़ा ही ‘क्यूट’ दिखाई देता है।

जरूरत है कि सरकारों पर दबाव बनाया जाए कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था को स्तरीय और सक्षम बनाया जा सके। समान शिक्षा की मांग रखी जाए, सरकारी कर्मचारियों द्वारा उनके बच्चों के लिए सरकारी शिक्षा ही जरूरी की जाए।

(अपने आसपास पसरी-पसरती दलाली, पत्रकारों की अराजकता, अफसरों की लूट, नेताओं के भ्रष्‍टाचार, टांग-खिंचाई और किसी प्रतिभा की हत्‍या की साजिशें किसी भी शख्‍स के हृदय-मन-मस्तिष्‍क को विचलित कर सकती हैं। समाज में आपके आसपास होने वाली कोई भी सुखद या  घटना भी मेरी बिटिया डॉट की सुर्खिया बन सकती है। चाहे वह स्‍त्री सशक्तीकरण से जुड़ी हो, या फिर बच्‍चों अथवा वृद्धों से केंद्रित हो। हर शख्‍स बोलना चाहता है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता तक नहीं होता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया कैसी, कहां और कितनी करनी चाहिए।

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