आइये, “तमस” फिल्‍म में खोजा जाए अपनी मर्दानगी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कोई पैंतीस साल पहले बनी थी गोविंद निहलाणी की यह फिल्‍म : मुल्‍क के बंटवारा के दौर में इंसानियत के हर चेहरे को पूरी तरह बेनकाब करती हुई : सारे आईएएस अफसर रिचर्ड या उसकी पत्‍नी जैसे नहीं होते, हार-चोरी पर तांडव याद रखियेगा :

 

कुमार सौवीर

लखनऊ : देश के बंटवारे का सच बयान करती हुई एक फिल्‍म आयी थी गोविंद निहलाणी की। करीब पैंतीस साल पहले। फिलम का नाम था तमस। बेहिसाब कत्‍ल-ओ-गारत, दंगा, बलवा और हिन्‍दु व मुसलमानों में भरी पैशाचिक प्रवृत्तियों का पर्दाफाश करती हुई। बनी तमस फिल्‍म में एक घटना है।

इसमें एक अंग्रेज जिला मैजिस्‍ट्रेट की पत्‍नी महात्‍मा बुद्ध की प्रतिमा पर प्रभावित होकर प्रतिमा के प्रशान्‍त गालों को सहला रही है। अचानक जिला मैजिस्‍ट्रेट उसे देख लेता है। वह अपनी पत्‍नी की इस क्रिया के बारे में सवाल पूछता है कि:- क्‍या हो रहा है।

उसकी पत्‍नी जवाब देती है:- देख रही हूं, महसूस रही हूं। क्‍यों कोई दिक्‍कत है तुम्‍हें

जिला मैजिस्‍ट्रेट बोलता है:- नहीं। और बताओ, चल रहा है।

उसके बाद वह रिचर्ड नामक जिला मैजिस्‍ट्रेट खुद भी उस बुद्ध प्रतिमा के पास पहुंचा है। उसे देखता, सहलाता है, उसके माथे, गाल, आंख और उसकी ठुड्ढी पर अपनी उंगलियां फिराता है। उस प्रकरण पर हुए फिल्‍मांकन की तस्‍वीरें आपको खींच कर भेज रहा हूं।

अब जरा एक सवाल है मेरा इस घटनाक्रम पर। क्‍या कोई हिन्‍दुस्‍तानी, मुसलमान, हिन्‍दू, बौद्ध, नम्‍बूदरी, लिंगायत या कोई जैन पुरूष अगर अपनी पत्‍नी के ऐसे व्‍यवहार और उसके जवाब पर इतना सहज हो पाता। हर्गिज नहीं।चाहे वह प्रतिमा हो या फिर साक्षात कोई पुरूष, क्‍या कोई मर्द अपनी बीवी, प्रेमिका या किसी अन्‍य मादा के ऐसे व्‍यवहार पर इतना सहज व्‍यवहार कर सकता है। कत्‍तई नहीं।

लेकिन इसके बावजूद हम-आप में से किसी में ऐसा कोई साहस हो, तो यकीन मानिये कि आप वाकई सही अर्थों में मानवीय, सहिष्‍णु, भावुक और सच में पुरूष हैं।

लेकिन अगर आप में से किसी में भी ऐसा कोई गुण नहीं है, तो भी कोई दिक्‍कत नहीं है। निराश मत हों। कोशिश कीजिए, और तय कीजिए कि आप ऐसे गुणों को हासिल करने के लिए अथक प्रयास करेंगे।

दरअसल, इस फिल्म में उस दृश्य में एक आईसीएस अफसर और उसकी पत्नी की कहानी का जिक्र है, जो उस जिले में डिप्टी कलेक्टर यानी जिला मैजिस्ट्रेट के पद पर तैनात है। बाद में इसी आईसीएस अफसर के सेवा नाम को आजादी के बाद आईएएस के नाम पर बदल दिया गया। लेकिन इस जिक्र को लेकर इससे यह मतलब हर्गिज मत निकालियेगा कि सारे आईएएस अफसर या उनकी पत्नी भी इतनी ही सरल होती हैं।

आपको याद दिला दें कि इसी आईएएस संवर्ग के एक शीर्षस्थ अफसर और उसकी पत्नीे ने अपने दो निर्दोष कर्मचारियों को लगातार दो महीनों तक अवैध रूप से हवालात की हवा लिखा दी थी। हवालात में इन दोनों निरीह और बेकुसूर कर्मचारियों को जमकर पीटा भी गया था। उन पर आरोप यह था कि इस अफसर और उसकी पत्नीभ के नवेली बहू के बहू-भोज के मौके पर आये एक व्याक्ति ने डेढ़ करोड़ रूपयों का उपहार में दिया गया हार चोरी कर लिया है।

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