बड़ा खतरा। कांग्रेस से उलझने के बहाने केजरीवाल ने भाजपा को पप्‍पी दे डाली

मेरा कोना

: राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भाजपा भी कांग्रेस को बड़ी चुनौती मानती दिखती है : ईवीएम पर यकीन करने के आम आदमी पार्टी दरअसल भाजपा के हित-लाभ में जुटी है : सन-19 के चुनाव में भाजपा के पायंचे सिकोड़ने पर मजबूर कर रही हैं हिंसक जातीय घटनाएं :

प्रभात त्रिपाठी

लखनऊ : राजनीतिक चिल्‍ल-पों एक अलग बात होती है। ऐसी हरकतों से सामान्‍य तौर पर आम आदमी के दिमाग में यह धारणा स्‍थापित होती है कि फलां-फलां इन-इन मसलों पर उन-उन समाज के पक्ष में खड़ा होकर अमुक-अमुक दल या व्‍यक्ति का दुश्‍मन है। लेकिन राजनीतिक चालों को पहचानने वालों की राय इससे निहायत अलहदा होती है। मसलन, हाल ही ईवीएम को लेकर शुरू हुआ बवंडर। कहने की जरूरत नहीं कि एक-दूसरे की धुर विरोधी और जानी-दुश्‍मनी साधे केजरीवाल की पार्टी आआपा और नरेंद्र-शाह की भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ कुछ इस तरह का नजारा बनाते-बुनते दिखते रहे हैं, कि वे आपस में पैदाइशी विरोधी हैं। मगर इस बीच एक सवाल गजब उठ रहा है कि आखिर ईवीएम को लेकर आआपा और भाजपा ने क्‍यों खामोशी अख्तियार कर रखी है।

कहने की जरूरत नहीं कि इन दोनों दलों के बीच यही अन्‍तर्विरोध ही इन दोनों का कच्‍चा-चिट्ठा बिखरने वाली नौटंकी का खुलासा कर रहे हैं। इस हकीकत तो समझने के लिए हम आप को दो दृश्‍य दिखाना चाहते हैं, जिनसे आपके सामने यह माहौल साफ दिख जाएगा कि इनमें कौन किस करवट पर बैठा हुआ है।

एक – आम आदमी पार्टी EVM को अविश्वसनीय बताते हुए VVPAT की मांग कर रही है न कि बैलेट पेपर की। अर्थात उसके अनुसार मदरबोर्ड बदल कर वोट तो इधर उधर किए जा सकते हैं लेकिन छपने वाली पर्ची को नहीं बदला जा सकता। सॉफ्टवेयर के बारे में थोड़ी सी जानकारी रखने वाले भी समझते होंगे कि मदरबोर्ड बदल कर वोट और पर्ची दोनों मैनेज किए जा सकते हैं, मगर आम आदमी पार्टी के अनुसार शायद यह संभव नहीं है। अतः उसके अनुसार चुनाव EVM से  होना चाहिए। ध्यान रखें कि 70 में से 67 सीटें उन्होंने भी जीती थीं और EVM से ही मतदान हुआ था, तब भाजपा हारी थी तो किसी ने ईवीएम को दोषी नहीं ठहराया था।

उत्तर प्रदेश में कुछ जगह कानून व्यवस्था की हालत बहुत बिगड़ गई, कहीं जाति संघर्ष के कारण और कहीं बहुत साल बाद सत्ता मिलने के अति उत्साही समर्थकों के कारण। इन दोनों कारणों से उत्पन्न अव्यवस्था की ज्यादा चर्चा भाजपा को 2019 में नुकसान पहुंचा सकती है।

दो- जब उत्तर प्रदेश की जाति संघर्ष की खबरों ने जगह बनाना शुरू की तो आआपा ने मीडिया में सारी जगह कब्जा ली। इसके पहले भी कई बार, जब भाजपा दीर्घकालिक विपरीत परिणाम दे सकने वाले जमीनी मुद्दों पर घिरी है, आम आदमी पार्टी ने कोई न कोई जोरदार मुद्दा भाजपा या मोदी के खिलाफ छेड़ दिया और मीडिया को अपनी तरफ मोड़ लिया।

देखने पर लगता है कि भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी चुनौती कांग्रेस से लगती रही है। और आआपा भी जहाँ कांग्रेस मुकाबले में होती है या हो सकती है, वहीं ताल ठोंक कर चुनाव लड़ती दिखती है। जबकि जहां कांग्रेस लड़ाई में बाहर मानी जाती है, वहाँ के चुनावों में आआपा की दिलचस्पी ज्यादा नहीं दिखी। उदाहरण के लिए अभी हाल में हुए विधानसभा चुनावों में भी आआपा ने वहीं ताल ठोंकी जहाँ कांग्रेस मुकाबले में थी। भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा करके भाजपा को लाभ पहुँचाया।

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