एक बाल सफेद क्‍या दिखा, दशरथ ने राजपाट छोड़ दिया

दोलत्ती

: राज्यसभा के 76 प्रतिशत लोगों के बाल सफेद : चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जाए : 

हेमंत शर्मा

नई दिल्‍ली : मित्रों। फ़ेसबुक पर यदा-कदा आता हूं। इस लॉकडाउन में आप घर में बैठे हैं। खाली हैं। तो कुछ पढ़े। मित्रों का आग्रह है कि मैं लॉकडाउन के दौरान कुछ रोचक पोस्ट करूं। तो आज से “लॉक डाउन साहित्य” यानी हर रोज एक लेख आप सभी के आनंद के लिए।

केसन असि करी

आजकल मैं खासा परेशान हूँ। मेरी मुसीबत की नई वजह मेरे सफेद बाल हैं। बीच उम्र में ही ये सफेद बाल मेरी दुर्दशा करा रहे हैं। मैं जिन मित्र के साथ सुबह टहलने जाता हूँ, उनके बाल पूरे काले हैं। दो-तीन दिन मैं टहलने नहीं जा पाया। पार्क में मिलनेवाली एक महिला ने उन मित्र से पूछा, “आजकल पिताजी नहीं आ रहे हैं।” यह सुनकर मुझे झटका लगा। बेवक्त की सफेदी ने मेरी दुकान बंद करा दी। अब मुझे मध्यकालीन कवि केशवदास की पीड़ा समझ में आ रही है। ऐसे ही हादसे का शिकार होकर उन्होंने लिखा—“केशव केसन असि करी जस अरिहु न कराय। चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जाए।”

मेरे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं। कुछ उम्र का असर और कुछ आनुवंशिकता से यह विरासत मिली। इन बालों का कालापन बना रहे, इसके लिए मैंने यह तमाम नुस्खे आजमाए। पर बाल हैं कि मानते नहीं। किसी ने मुझसे कहा नाखून रगड़िए, कुछ की राय थी कि शीर्षासन कीजिए तो बाल काले रहेंगे। मैंने एक रोज शीर्षासन की भी कोशिश की। काफी मशक्कत के बाद सिर के बल खड़ा हो पाया। घर में मेरे कुत्ते को लगा कि मेरा दिमाग कुछ गड़बड़ा गया। उसने पूरे घर में बवाल मचा दिया। मुझे काटने को दौड़ा। तब से मैंने यह कसरत बंद कर दी। नाखून रगड़ना शुरू किया तो कई उँगलियों के नाखून ही उखड़ गए।

अगर बाबा रामदेव यदि पहले हुए होते, तो आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अपना प्रसिद्ध निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ नहीं लिख पाते। बाल काले करने के लिए बाबा ने समूचे राष्ट्र से जो नाखून रगड़वाए, उसमें कइयों के नाखून ही उखड़ गए। वे अब बढ़ते ही नहीं। तब आचार्य द्विवेदी लिखते क्या? मुझे रोज पार्कों में पागलपन की हद तक लोग नाखून रगड़ते मिलते हैं। यह सही है कि नाखून के नीचे जो ग्रंथियाँ और नसें हैं, उनका संबंध बालों से है। इसलिए नाखून रगड़कर बाल काला करने का चौतरफा उन्माद आजकल समाज में है। सुबह जिन पार्कों से गुजरता हूँ। वहाँ नाखून रगड़ने में लगे लोगों की एकाग्रता देख, मुझे समझ में आ गया कि इस देश में गणेशजी क्यों दूध पीते हैं।

बालों में सफेदी इस बात की सूचना है कि अब आप अपनी दुकान समेटिए। आपके समाचार समाप्त हो रहे हैं। आप राम भजन में लगें। लेकिन मैं क्या करूँ, कुदरत की यह खबर मेरे पास उम्र के पच्चीसवें बरस में ही आ गई थी, जबकि इन बालों की सेवा में मैंने कुछ उठा नहीं रखा। सालों इन्हें सिर पर ढोता रहा। मेरी खोपड़ी में अगर कुछ था तो उसे इन बालों ने खूब चूसा। हजारों शीशी तेल पी गए। कई देशों के महँगे शैंपू लगाए। फिर भी धोखा। मेरे एक चचा थे, उन्होंने सफेद बाल उखड़वाने के लिए बाकायदा एक आदमी रखा था। मैं अगर यह करूँ तो गंजा हो जाऊँगा।
मुझे इस बात से संतोष है कि भारत की संसद के उच्च सदन राज्यसभा के 76 प्रतिशत लोगों के बाल सफेद हैं। शायद वे धूप में नहीं पके हैं। पर जवानी क्या सिर्फ काले बालों का नाम है? ऋषि ययाति हों या च्यवन इन लोगों ने इस तथ्य को नकार दिया है। दूसरी तरफ काले बालों वाले भी जीवन से लाचार, बुद्धि से पैदल और शरीर से अशक्त दिखाई पड़ते हैं। यह पुरानी बात है जब काला बाल यौवन का और सफेद बाल बुढ़ापे का चिह्न माना जाता था। कुछ के बाल सफेद हो जाते हैं पर, दिल काला ही रहता है।

रामकथा गवाह है कि सिर्फ एक सफेद बाल ने इतिहास की धारा बदल दी। एक रोज राजा दशरथ को कान के पास एक बाल सफेद दिखा था। दशरथ ने राजपाट छोड़ने का एलान कर दिया। राम और भरत की किस्मत बदल गई। लक्ष्मण जरूर गेहूँ के साथ घुन की तरह पिसे। तुलसीदास लिखते हैं—‘श्रवण समीप भये सित केसा।’ पर अब यह सुनने समझने को कौन तैयार है। कुछ लौह पुरुष तो उम्र के नब्बेवें साल में भी सत्ता की दौड़ में बने रहने को व्याकुल थे।

जीवन की सच्चाई नकार चिर युवा बने रहने की ललक बड़ी दुर्दशा कराती है। मेरे एक मित्र हैं। एक बार घर लौट जाएँ तो आप उनसे दुबारा मिल नहीं सकते। वे अपने को ‘डिसमेंटल’ कर लेते हैं। सफेद बालों को छुपानेवाला ‘विग’ उतार खूँटी पर टाँगते हैं। नकली दाँत निकालकर डिब्बे में रखते हैं। आँखों से लेंस उतारते हैं। कान से मशीन निकालते हैं। पर क्या मजाल कि वे बुढ़ापे की आहट सुनने को तैयार हों। उनकी पत्नी भी शनिवार को बूढ़ी दिखती हैं। लेकिन सोमवार को जवान हो जाती हैं। इतवार उनकी रंगाई-पुताई का दिन होता है।

अपने यहाँ सफेद बालों का बाजार चाहे जितना खराब हो, पर पश्चिम में ‘ग्रे हेयर’ की बड़ी प्रतिष्ठा है। इसे परिपक्वता की निशानी मानते हैं। हालाँकि हमारे समाज में सिर्फ पके बालों को ज्ञान की गारंटी नहीं माना जाता। कबीर भी कहते हैं—‘सिर के केस उज्जल भये, अबहूँ निपट अजान’। मनुस्मृति में मनु मानते हैं—‘न तेन वृद्धो भवति वेनास्य पलितं शिर’। सिर्फ बाल सफेद हो जाने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता। पत्रकारिता में ‘ग्रे हेयर’ के फायदे हैं। आजकल कुछ आधुनिकाएँ जरूर इसे ‘सॉल्ट ऐंड पेपर स्टाइल’ कहती हैं। ‘ग्रे हेयर’ नया आकर्षण है। ‘सॉल्ट ऐंड पेपर’ फिर से चलन में आ रहा है। मैं इसी उम्मीद में जी रहा हूँ, अपने सफेद बालों के साथ।

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