: अब तो सीधे दलाली और डग्गाबाजी की प्लानिंग करते हैं नवजात पत्रकार : पत्रकारिता अब खबर के लिए नहीं, बल्कि विरोधियों का काम लगाने-कल्लाने का माध्यम : बहुत गंदा धंधा होती जा रही है पत्रकारिता – तीन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक दौर था जब दो-चार पत्रकारों की काफी-हाउस में या किसी नुक्कड़ पर बातचीत-बहस शुरू होती थी, तो उसमें देश-समाज की समस्याओं और खबरों पर बात ही बात होती थी। इन बातचीत की प्रक्रियाओं में निजी या स्वार्थ का तो लेशमात्र भी संकेत तक नहीं होता। लेकिन अब दौर बदल चुका है। अब तो सीधे-सीधे यही बात होती है कि किसने किसका माल पेल दिया, किसको किसको चूना लगाया, कौन का कौन सा अंग कल्लाय रहा है, कहां कितनी सम्भावनाएं हैं, उसमें कमीशन कितना होगा, एक ठेकेदार तो दारू की बोतल ले आ गया, लेकिन अब उसके बाद चिखना-गोश्त का आर्डर कौन देगा। और फिर उद्यापन के तौर पर पूछ लिया जाता है कि आज की क्या व्यवस्था है।
न न न। यह पत्रकार नहीं हैं, बल्कि ठग, झपटमार और लै-मार हैं। पता ही नहीं चलता कि कब किसने मित्र ने किस मित्र को अपना चूना लगा दिया और कौन किसी के साथ सहानुभूतियों वाले मलहम की शीशी लेकर घूम रहा है। आज जो साथ है, वह कब आपका काम लगा दे, पता ही नहीं चलता। हालांकि यह झपटमारी केवल अखबारों के पत्रकारों की बपौती नहीं रह गयी है, बल्कि नये-नवेले न्यूज चैनल्स के पत्रकार भी इस धंधे में अपने भाले-तेजे तेज करने में जुटे हुए हैं। इसीलिए हकीकत यही है कि यह पत्रकरिता नहीं, गंदा धंधा है।
सच बात तो यही है कि इन हाल ही पैदा हुए चैनलों और उनके सद्यस्तनपायी पत्रकारों ने लखनऊ में पत्रकरिता को बाकायदा किसी घिनौने कूडाघर के तौर पर तब्दील कर दिया है। राजधानी में जो भी बड़े चैनली-पत्रकार हैं, उनमें से अधिकांश में पत्रकारीय गुण हैं। चाहे वह शलभमणि त्रिपाठी हों, कमाल खान हों, आलोक पाण्डेय हों या फिर प्रांशू मिश्र अथवा पंकज झा। लखनऊ में मनोज रंजन त्रिपाठी को बोलते देखिये, आप दंग रह जाएंगे। किसी भी घटना-मसले पर गम्भीर और गहन मनन के बाद बोलना तो कोई मनोज से सीखे। पत्रकारीय त्वरा इन सभी में कूट-कूट कर भरी हुई है।
लेकिन इस पवित्र-पुनीत पत्रकार-कुण्ड को लगता है कि नये दौर की दलाल-पत्रकारिता ने चारोंओर से घेरना शुरू कर दिया है। इनमें वे लोग हैं जो खुद को तो ब्यूरो चीफ या एसोसियेट एडीटर से नीचे का ओहदा रखना अपना अपमान समझते हैं, लेकिन पत्रकारिता का ककहरा तक नहीं आता। खबर लिखना, बोलना या फिर डिस्कशंस में शामिल होना उनके वश की बात नहीं। हां, यह लोग विज्ञापनों के विशेषज्ञ होते हैं, गोटियां बिछाने में महारत हैं उनमें। दलाली उनके सर्वोच्च गुणों में शामिल है, बिना गालियां देने के उनकी बात ही नहीं शुरू होती। और हैरत की बात है कि यही लोग हर प्रेस-कांफ्रेंस में सबसे आगे उछलकूद करते हैं।
अब यह ऑडियो-क्लिप में दर्ज वह गालियां आपको शायद उन पत्रकारों का चेहरा साबित कर पाने में पर्याप्त हो, जो नवजात न्यूज चैनल हिन्दी खबर के मालिक अतुल अग्रवाल को उसके एसोसियेट एडीटर ने फोन पर दीं। इन ऑडियो-क्लिप को सुनने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:
यह दी भद्दी-नंगी गालियां इस पत्रकार ने अपने चैनल मालिक को-एक
यह दी भद्दी-नंगी गालियां इस पत्रकार ने अपने चैनल मालिक को- दो
ज्यों-ज्यों यूपी में चुनाव की तारीखें नजदीक आने लगी हैं, पत्रकारों और खासकर न्यूज चैनलों की पौ-बारह होती जा रही है। नये-नवेले और हाल ही पैदा हुए न्यूज चैनल इस गंदे धंधे में लगातार बैटिंग करने में आमादा हैं। इसके पहले भी कई पत्रकार बड़े अफसरों से हुई बातचीत को वायरल करने का गंदा धंधा करने में फंस चुके हैं। बहरहाल, अगले अंक में आपको हम सुनायेंगे इस बर्खास्त-शुदा सम्पादक की बोली-भाषा, जो किसी शातिर मवाली, गुण्डे और हत्यारे तक को मात दे सकती है। जी हां, अपने सम्पादक से हुई बातचीत का ऑडियो-फाइल हम वायरल करेंगे अगले अंक में। इस से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए : पत्रकारिता का गंदा धंधा