शांति बातों से नहीं, दिमाग और दिल देने-दिलाने से आती है

मेरा कोना

: संघ की वैचारिक-खाई से विपरीत धुरी पर है नरेंद्र मोदी का शंघाई संगठन संधि पर यह यूटर्न : ठीक से कोशिशें हों तो कश्मीर में ऐसे ही रास्‍ते खोल सकता है स्थायी शांति : नए सकारात्‍मक और उर्जावान विचारों के अंकुरण के साथ ही अपने दुश्‍मन समझे लोगों से दिल दिलाने से आती है शांति :

त्रिभुवन

जयपुर : शांति का पथ पाकिस्तान के साथ मिलकर निकलता है, उसे आतंकवादी घोषित करके नहीं; और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इस धारणा पर अपनी मुहर लगाई है। मोदी ने यह कदम उठाकर संघ परिवार और हिंदुत्वादियों की मूल अवधारणाओं को शीर्षासन तो करवा दिया है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक अच्छा योग है।

भारत और पाकिस्तान ने आज से शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की सदस्यता ली है, जिसे चीन की सरकार की पहल पर स्थापित किया गया है। चीन ने रूस के माध्यम से भारत और पाकिस्तान को इस संगठन में लाकर अपनी बहुत बड़ी रणनीति पर कामयाबी पाई है। वह चाहता है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तान के बीच से निकलने वाले उसके महत्वाकांक्षी चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरीडोर को कोई खतरा नहीं पहुंचे। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव अगर कल को युद्ध का रूप ले ले तो उसकी यह परियोजना तिरोहित हो सकती है। लेकिन इसमें बहुत से देशों का भला भी है। भारत का भी है।

उम्मीद ही नहीं, विश्वास है कि यह संगठन एक दिन योरोपीय युनियन जैसा एक मजबूत संगठन बनेगा और भारतीय उप महाद्वीप में शांति स्थापित होगी।

भारतीय उप महाद्वीप में शांति और समृद्धि लाने की यह राह नरेंद्र मोदी और नवाज़ शरीफ़ को ऐतिहासिक व्यक्ति बनने का अवसर दे रही है। पता नहीं, दोनों इसका फायदा उठा पाएंगे या नहीं, लेकिन मोदी बहुत महत्वाकांक्षी आैर बुद्धिमान नजर आते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि उनका आज का यह फैसला कश्मीर में स्थायी शांति भी लेकर आ सकता है।

यह उनकी पार्टी और उनके पैतृक संगठन की नीति के तो खिलाफ है, लेकिन यह कदम उस भारतीय पथ को प्रशस्त करता है, जिसे शांति और सहअस्तित्व के साथ आगे बढ़ने के संकल्प के साथ हमारे नेताओं ने आजादी के तत्काल बाद अपने हृदय में स्थापित किया था। यह राह चीन से भी हमारे शांतिपूर्ण रिश्तों को पुख्ता कर सकती है। और कहती है कि सभी को अपने-अपने अतीत के जख्म भुलाकर अपने भविष्य की बेहतर तामीर करना ही सबका लक्ष्य हो।

हैरानी नहीं, अगर जल्द ही आपको भारतीय और पाकिस्तानी सेनाएं क्रिकेट मैच की तरह युद्धाभ्यास में एक साथ दिखाई दें। क्योंकि शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन से यह संभव होने जा रहा है। इससे आपको न तो दगाबाज़ और आतंकवादी पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर मिलेगा और न ही वह आपकी पवित्र भूमि जो कम्युनिस्ट आतंकी चीन ने दबा ली है, लेकिन एक स्थायी शांति का मार्ग अवश्य प्रशस्त हो जाएगा।

आप अब तक अपने-अपने अहंकारों के लिए लड़ रहे थे, लेकिन अब आपको हकीकत की सरजमीं पर खड़े होकर यह याद आ गया है कि शांति के अलावा कोई और रास्ता आपको टिकाऊ नहीं बना सकता। आपकी समझ में यह बात आ जाए, इससे बेहतर मौका और नहीं हो सकता।

पाकिस्तानी सीमा पर तनाव और आए दिन आम नागरिकों और सैनिकों के प्राण हरने वाले खूनखच्चर के बीच शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की सदस्यता अच्छी खबर है। भारत और पाकिस्तान ने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी एससीओ की सदस्यता लेकर काबिलेतारीफ काम किया है।

मोदी के इस कदम ने साबित किया है कि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिंदुत्ववादी विचारधारा से परे सोचते हैं और उन्हें नवाज़ शरीफ से दोस्ती में भी कोई उज्र नहीं है। मोदी के इस कदम से उन अंधराष्ट्रवादियों को गहरा धक्का लगेगा, जो चाहते थे कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए। दरअसल मोदी ने शंघाई संधि की राह को अपना कर बता दिया है कि कश्मीर समस्या का हल पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करवाना नहीं, बल्कि उसके साथ मिलकर शांति स्थापित करना ही है।

लेकिन दोनों देश भारी भूल करेंगे, अगर कश्मीर की जनता की आवाज़ और उनके नुमाइंदों को पुकार को नहीं सुनेंगे। आप उस पाकिस्तान से तो बात कर सकते हैं, जिसे आए दिन आतंकवादी घोषित करने की मांग करते हैं, और जिससे आप चार युद्ध लड़ चुके हैं और जो आए दिन हमारे जवानों की हत्याएं कश्मीर में करता है, लेकिन आप अपने ही कश्मीर के लोगों से क्यों बातचीत नहीं कर सकते, जो मौका होने पर भी पाकिस्तान में शामिल नहीं हुए और भारत के साथ रहने के विकल्प को चुना। हालात कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने खराब किए तो उन बातों पर आज भाजपा की सरकार मरहम क्यों नहीं लगा सकती‌?

शंघाई संधि यूरोपीय संधि की तर्ज पर 1996 में चीन की पहल पर बना संगठन था। इसमें चीन, कज़ाकिस्तान, किरगिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान थे। चीन की पहल पर बने होने के कारण भारतीय राजनीतिक दल अब तक इसके विरोधी थे, लेकिन अब नरेंद्र मोदी ने पुरानी नीति से यूटर्न लेते हुए इस संगठन में जाने का फैसला किया है और यह अच्छा फैसला है।

इससे होगा यह कि हम एक सैनिक समझ विकसित कर सकेंगे और आए दिन की मुठभेड़ें बंद हो जाएंगी। पाकिस्तान और भारत की सेनाएं एक साथ युद्धाभ्यास करेंगी तो समझ आएगा कि दोनों देशों का बेहतर भविष्य शांति और सहयोग में है, न कि आए दिन की मुठभेड़ों और एक दूसरे के जवानों के रक्त का पिपासु बने रहने में। हम बेहतर इंटेलिजेंस सहयोग कर पाएंगे और आतंकवाद पर काबू पाना संभव होगा।

अभी तक हमारे नेता मांग करते रहे हैं कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए, लेकिन यह लोगों को मूर्ख बनाने के लिए तो कहा जा सकता है, लेकिन सचाई यही है कि हम उसके साथ सहयोग करने जा रहे हैं। दुश्मन से दोस्त बनने की यह प्रक्रिया ही दोनों देशों के स्वर्णिम भविष्य की राह है और इससे उन लोगों को मुंह की खानी पड़ेगी, जो आए दिन भारत में बैठकर पाकिस्तान को और पाकिस्तान की जमीन से भारत को कभी न सुधरने वाला घटिया पड़ाेसी घोषित करके अपने अहंकार तुष्ट करते हैं।

मुझे उम्मीद है, जल्द ही आर्मीनिया, अजरबैजान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बेलारूस, अफगानिस्तान जैसे कितने ही देश इस संगठन में आएंगे और यह यूरेशिया का यह संगठन योरोपीय यूनियन से एक बेहतर संगठन बनेगा।

मिस्र, सीरिया, इजराइयल, मालदीव, यूक्रेन और वियतनाम जैसे देशों को साथ लेकर इसके आकार को और भी विस्तार दिया जा सकता है। यह दुनिया की बेहतरी का मार्ग है और आतंकवाद से मुक्ति का भी। यह हिंसा से मुक्ति का मार्ग भी है और यह गुरबत से भी पीछा छुड़वा सकता है। अगर हम टकराव भूल जाएं और सहयोग पर आ जाएं तो हम एक नई उम्मीद बना सकते हैं। उम्मीद बहुत मजबूत है और हम इसकी बुनियाद पर जो भविष्य खड़ा करेंगे, वह एक बेहतर होगा। इसमें फौजों की अप्रासंगिता साबित होगी और सैन्य खर्च बचाकर हम गरीबी, बीमारी, मुफलिसी और तरह-तरह के रोगों से लड़ पाएंगे।

दरअसल शांति बातों से नहीं आती, शांति आती है, मन-मस्तिष्क और हृदय में नए विचारों के अंकुरण और जिससे आप लड़ रहे हो, उससे हृदय मिलाने से। इसी से समृद्धि और मैत्री के अंकुरण प्रस्फुटित होते हैं। आप विषाक्त बातें करके जहर की फसल ही काटेंगे, मैत्री और सहयोग आपको समृद्धि की शस्य श्यामला मातृभूमि का उपहार देंगे।

नये विचारों के साथ नये रास्‍ते खोजने-बताने में माहिर हैं त्रिभुवन।

राजस्‍थान में दैनिक भास्‍कर के एक संस्‍करण में सम्‍पादक है त्रिभुवन, उनका यह लेख उनके फेसबुक से साभार लिया गया है।

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