: अपनी घरेलू हज्जाम की बेटी की शादी का खर्चा जुटाने के लिए चौधरी जी ने कन्या-दान का रजिस्टर थाम लिया : एक महान किसान राजनीतिज्ञ के तौर पर अपना नाम अमर कर दिया चौधरी चरण सिंह ने : ऐसे थे चौधरी चरण सिंह, एक महान शख्सियत :
ईश्वरचंद्र भारद्वाज
आगरा : यह काफी पुराना किस्सा है, लेकिन आज भी यह किस्सा उन लोगों के लिए किसी बड़े प्रेरणा-स्तम्भ की तरह अडिग हैं, जिन्हें मानवता की पीड़ा को महसूस कर उसका सटीक और बेबाक रास्ता बनाया। लेकिन हैरत की बात है कि अपनी नौकर की पारिवारिक मांगलिक जरूरत को जिस तरह चौधरी जी ने महसूस किया, उनके बाद की संततियों के वश की बात नहीं। चौधरी अजीत सिंह के बस की भी नहीं।
जी हां, यह घटना तक की है, जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन चुके थे। पहले भी, उस वक्त भी और उसके बाद के वक्त में भी उनके साथी हमेशा उनके साथ जुड़े रहे, कोई भी फर्क नहीं पड़ा किसी पर भी। चौधरी जी की जरूरतें, और उनके आश्रित लोगों की जरूरतों को आपस में पूरी तरह समझने और उसके लिए निदान खोजने-करने के लिए कोई सानी नहीं था। तो, उस वक्त उनका पुराना नाई ही उनका घरेलू हजाम था। उस नाई की बेटी की शादी तय हो गयी तो उन्होंने चौधरी साहब को बताया। चरण सिंह जी ने बधाई दी और कोई मदद की जरूरत बताने को कहा। नाई ने कुछ हजार माँग लिए मगर चौधरी साहब के पास प्रधानमंत्री के रूप में मानदेय मिलने पर भी नाई की जरूरत के हिसाब से पैसे नहीं थे। चौधरी साहब ने कहा देख भाई पैसे अभी हैं नहीं मगर चिंता मत कर पूरी शिद्दत से शादी कर मैं खुद देख लूंगा।
नाई ने बड़ी मुश्किल से शादी का इंतजाम किया और शादी का खर्च जोड़ा तो पसीने छूट गए। शादी से दो दिन पहले चौधरी साहब से फिर बोला कि चौधरी साहब खर्चा ज्यादा होगा कैसे लोगों का कर्ज उतारूंगा ?
चौधरी साहब बोले परसों “जीमण वार वाले दिन तक सब ठीक हो जाएगा। ज्यादा नहीं सोचते”।
10 बजे खाना जीमण वार चालू हुआ।
मगर ये क्या ?
देश का प्रधानमंत्री खुद अपने नाई की बेटी का कन्या दान लिख रहा था। 10 बजे से 3 बजे तक चरण सिंह जी ने कन्यादान लिखा।
देखते ही देखते कन्यादान लाख रुपये तक पहुंच गया। सामाजिक सहयोग से गरीब कन्या की ससम्मान विदाई हुई।
ईश्वर चंद्र भारद्वाज उप्र के जल संस्थान संगठनों में बड़े ओहदों में रह चुके हैं। फिलहाल अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे आगरा में रह रहे हैं।