: मुलायम मूलत: शिक्षक हैं और आज शिक्षक-दिवस पर शिक्षक की भूमिका पर बात करना जरूरी : सवालों का उठना लाजिमी है कि आखिर सपा सरकारों में ही हिंसा से क्यों सुलग पड़ता है यूपी : मुलायम खामोश रहते तो भी महान बने रहते, लेकिन : शिक्षक दिवस को लेकर एक शिक्षक ने शिक्षक की भूमिका से ठीक उलट शिक्षा उगल डाली : मैं प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं 2 नवम्बर सन-90 को कारसेवकों पर हुई गोलीबारी का : अयोध्या में हलाक हुए और अब मथुरा में भी दर्जनों को मौत की नींद सुला दिया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह तो राजनीतिक बिसात है। हर शख्स को अपने पांसे फेंकने की आजादी है, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। आप किसी को भी अपनी पत्नी तो दूर, अपनी जनता-रियाया तक को भी दांव पर लगाने की इजाजत नहीं होती है। भले ही वह धर्मराज युधिष्ठिर ही क्यों न हों। लेकिन मुलायम सिंह अपनी आदतों से बाज नहीं आते दिख रहे हैं। हाल ही उन्होंने यह बयान दे दिया कि अयोध्या में फायरिंग उन्होंने करवायी थी, और उसमें 16 कारसेवक मारे गये थे। उनका दावा था कि अगर जरूरत पड़ती तो वह तीस कारसेवकों को मौत के घाट उतार दे सकते थे।
मुलायम सिंह यादव भी कमाल की शख्सियत हैं, जिनकी छवि एक संवेदनशील के तौर पर हमेशा बनती और बिगड़ती रहती है। लेकिन सच कहें तो बिगड़ती ज्यादा है, बनती कम। अखिलेश सरकार की शुरूआत में ही जिस तरह मुलायम सिंह ने अपना कारवां आलमबाग में एक दुर्घटनाग्रस्त बुजुर्ग को सम्भालने के लिए किया, वह बेमिसाल है। इतना ही नहीं, पीलीभीत में भाजपा के सांसद वरूण गांधी के सार्वजनिक विवादित बयान पर कार्रवाई करने के बजाय, उसे टालने की जो कोशिश मुलायम सिंह यादव ने की, वह तनावों को अनावश्यक भड़काने से रोकने की रही है। लेकिन इन दो-चार मामलो को अगर छोड़ दिया जाए तो मुलायम सिंह यादव के अधिकांश बयान और गतिविधियां ऐसी रही हैं, जिन्होंने पूरे यूपी के कानून-व्यवस्था को ही बुरी तरह डांवाडोल कर दिया।
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव स्वयं को एक शिक्षक के तौर पर ही पेश करते हैं। इतना ही नहीं, वे मूलत: शिक्षक रहे लोहिया को अपना वैचारिक शिष्य भी मानते हैं। बावजूद इसके कि लोहिया से मुलायम की कभी भी कोई भेंट नहीं रही। लोहिया वह शख्स रहे हैं जिन्होंने सोशलिस्ट पार्टी की अपनी ही केरल सरकार से इस्तीफा लेने का फैसला ले लिया था। उनका कहना था कि केरल सरकार ने ना गरिकों पर पुलिस बर्बरता को नहीं रोका। लोहिया ने अपना फैसला नहीं बदला, और पार्टी का विभाजन कुबूल कर लिया।
ऐसी महान शख्सियत का डंका बजाने वाले मुलायम सिंह यादव जब अयोध्या में पुलिस गोली-काण्ड का समर्थन और उसमें मारे गये कारसेवकों की हत्या को जायज ठहराते हैं, तो मुझे राजनीतिकों की बुद्धि पर तरस और यूपी की ऐसी घिनौनी राजनीति पर शर्म आती है। मुलायम सिंह रामसेवकों पर फायरिंग और उनकी मौतों को जायज ही नहीं ठहराते हैं, बल्कि यह भी दावा करते हैं कि उस हादसे में अगर दोगुने कारसेवक भी मारे जाते तो वे पीछे नहीं हटते।
आज शिक्षक-दिवस है। मुलायम सिंह यादव भी खुद को शिक्षक कहलाना पसंद करते हैं। वे बडे गर्व से और पूरे दर्प के साथ अपनी पीठ खुद ठोंकते रहते हैं कि वे शिक्षक हैं। लेकिन शिक्षक की भूमिका क्या होती है, मुलायम सिंह यादव इस बारे में तनिक भी सोचने-बोलने और करने की जरूरत तक नहीं समझते हैं।
अब हम आपको दिखाते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री के तौर पर अयोध्या में शिक्षकत्व की टिखटी तैयार की थी। भाजपा और हिन्दू परिषद ने तो “राम नाम सत्त” का नारा पहले से ही लगा रखा था, जब सत्ता-कामी राजनीतिक गोटियों की लालच में अयोध्या में कारसेवकों की भीड़ जुटानी शुरू कर दी थी।
जी हां, मैं हूं अयोध्या में हुए कत्ल-ओ-आम का जिन्दा-जागता गवाह-प्रत्यक्षदर्शी। करीब 26 साल पहले का हादसा है। यह नवम्बर-1990 की दूसरी तारीख थी। तब मैं दैनिक जागरण में वरिष्ठ संवाददाता के पद पर था। अब मैं आपको बताऊंगा कि अयोध्या में क्या हुआ था, क्या हो सकता था, और क्या नहीं किया गया। उस दिन मैं अपने सहयोगी उपेंद्र पाण्डेय के साथ अयोध्या में था, और मेरे ही सामने पुलिस ने चुन-चुन कर कारसेवकों पर गोली मारी थी। उस हादसे को समझने के लिए अगले दिन छपी मेरी रिपोर्ट पर बांच लीजिए।
अयोध्या में कारसेवकों पर हुई पुलिस कार्रवाई को मैं आप सब के सामने मुलायम सिंह यादव के ताजा बयानों के आइने में देखने की कोशिश करते हुए यह श्रंखलाबद्ध रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रहा हूं। इस सारी रिपोर्ट्स अब क्रमश: प्रकाशित होंगी। उन्हें देखने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं:- मुलायम सिंह यादव का दर्प बनाम कारसेवकों की हत्या