: शाहजहांपुर में मंत्री राममूर्ति वर्मा ने कत्ल कराया था, बस्ती में पत्रकारिता को रौंद कर पवन तुलस्यान ने भरे बाजार और पुलिस चौकी में पत्रकार को पीटा : सपा सरकार ने भी वर्मा को बचाया और भाजपा सरकार ने तुलस्यान की खाल बचा ली : पत्रकार डर गया तो लोकतंत्र धीरे-धीर मर जाएगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकार तो है ही मरने के लिए। चाहे वह मरे, या फिर उसका मकसद। उसका दायित्व मरे, या फिर उसकी निष्ठा। उसकी आत्मा मरे, या फिर उसके हौसले। उसकी ईमानदारी आत्महत्या कर ले, या फिर उसकी सत्यनिष्ठा। किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। और तो सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमलावर भी अपने चोले बदल-बदल कर पत्रकार और पत्रकारिता का कत्ल करने पर आमादा हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो, सरकार की कार्यशैली और उसके इरादे एक जैसे ही हैं। चाहे वह समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार की हुकूमत हो, या फिर भारतीय जनता पार्टी के योगी आदित्यनाथ की सत्ता-शासन। कत्ल तो होना ही है, चाहे वह घटनास्थल बस्ती का हो, या फिर शाहजहांपुर का।
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लक्ष्य केवल एक है, आवाज को दबा देना और अपने गिरोहों को मजबूत करना। पत्रकार और पत्रकारिता गयी भाड़ में।
नजीरें आपसे कोई छिपी नहीं हैं। सब सामने है। कम से कम दो उदाहरण तो हमारे पास हैं ही जब पत्रकारों पर हमला करने वालों को पीटने-मारने की साजिशें हुईं और जब पत्रकारों ने अपने पर हुए हमले का विरोध किया, सरकार और प्रशासन ने मिल कर उसका दम घोंट दिया।
पहला काण्ड है शाहजहांपुर का। वहां के जांबाज पत्रकार जागेंद्र सिंह ने जब वहां के ददरौल से विधायक और अखिलेश सरकार के करीबी राममूर्ति वर्मा ने अपने करीबी और तब के नगर कोतवाल श्रीप्रकाश राय को इशारा दिया। नतीजा यह हुआ कि प्रकाश राय अपनी पुलिस टीम लेकर जागेंद्र सिंह के घर छापामारी करने गया। घर चारों ओर से घेर कर पुलिसवालों ने जागेंद्र सिंह पर तेल डाल कर उसे जिन्दा फूंक डाले।
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करीब 90 फीसदी बुरी तरह झुलसे जागेंद्र ने मृत्युपूर्व बयान दिया कि उसकी हत्या की कोशिश हुई थी और यह श्रीप्रकाश वर्मा ने सुपारी ने दी थी। लेकिन अखिलेश सरकार के इशारे पर प्रशासन ने न तो राममूर्ति वर्मा पर कार्रवाई की, और न ही श्रीप्रकाश राय पर।
इस पूरे मामले में शर्मनाक पहलू यह है कि जागेंद्र सिंह को शुरू में तो शाहजहांपुर के पत्रकारों ने पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि जागेंद्र में कोई दम ही नहीं था। लेकिन जब प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया की टीम ने जब शाहजहांपुर में जांच शुरू की, तो यह हकीकत पर्द-ब-पर्द खुलती गयी कि पत्रकार वाकई पत्रकार था, और बाकी जो खुद को पत्रकार के मुखौटे लगाये बनाये घूम रहे हैं। ऐसे ही पत्रकारों ने उस हादसे के बाद से ही लगातार एक नाटक शुरू छेड़ा, वह था कि पत्रकारिता दिवस पर किसी पत्रकार को बुलाने के बजाय राममूर्ति वर्मा को कार्यक्रम का अध्यक्ष बनाना शुरू कर दिया।
ठीक यही सब तो हुआ बस्ती में। बस्ती में आरएसएस के बड़े नेता है पवन तुलस्यान, गांधी बाजार में उनकी बड़ी दूकान है। संघ और संगठन में उनकी खास धमक है, जाहिर है कि इसी दम पर तुलस्यान भाजपा संगठन और सांसद-विधायक उनकी जेब में रहते हैं।
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चार दिन पहले तुलस्यान और उसके करीब एक दर्जन गुण्डों ने हिन्दुस्तान अखबार के फोटोग्राफर अजय श्रीवास्तव को घेर लिया और दिनदहाड़े उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पीटा, जब अजय उस सड़क पर चल रहे भारी अतिक्रमण की फोटो बना रहे थे। यह घटनास्थल स्थानीय पुलिस चौकी के ठीक सामने हैं।
बताते है कि अजय भाग कर पुलिस चौकी पर पहुंचे। लेकिन तुलस्यान और उनके गुण्डे चौकी में घुसे और वहां भी उन्हें लात-घूंसों से पीट डाला। बाद में जब मामला बढ़ा, तो प्रशासन ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन तुलस्यान का नाम ही गोल कर दिया।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बस्ती के हादसे पर पत्रकार चुप ही रहे हैं। दैनिक हिन्दुस्तान के सुल्तानपुर ब्यूरो प्रमुख दिनेश दुबे ने साफ शब्दों में लिख दिया है कि :-
पत्रकार डर गया तो लोकतंत्र धीरे-धीर मर जाएगा।
पर ऐसा हो रहा है। डर-भय पैदा करने वालों को संरक्षण लोकतंत्र के विनाश का संकेत है।
यानी पत्रकारिता के तेवर और शोले दबे नहीं, बल्कि और भी भभकते दिख रहे हैं।