इकलौता चूतियापा बचा था, जागरण ने वह भी निपटा लिया

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: राम-नाम के नाम पर एक दरख्‍त को छील कर मार डालेंगे जागरण के पत्रकार : अब रामनाम जपने के लिए नहीं, विशाल वृक्ष को नोंचने के अभियान में जुटा है दैनिक जागरण : न सूत न कपास, श्रद्धालुओं की ओर बिना छीना बांस लेकर दौड़ पड़े हैं पत्रकार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जिस अखबार को पूर्णचंद्र गुप्‍त ने अपनी मेहनत से सींचा था, उसी दैनिक जागरण के पत्रकार उसी मेहनत को खोद डालने पर आमादा है। एक ताजा खबर फैजाबाद से छापी है इस अखबार ने, जिसमें रामनाम का मनन करने और उसके विशालतम अर्थों को गुनने-अपनाने की कोशिश के बजाय, अब श्रद्धालुओं से आह्वान किया जा रहा है कि:- जाओ, एक पुराने पेड़ को छील-छील कर मौत के घाट उतार डालो।

यह खबर छापी है दैनिक जागरण ने। फैजाबाद में अयोध्‍या के समीप एक गांव का एक बेहूदा, केवल कपोल-कल्पित और मूर्खतापूर्ण किस्‍सा। वृक्ष-संरक्षण की पुनीत भावना के सख्‍त खिलाफ। खबर का शीर्षक है:- छील हटाइये और कीजिए राम नाम के दर्शन

हैरत की बात है कि चार कालम में छपी इस खबर में सिरे से बकलोली की भरमार है, लेकिन इस अखबार के महान सम्‍पादकों ने इस बारे में तनिक भी उंगलियां चलाने की जहमत नहीं उठायी। इस बकवास की शुरूआत तो देखिये आप, आपके इसके प्रस्‍तुतिकरण पर शर्म आयेगी। लिखा है:- जहां डाल डाल पर सोने की चिडि़यां करती  हैं बसेरा, वह भारत देश है हमारा। जहां सत्‍य सहिंसा और धर्म का पग-प लगता डेरा, वह भारत देश है मेरा।

अब देखिये इसमें रिपोर्टर ने उसमें कितनी बेशर्मी से अपने बेहूदा तर्क घुसेड़ कर खुद को महानतम पत्रकार साबित करने की कोशिश की है। लिखा है:- इन पंक्तियों में वर्षित वैशिष्‍ट्स रामनगरी से लगे ग्राम सभा तकपुरा में भी पूरी शिद्दत से बिंबित होता है। गांव के पश्चिमी-उत्‍तरी छोर पर एक अज्ञात प्रजाति का वृक्ष है, जिसे गांव के रमराम के नाम से जानते हैं।  इसकी खासियत यह है कि इसके तने पर लगी छाल हटाने पर राम नाम अंकित दिखायी पड़ता है।

क्‍या समझे आप। यह खबर एक विशाल वृक्ष को नोंच-खसोट कर मार डालने की साजिश जैसी नहीं लग रही है आपको, जिसकी बुनियाद केवल मूर्खतापूर्ण है। उस बेहूदा बंदर की तरह, जो उस्‍तरा लेकर जहां-तहां उछलकूद कर रहा है। दैनिक जागरण का अपना एक विशालकाय पाठक-जगत है। वैसे भी आम आदमी अखबारों में छपी खबरों का सहज ही यकीन कर लेती है। चमत्‍कारों को सच समझने की पाठकों की प्रवृत्ति ऐसे स्‍थानों पर भीड़ जुटा देती है। ऐसे में अखबारों की छपी ऐसी एक भी खबर अनर्थ कर सकती है। उसे रोकना और अंधविश्‍वासों को खारिज करना पत्रकारों का सामाजिक दायित्‍व होता है।

लेकिन दैनिक जागरण के इस पत्रकार ने अपने ऐसे दायित्‍वों की हत्‍या कर दी। रघुवरशरण नामक इस पत्रकार ने केवल अफवाहों पर खबर लिख मारा है। 50 फीट ऊंचे और तीन फीट व्‍यास वाले इस पत्रकार की बात की है, लेकिन उस वृ‍क्ष की प्रजाति का अतापता तक नहीं मालूम है इस पत्रकार को। उसने लिखा है कि इस पेड़ चमत्‍कारिक है, जिसकी छाल उतारने पर तने पर रामनाम अंकित दिखता है। हैरत की बात है कि यह अखबार रामनाम के महात्‍म्‍य का गुणगान करने के बजाय अब उस पेड़ की छाल को उकेलने-छीलने की कवायद छेड़ रहा है।

खबर कितनी फर्जी है, इसकी नजीर देखिये। संवाददाता लिखता है कि इस पेड़ के सूखे पत्‍तों तक पर रामनाम दर्ज होता है। लेकिन संवाददाता का कहना है कि यहां के एक महंथ रोज सूखे पत्‍ते बोरी में भर कर सरयू में विसर्जित कर देते हैं, इसलिए संवाददाता रघुवरशरण को यहां एक भी सूखा पत्‍ता नहीं दिख पाया। खबर को धार्मिक ठप्‍पा लगाने के लिए संवाददाता ने हनुमान गढ़ी के शीर्ष महंथ ज्ञानदास को भी जबरिया घुसेड़ दिया है। बयान दिया गया है कि ज्ञानदास अब एक प्रतिनिधिमंडल को साथ लेकर तकपुरा जाएंगे और उस वृक्ष के तले अपनी आस्‍था निवेदित करेंगे।

हैरत की बात है कि फैजाबाद में ही विश्‍वविख्‍यात आचार्य नरेंद्र देव कुमारगंज कृषि विश्‍वविद्यालय है, लेकिन इस संवाददाता ने इस वृक्ष के बारे में कोई भी जानकारी लेने की जरूरत नहीं समझी। वन विभाग के लोगों से भी राय लेने की जरूरत नहीं समझी। हां, आखिर में यह उद्यान निरीक्षक पारसनाथ से जरूर कहलवा दिया कि अक्‍सर कीड़ों के चलते अंतर्वर्ती संरचना में कोई आकृति बन सकती है।

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