जालिमों ! महिला में कन्या और गाय में बैल-भ्रूण हत्या ?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

अल्ट्रा-साउंड की पिशाची करतूतें लगातार अपना दायरा बढ़ाने में जुटी

vandana tripathi : धर्म की आलोचना धरम के दायरे में करना चाहती हूँ …. अप्रासंगिक हो सकती है पर नितान्त अप्रासंगिक भी नही -जिस धर्म में गाय को पूजते हैं माँ के समान वहाँ धर्म के प्रतीक ‘बैल’ की दशा बुरी है जब से जुताई -बुआई के लिए ट्रैक्टर ईजाद हुआ है ,किसानो और घरेलू गो-पालकों का एक बड़ा तबका बैल के प्रति असंवेदनशील हो गया है, इंसानों के उलट लोग कन्या(बछिया) को जन्म देना चाहते हैं बछड़े यूं ही छोड़ दिए जाते हैं आवारा भटकने को ….सारा पूजन अर्पण मात्र स्वार्थ हित ….इस जीते जागते धर्म की दुर्दशा के प्रति किसी का ध्यान क्यों नही जाता जबकि कृषि में बैल के महत्व से कोई अनजान नही है, लगता है इंसानों की तरह जल्दी ही गायों की भी अल्ट्रा साउंड की विधि भी इजाद कर ली जायगी !

Amar Goswami : DHARAM KA MOOL ROOP KHO GYA HAI…..AADAMBAR AUR DHIKHABA KA BOL BALA BIYAPT HAI. INSHAN HAD – MASH KA LOTHDA BAN GYA HAI…SAMBEDANSHEELTA AUR MANBIYATA SE KOSO DOOR HO CHALA HAI.

Nirmal Paneri : भाई ज़माना यूज एंड थ्रो का है …..यहं तक जी वृद्ध आश्रमों के कुकुरमुत्ते की तरह उग आना ..बेल तो पशु है ..जो इन्सान और पशु के बीच के संबंधन की कहानी कहता है पर यहाँ तो ….खेर !!!!

Alok Khare : point to be noted

Amar Goswami : AAPKI POST PRASHNGIK. BICHARNIYE. CHINTNIYE HAI…..AUR MOLIK BHI…VANDNA J

Arun Mishra : not bad

Ahibaran Singh : U R WRITE CHINTA KA VISAY HE BHARAT KE LIYE

वंदना त्रिपाठी की वाल पर टिप्पणी

 

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