: पत्रकारों को तो बिलकुल कूकुर मानने पर आमादा होती है चरित्रहीन जनता : जान लीजिए कि पत्रकार क्यों होते हैं उल्लू के पट्ठे- दो : सरकारी अफसरों के यहां लुटने पर भी उफ तक नहीं करेंगे, लेकिन पत्रकारों के सामने टुकड़े फेंक डालेंगे :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह किस्सा जरा दो-टूक समझ लीजिए। हुआ यह कि एक सज्जन की जमीन का एक कानूनी लफड़ा फंसा हुआ था। फाइल एसडीएम के दफ्तर में थी। यह सज्जन ने उस मामले को निपटाने के लिए वकील को नियुक्त किया। यह भी बता दिया कि जिसमें भी हो स्याह-सफेद खर्चा आयेगा, दिया जाएगा। बस काम निपटा ही है। वकील ने बताया कि खर्चा तो 75 हजार का आयेगा। जिसमें एसडीएम को 60 हजार रूपया दिया जाएगा। लेकिन यह सज्जन इस पर बिगड़ गये, समझ गये कि यह टुटपुंजिया वकील इस मामूली काम के लिए 15 हजार रूपया पेल देना चाहता है। लेकिन वकील से तो कुछ नहीं बोले, लेकिन मन में भरा गुस्सा एसडीएम के बारे में निकाल डाला। बोले कि इत्ता खर्चा करके तो ताज महल मिल सकता है वकील साहब। दो कौड़ी का एसडीएम, और डिमांड तो देखिये साले कि 50 हजार की। अरे 25 हजार बहुत होते हैं, बस। उससे ज्यादा धेला तक नहीं दिया जाएगा। और आप वकील साहब, आप की दाढ़ी में हाथ लगा रहा हूं कि आप भी पांच हजार में मान लीजिएगा। तहसील में पांच हजार रूपया बहुत बड़ी रकम होती है भइया। पांच-सात दिन आपके घर जश्न मनता ही रहेगा। हो हो हो हो। तो यह रहा तीस हजार रूपया। बिलकुल नकद। बस, अगली पेशी में फैसला हो जाए, और मेरे हक में हो जाए, बस। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता। राज-दरबार मसाला निकालिये, गले में खराश जी अटकती लग रही है।
अगली पेशी के पहले ही वकील ने पूरा मामला एसडीएम से बयान कर दिया। नतीजा, अगली पेशी में ही केस खारिज हो गया। लेल्ले बेट्टा तिल्ली लिल्ली भों।
अब क्या था, सज्जन के सारे सपने-ख्वाब चारों खाने चित्त हो गये। तीन दिन तक मन ही मन घर में बैठ कर उन्होंने एसडीएम और वकील के नाम पर गरूण-पुराण बांचा और बेहिसाब गालियां बकीं। उसके बाद जिलाधिकारी के दफ्तर में अपील लगायी। जिले के बड़े वकील को तय किया था, तो उसने बातचीत के बाद पता करके बताया कि इसमें डेढ़ लाख रूपयों का खर्चा का आयेगा। सवा लाख रूपया तो डीएम साहब को नजराने का होगा। यह सुनते ही सज्जन के पांवों के नीचे की जमीन खिसक गयी। यह खबर मिलते ही उन्हें गश आ गया। लगा कि अभी कलेक्ट्रेट में ही चारों खाने चित्त हो जाएंगे।
बड़े वकील के बारे में भी उनका नजरिया बदल गया। समझ गये कि यह ससुरे वकील लोग साले केवल हराम की ही कमाने की जुगत में रहते हैं। इत्ते बड़े वकील हो तो जाओ, कुछ कमी-बेशी कराओ, तोड़-जोड़ करो। यह क्या कि सीधे डेढ़ लाख रूपयों की रसीद छपवाये घूम रहे हो। हराम खोर कहीं के। और फिर हाकिम तो जिले का मालिक है। वह पैसा मांग रहा है, तो उसका हक है, अख्तियार है उसे। इत्ता पढ़-लिख कर वह आला हाकिम बना है तो उसकी डिमांड जायज है। उसके खर्चा भी तो बहुत होता होगा। लेकिन तुम्हारी क्या औकात कि उस हाकिम के सामने परोसी गयी तश्तरी में से 25 हजार रूपयों का लेग-पीस खींच लेकर चबा डालोगे। बेईमानी की भी हद है, जनाब। और फिर इस बात की क्या गारंटी कि यह पूरा सवा लाख रूपया सीधे साहब की जेब में जाएगा। फिर खुद को शांत करते हुए दिल को समझाया कि भइया, डीएम आला अफसर शेर की मानिन्द होता है, दहाड़ता है, शिकार करता है। भूखा मर जाएगा, कि घास नहीं खायेगा।
लेकिन यह बात सारी बात जानते-समझते ही इन सज्जन में इतनी हैसियत नहीं थी कि वे अपने दिल के यह सारे गुबार वकील साहब के सामने खुलासा कर पाने की हिम्मत जुटा सकते। लगे गिड़गिड़ाने, कि उकील साहब, मैं बहुत गरीब आदमी हूं। इत्ता दे पाना मेरी औकात में नहीं है। जैसे भी हो यह मामला एक लाख में निपटा लो। ( क्रमश:)
यह किस्सा मुझे उन सज्जन ने मुझसे बयान किया, जिनका जिक्र मैं पिछले अंक में बयान कर चुका हूं।
अब जरा उस पर एक नजर डालने की जहमत फरमाइये। फिर सोचिये कि इसमें कौन में से कौन हरामी है।
एसडीएम, डीएम, वकील, पत्रकार, या फिर यह वही सज्जन जो बाकी लोगों को हरामी करार देने पर आमादा हैं।
उस घटना को तफसील से पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
(अपने आसपास पसरी-पसरती दलाली, अराजकता, लूट, भ्रष्टाचार, टांग-खिंचाई और किसी प्रतिभा की हत्या की साजिशें किसी भी शख्स के हृदय-मन-मस्तिष्क को विचलित कर सकती हैं। समाज में आपके आसपास होने वाली कोई भी सुखद या घटना भी मेरी बिटिया डॉट कॉम की सुर्खिया बन सकती है। चाहे वह स्त्री सशक्तीकरण से जुड़ी हो, या फिर बच्चों अथवा वृद्धों से केंद्रित हो। हर शख्स बोलना चाहता है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता तक नहीं होता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया कैसी, कहां और कितनी करनी चाहिए।
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