बुरी तरह ललुहायी गईं गोदी-मीडिया की अंजना ओमकश्‍यप

बिटिया खबर

: गोबैक का नारा तो जनाक्रोश है, उसका सम्‍मान कीजिए : पत्रकारिता के बजाय गोदी-मीडिया ही बनना है, तो जनता के आक्रोश का सामना करने का साहस भी दिखाओ : गोदी-चैनलों के पत्रकारों ने नारा लगाती भीड़ को शर्म आने की सलाह दी : अखिलेश यादव के साथ बातचीत में भड़की थीं अंजना :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पत्रकारिता का सर्वनाश करने के एकजुट अभियान के केंद्र में नायिका बनी रही हैं अंजना ओमकश्‍यप का। पूरा इतिहास भरा है उनके शैली का। अखबार के अलावा चैनलों में सुधीर चौधरी, रुबिका लियाकत और अंजना ओमकश्‍यप की पहचान गोदी-पत्रकारों के तौर पर बन चुकी है, वह यूं ही नहीं है। अमेरिका में भी अपनी अभद्रता और दुस्‍साहस के दौरान एक दूतावासी अधिकारी ने अपने दफ्तर से बाकायदा निकाल बाहर कर दिया था। अखिलेश यादव के साथ बातचीत के दौरान अंजना बिफर गयी थीं। अपनी बिरादरी पर बात करने के बजाय वे अखिलेश और दीगर नेताओं पर बिफर गयी थीं। खुद को घटनाओं का प्रत्‍यक्षदर्शी बनने के बजाय घटनाओं का केंद्र बनने लगीं। झूठ और बकवास ही उनका इकलौता परिचय बन गया। यही बड़े पत्रकार ही तो हैं, जिन्‍होंने दो हजार रुपयों के नोटों पर इलेक्‍ट्रानिक-चिप लगे होने का शिगूफा छेड़ा था। और नोटबंदी के कुछ दिनों बाद ही यह दो-हजारी नोट बाजार से ही लापता हो गया।
ऐसी हालत में बिहार के लोगों ने गो-बैक का नारा उछाल कर पटना में जिस तरह अंजना ओमकश्‍यम का स्‍वागत किया, उसमें अचरज कैसा ? लोगों की भीड़ अंजना ओमकश्‍यप को लगातार लिहो-लिहो करते हुए ललुहाती रही और अंजना ओमकश्‍यप अपना पसीना पोंछने की शैली में अपना चेहरा छिपाने में ही जुटी रहीं।
लेकिन अब कई चैनलों ने गिरोहबंदी की शैली में अंजना ओमकश्‍यप पर पटना में हुए जनाक्रोश का विरोध करते हुए अंजना का बचाव किया है। उनका दावा है कि:-थोड़ी शर्म करिये आप लोग एक महिला पत्रकार जो पूरी जिम्मेदारी से अपना फ़र्ज निभा रही है…उसे डराने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं…. और फिर महिला सम्मान का ढोंग रचते हैं…. यही चरित्र है आपका?
दरअसल चैनलों के लोग इस तरह के दावे और समर्थन की हवा बना रहे हैं, जिन्‍हें आम आदमी की भड़की आवाज से अपने पांवों तले जमीन खिसकी दिखने लगी है। अंजना ओमकश्‍यप के प्रति इसी तरह का बचाव करना ही तो इन चैनलकर्मियों की सबसे बड़ी खतरनाक करतूत है। आप खुद पत्रकारिता की चिंदियां बिखेरते रहें, और आम आदमी को इतना भी अधिकार न दें कि वह अपनी बात को कह भी सके।
फैसला तो जनता ही करेगी न? जब आपको पत्रकारिता के बजाय गोदी-मीडिया ही बनना है, तो उसका जवाब जनता की ओर से आने के लिए तैयार भी तो रहिये। और अगर आपको इसमें शर्म दिख रही है, तो आइंदा ऐसा करने से तौबा कीजिए।

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