बड़ा अंडकोष देखते ही सहम गये जागरण वाले, बोले जान जा सकती थी

सैड सांग

: एक सामान्‍य सी घटना पर तिल का ताड़ बना दिया दैनिक जागरण वालों ने : अगर इत्‍ता बड़ा अण्‍डकोष था यह तो इसे गिनीज रिकार्ड में क्‍यों नहीं दर्ज कराया : गांव-जवांर के बंगाली डॉक्‍टर तो दस मिनट में कर देते हैं हाइड्रोसील का ऑपरेशन : सरकार की बदहाली का खुलासा करने के बजाय सर्जन की वाहवाही कर डाली :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हाइड्रोसील का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां, आपने ठीक समझा। अण्‍डकोष का बढ़ जाना। हमारे यहां तो इसे फोता कहते हैं, और गांव-जवांर के बच्‍चे सतुआ-पिसान कह कर मामला हंसी-ठट्ठे में निपटा देते हैं। गंवई बाजारों में बंगाली डॉक्‍टर नाम के नाम पर खुले झोलाछाप डॉक्‍टरों के यहां इस तरह के मर्ज का इलाज सिर्फ दो-चार सौ रूपयों में और महज आधे घंटे में ही निपट जाता है। लेकिन दैनिक जागरण वालों ने इत्‍ते बड़े अंडकोष के बारे में सुना, तो उनके होश उड़ गये। लगे भयभीत होकर चिल्‍ल-पों करने। हाय बाप रे बाप। इत्‍ता बड़ा अण्‍डकोष। हाय अल्‍लाह। ऐसा इत्‍ता बड़ा अंडकोष तो ठीक वैसा ही है, जैसा अफगानिस्‍तान पर 13 अप्रैल को मदर-बॉम्‍ब गिरा दिया था।

जी हां, शुक्रवार 14 अप्रैल को दैनिक जागरण के लखनऊ संस्‍करण ने एक खबर छापी है, जिसका शीर्षक है:- 35 किलो का अंडकोष हटाकर बचाई जान, पांच घंटे चला ऑपरेशन। लेकिन हैरत की बात है कि इस खबर में रिपोर्टर ने उस सर्जन की वाहवाही में तो पूरा दो कालम की खबर काली कर दी, लेकिन बाराबंकी से लेकर लखनऊ तक के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र, उच्‍चतर केंद्र और जिला अस्‍पतालों की असफलता का खुलासा नहीं किया। खबर में यह भी नहीं लिखा गया कि अंडकोष का बढ़ जाना फाइलेरिया के प्रकोप के चलते है, केवल क्यूलेक्स मच्छर से फैलने वाली फाइलेरिसस बीमारी का जिक्र किया है। अब चूंकि इस रिपोर्टर को मेडिकल रिपोर्टिंग में अपने झंडे गाड़ने थे, इसलिए उसने स्क्रोटल शब्‍द का इस्‍तेमाल किया, जिसे केवल कोई डॉक्‍टर ही समझ सकता है।

हैरत की बात है कि इस पूरे आपरेशन में अगर बहुत कोई गम्‍भीर और असाधारण मामला था, तो उसका जिक्र वर्ल्‍ड रिकार्ड करने वाले कम्‍पनियों-समूहों से नहीं किया गया। अगर ऐसा हो जाता तो इस बीमारी और समाज में उसके के प्रति जागरूकता की जा सकती थी। इस रिपोर्ट में यह तो लिखा गया है कि इसके पहले गुजरात में एक व्‍यक्ति के अंडकोष का वजन 30 किलो पाया गया था, जोकि यूपी का ही रहने वाला था। कहने की जरूरत नहीं कि गंगा के मैदान में ही मच्‍छरों का सर्वाधिक गम्‍भीर बीमारी लाने वाले मच्‍छर पाये जाते हैं। लेकिन इसका कोई भी जिक्र इस रिपोर्ट में नहीं किया गया। अर्थात इस पूरी खबर में मूल तत्‍व को उसके केवल सतही तरीके से प्‍ले कर दिया गया। मकसद पाठकों को खबर पढाना नहीं, बल्कि डाक्‍टर की खुशामद करना ही था, इसलिए सिर्फ एक सर्जन सुरेश की फोटो लगा दी, डॉ संजीत की फोटो गायब। मतलब यह कि यह खबर केवल पीपी बन कर रह गयी, जिसे प्राइवेट प्रैक्टिस कहा जाता है।

इस जागरण संवाददाता ने खबर में लिखा है कि 30 वर्षीय व्यक्ति के अंडकोष में विकार हो गया। सूजन, दर्द व आए दिन बुखार से पीड़ित युवक वर्षो तक बीमारी को छिपाता रहा। गांव के झोलाछाप डॉक्टर से लेकर पीएचसी-सीएचसी व जिला अस्पताल तक इलाज कराया। वहीं सटीक इलाज न मिलने से अंडकोष का आकार काफी बढ़ गया। ऐसे में गंभीर हालत में उसे केजीएमयू रेफर किया गया। जहां डॉक्टर भी देखकर हैरान हो गए। उन्होंने ऑपरेशन कर युवक को बीमारी से निजात दिलाई।

खबर के मुताबिक बाराबंकी के सफदरगंज निवासी श्रीचंद्र (30) के 10 वर्ष पहले अंडकोष में हल्की सूजन आ गई। इस दौरान उन्हें बुखार ने भी घेर लिया। ऐसे में गांव में बुखार की दवा ले ली। कुछ दिन तक बुखार से आराम मिलने के बाद समस्या फिर उभर आई। वहीं अंडकोष की त्वचा लाल व सूजन बढ़ गई। ऐसे में श्रीचंद्र ने गांव के झोलाछाप डॉक्टर को दिखाते रहे। यहां हाइड्रोसील की समस्या समझकर महीनों इलाज होता रहा। श्रीचंद्र को सटीक इलाज न मिलने से अंडकोष की थैली में फ्ल्यूड भरता गया। आखिर में स्थिति यह हो गई श्री चंद्र के अंडकोष का वजन बढ़कर 35 किलोग्राम हो गया। अंडकोष का आकार काफी बढ़ाने से श्री चंद्र का बाहर निकलना भी दूभर हो गया। ऐसे में वह वर्षो तक लुंगी में रहे। अधिकतर समय वह घर पर ही रहने लगे। धीरे-धीरे उन्हें शौच व मूत्र त्यागने में भी परेशानी होने लगी।

ऐसे में कुछ दिन पहने चिकित्सक ने उनके कैथेटर डाल दिया। निकाला फ्ल्यूड, जोड़ी नसें। गुरुवार को श्रीचंद को केजीएमयू में भर्ती किया गया। डॉ. सुरेश कुमार और डॉ. संजीत ने मंगलवार सुबह श्रीचंद्र को ओटी में शिफ्ट किया। जनरल एनेस्थीसिया देकर श्रीचंद के अंडकोष से ऊपरी स्किन हटाई गई, इसके बाद सूजन की वजह से रक्त वाहिकाओं में हो रहे तेज रक्त स्राव को ब्लॉक कर रोका गया। इसके बाद चीरा लगाकर कई लीटर फ्ल्यूड निकाला गया। वहीं अंडकोष के आकार के साथ बढ़ी स्किन व नसों को भी हटा दिया गया। शेष दर्जनों नसों को एक-एक कर सिल दिया, इसके बाद टेस्टिस को मूल स्थान पर लाकर अंडकोष में टांके लगाए गए। सर्जरी में करीब पांच घंटे समय लगा। 35 किलो का अंडकोष निकालकर श्रीचंद का वजन अब 50 किलो रह गया।

डॉ.सुरेश कुमार के मुताबिक ऑपरेशन के वक्त अंडकोष से काफी फ्ल्यूड निकला। फ्लूयड में प्रोटीन रिच, ट्राइग्लिसराइड, फैट व फाइब्रोफैटी टिश्यू थे। डॉ. सुरेश कुमार के मुताबिक स्क्रोटल फाइलेरिसस बीमारी क्यूलेक्स मच्छर काटने से होती है। इसमें अंडकोष में पहले सूजन, फिर लालिमा आती है। बीमारी को नजरंदाज करने पर अंडकोष की थैली स्क्रोटम में फ्लूयड भर जाता है। यह मच्छर रात में काटता है। डॉ.सुरेश कुमार ने बताया कि एक सप्ताह हेट्रेजान की टेबलेट का सेवन कर बीमारी से निजात पाई जा सकती है। डॉ. सुरेश ने बताया कि देश में गुजरात के अहमदाबाद में वर्ष 2012 में भी एक ऐसा केस रिपोर्ट हुआ था, जो देश का दुर्लभ मामला था। यह भी यूपी का मरीज था। इसका अंडकोष 30 किलो का था।

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