अहम ब्रह्मचारी, वयम ब्रह्मचारी… नहीं तो फिर ब्रह्मचारी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पैंतालि‍स साल पार लोगों पर ज्यादा चढ़ा रहता है इश्क का भूत : अधिकांश फेसबुक-लोग तो सुंदर फोटो पर कंटिया लगाये रहते हैं : जुनून, धंधा और साजिश बन चुका है खूबसूरत तस्वीरें दिखा कर मुर्गे फंसाना : फेसबुक पर संवेदनाओं-भावनाओं के “प्रेम-व्यवसाय” पर श्रंखला– एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आप इस चक्कर में क्यों  पड़ते हैं कि हमें-आपको केवल एक ही रिश्ता चाहिए, जो आपकी कल्पनाओं में भड़क-धधक रहा है या धडकने लगा है। अरे सहज रहिये न। मस्त  रहिये न। मौज में रहिये। लेकिन मौज और मस्ती में रहने का यह आशय नहीं कि हम अनाचार की गति को प्राप्त़ हो जाएं। यह तो व्यभिचार हो जाएगा। फेसबुकियाये कई लोगों को यह बीमारी हो जाती है। जिसका नाम है लवेरिया। अब उसे हंसी में और सहज शब्दों में कहना चाहता हूं, ताकि आप मेरा मकसद आसानी से समझ सकें। 

दोस्तों में एक सामान्य कहावत कही-सुनी जाती है। हास्य के तौर पर ही। वह यह कि :- ” अहम ब्रह्मचारी, वयम ब्रह्मचारी, जिधर नारी देखी, उधर आंख मारी। फंसी तो  फंसी, नहीं तो फिर ब्रह्मचारी। ” मेरे कहने का मतलब यह है कि फेसबुक ने चूंकि एक बड़ा फलक खोल दिया है दुनिया का, जो इससे पहले कभी नहीं था। पहले केवल कल्पनाएं हुआ करती थीं, अब आभासों तक पहुंच गयी हैं भावनाएं और उनकी अभिव्यक्तियां। इस मामले में पुरूष बहुत आग्रही हो गया। खुला रहना तो उसका सहज प्रवृत्ति रही थी, लेकिन अब स्व‍च्छन्दता का आवेग जुड़ गया। लेकिन खतरनाक यह कि यह स्व‍च्छन्दता अब मित्रों के बीच चर्चा कर उसके मनोभावों का रेचन-प्रक्रिया को सम्पादित नहीं करता है, बल्कि उसे उसके दिल-दिमाग पर लगातार मथता-ठोंकता रहता है। फेसबुक का यह खतरनाक पक्ष है।

इसमें यह हालत मीनिया बन जाता है। किसी महिला की हंसती-मुस्कुराती-इठलाती प्रोफाइल फोटो पर हम मर-मिट पड़ते हैं। दिल खो देते हैं, भले ही अभी दो दिन पहले ही ऐसी किसी अन्य महिला की फोटो पर उनका दिल आ चुका हो। लेकिन नहीं। असन्तोष और अपूरणीयता बनी ही रहती है। एक आयी तो दूसरी ओर को किनारे कर दिया। तीसरी आयी तो दूसरी को वेटिंग में डाल दिया। बशर्ते उसका रिस्पांस बेहतर हो, उसकी फोटो आकर्षक हो, उसका मुस्कुराना मारक हो। दिलफेंक हो, दिलकश हो। वह भी हो, यह भी हो, वैसा भी हो, ऐसा भी हो। भले ही इनमें से एक भी न हो। जाहिर है कि पुरूष की इस मनोस्थिति को बाजार खूब पहचान चुका है। बाजार तो दूर, आपके मित्र-परिचित और घरवाले तक आपकी इस लम्पटता को पहचान चुके हैं। वे खुद ही किसी दूर देश की किसी गोरी आकर्षक महिला फोटो बना कर एक नया एकाउंट बना लेते हैं, और फिर आपकी लम्पटता का धंधा आपको लूटना शुरू कर देता है। ब्लैकमेल करने वालों की पौ-बारह हो चुकी है। आप चैटिंग करें, तो कुछ न कुछ उगल तो दे ही देंगे। कुछ धंधेबाज लोग तो आप हल्का-भी खुलें, तो वे आपकी धोती तक खोल दें।

इसमें एक चुटकिला भी सुन लीजिए। एक बच्चे, मसलन चिन्टू, ने अपने पिता से कहा कि:- ” पापा, मुझे अपने मित्र की बर्थडे पार्टी में जाना है। ढाई सौ रूपया दे दीजिए। ” चूंकि रविवार की सुबह का मौ‍का था। पिता दाढी बना रहा था, और परिवार ड्राइंग रूम में जमा हुआ था। बेटे की बात सुनकर पिता ने भड़क कर जवाब दिया:- ” रूपये पेड़ पर उगते हैं क्या बे। पढाई करने में तो तेरी नानी मरती है, और रोज-ब-रोज दोस्तों के साथ मौज मनाने के लिए तुझे मैं अपनी दौलत लुटा दूं हरामखोर। तुझे तो तेरी मां ने ही बुरी तरह बिगाडा है बदतमीज। ” पूरे घर के सामने बच्चे को अपनी इज्जत का फालूदा बनाते हुए बेटा अपने बाप पर भड़क गया:- ” पापा, ज्यादा मत बोला करो। जो दिन-रात रोजी और फुल्ली, चमेली, प्रियंका आंटियों से देर रात तक चैटिंग करते रहते हो, वह आंटियां नहीं, मैं खुद हूं। खुद तो रंगरेलियां मनाते हो, और मुझसे बातें करते हो…” ( प्रतिदिन क्रमश:)

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