: मामला बेहाली का है, अरे थोड़ी कोशिश तो करो मेरे यार : यह कहानी यह भी साबित करती है कि सरकारी कामधाम में गरीब की गुंजाइश लगातार कम होती जा रही : हम जरूरतमंदों को बीपीएल कार्ड तक नहीं दिलवा सकते तो खुद का गिरहबान झांकियेगा :
अनुमेहा पंडित
रायपुर : मेरे सोसाईटी मे एक महिला आती है । वो रोज के हिसाब से काम करती हैं ।जैसे:- गेहूँ साफ करना , पुराने कपड़ो की मरम्मत , गुदड़ी बनाना इत्यादि ।दस दिन पहले वो उधार माँगने के लिए आई । उसने बताया की तत्काल उसे डाक्टर ने गर्भाशय के आपरेशन के लिए कहा है । आपरेशन के लिए 25 हजार रूपए की जरूरत है । उसने कहा” अगर आप पाँच लोग, पाँच-पाँच हजार रूपए उधार दे सके तो उसकी जान बच जायेगी।”
मैने कहा ” ठीक है , शाम तक इन्तजाम करते हैं “।
उसके जाने के बाद मैने गुगल पर सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं को खंगालना शुरू किया तो बेनिफिट पाने के लिए बीपीएल कार्ड आवश्यक था। उस महिला को फोन कर पूछा, तो पता चला कि उसके पास कार्ड ही नही था ।
उसी समय हमारे वार्ड के काँग्रेस प्रत्याशी खालिद भाई नीचे दिख गये। यहाँ से भाजपा के भी प्रत्याशी जीतते है जो मारवाड़ी हैं। दोनो ही अच्छे इंसान हैं । नौकरी जैसा असंभव मदद तो नही कर पाते परन्तु छोटी -मोटी बातों के लिए ना नही कहते ।
खालिद भाई को मैने सिचुएशन बतायी तो उन्होने भाजपा वाले को फोन लगाया । भाजपा वाले किसी ट्रस्ट वाले को पहचानते थे। ट्रस्ट वालों ने फिर पूरी जिम्मेदार ले कर आपरेशन भी कराया और दवा-फल के लिए अलग से पाँच हजार रूपए भी दिये ।
आज वो महिला अपने पति को लेकर मिलवाने आई थी। पति- पत्नि मेरा पैर छूकर रोने लगे। मैने उन्हे बैठाया, शर्बत पिलायी। एक गरीब परिवार के कर्ज के बोझ से बच जाने की खुशी मै देख सकती थी।
मूलत: बिहार के छपरा-सारण की रहने वाली अनुमेहा पंडित फिलहाल छत्तीसगढ़ के रायपुर में रह रही हैं।
आप उनकी शैली और बात कहने की शैली देखिये।
बिलकुल सहज प्रवाह।