बाभन, कूकुर, हाथी, नहीं जात के साथी ( ? )

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: आत्‍माहुति की पराकाष्‍ठा पर हैं यह तीनों जातियां : आप अगर अपने को सम्‍मानित करना चाहते हों तो सबसे पहले इन जातियों को सम्‍मान देना सीखिये : : इन तीनों प्राणियों के इन्‍हीं मूलभूत गुणों के चलते पूरे जगत का कामधाम सुचारू ढंग से चल रहा : अगर इन जीवों में यह गुण लुप्त हो जाएं तो पूरी सृष्टि ही समाप्त हो जाए :

कुमार सौवीर

लखनऊ : लखनऊ : संसार को इतने सुंदर तरीके से संचालित करने में तीन जिन प्रमुखतम प्राणियों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है, उनमें कुत्ता, हाथी और ब्राह्मण ही इकलौते अहम किरदार हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन तीनों जातियों के इन महानतम गुणों का सम्मान देने के बजाय हमारा समाज इन तीनों की छवि को लगातार नकारात्मक और विध्वंसकारी भूमिका के तौर पर प्रचारित और प्रसारित करता रहता है। हालत तो यह है कि ऐसे प्रपंचों के चलते के चलते ऐसी-ऐसी कहावतें-लोकोक्तियां समाज में प्रचालित हो चुकी हैं, जिनमें इन तीनों को सबसे घृणिततम भाव का संचार किया जा रहा है। बहुत शर्मनाक स्तर तक। लेकिन सच बात तो यही है कि कुतत्व, यानी कुकुरत्व, गजत्व यानी हाथित्व। और ब्राह्मण-द्विज यानी बाभनत्व के गुण अगर हमारी इस धरती में लुप्त कर दिये जाएं, उन्हें हटा लिया जाए तो मेरा दावा है कि यह पूरा का जगत क्षण भर में रसातल में पहुंच जाए।

हम गणतांत्रिक व्यवस्था के हम-सफर और आस्थावान हैं। इसलिए हमें किसी भी समाज या किसी भी सम्प्रदाय के किसी भी लांछन को कहने, सुनने और उसे सुनाने का अधिकार मिल जाता है। बावजूद इसके इनमें से अनेक कहावतें-लांछन निराधार होते हैं, और केवल जाति-सूचक भाव को लेकर ही प्रताडि़त और उत्पीड़न के स्तर पर लगाये जाते हैं। लेकिन पिछले कई दिनों से मैंने गढवाल, दिल्ली, गुड़गांव और अन्य अनेक क्षेत्रों में घूमने के दौरान अनेक प्रमुख मसलों पर सोचने की जरूरत समझी। और पाया कि ऐसी कहावतें न केवल निराधार होती हैं, बल्कि अधिकांश केवल आरोपण और अपमानित करने तक की सीमित होते हैं। यथार्थ से कोसों दूर।

अब आइये, जरा समझने की कोशिश कीजिए कि धरातल में क्या समस्या है, लेकिन उसके खिलाफ ऐसी कहावतों-लोकोक्तियों में क्या कहा जा रहा है, क्या सुनाया जा रहा है और उसके मूल में क्या साजिश है।

मेरा साफ मानना है कि ब्राह्मण मेधा-बुद्धि का अदना सा सेवक है। लेकिन इस गुण में बुद्धि-मेधा क्षेत्र का इकलौता सेवक भी है। बाकी अन्या जातियों में ऐसे गुण हैं ही नहीं। यही कारण है कि अपनी इसी हीनता और कमी पर परदा डालने के लिए अन्य जाति के लोग ब्राह्मण पर कींचड फेंकते हैं, उसे अपमानित करते रहते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि ब्राह्मण यानी बाभन तो अपनी शीर्षता और अपनी श्रेष्ठता के बोध से ग्रसित रहता है। सदैव। कारण यह कि वह मूलत: तार्किक प्राणी है। इसलिए उसकी प्रवृत्ति में झगड़ालूपन, विवाद, झंझट, वितर्की और मीन-मेख निकालने गुण होते हैं। इसीलिए वह सामान्य तौर पर कलह-प्रिय माना जाता है।

कारण यह कि अगर उसमें यह गुण न हो तो वह वाद-विवाद से ही हट जाएगा। शास्त्राैर्थ करना बंद कर देगा। तर्क-वितर्क ही खत्म हो जाएंगे। तार्किक तन्तुओं को मजबूत करने, उनके प्रत्येक रेशे, तन्तु, अणु और उनके परमाणुओं को खोजने-तोड़ने की जन्मना प्रवृत्ति के चलते अपने ऐसे प्रयासों-जुगत से ही हट जाएगा। फिर सारा का सारा ही जगत-व्यवसाय ही ठप हो जाएगा। ठहरे पानी की तरह सड़ांध उठने लगेगी। कीड़े पड़ने लगेंगे। सारी की सारी सम्भावनाएं खत्म हो जाएंगी। सकारात्मकता का ही सर्वनाश हो जाएगा। कुकुर कलह-प्रिय है। ईर्ष्या पसंद करता है। सृष्टि शांत हो जाएगी, ठहर जाएगी, गंदगी बढ़ जाएगी, संक्रमण फैल जाएगा। और अन्तत: जगत ही खत्म हो जाएगा।

ठीक यही हालत कुत्ते यानी श्वान, अर्थात कुकूर को लेकर समाज में है। कुत्ता तो मूलत: मानव का सेवक है। वह चाहे तो किसी अन्य मांसाहारी-शिकारी पशु की तरह अपना पेट स्वतंत्र तरीके से भर सकता है। लेकिन ऐसा वह नहीं करता है। बावजूद इसके कि वह इसके लिए वह पूरी तरह सक्षम होता है। लेकिन चूंकि मनुष्य के प्रति उसका जन्मजात स्नेह-प्रेम और समर्पण भाव होता है कि वह मनुष्य की सुरक्षा के लिए उसके आसपास ही मंडराता रहता है। तनिक भी कोई आशंका उसके मालिक के प्रति हुई, कुत्ता तत्काल हमलावर हो जाता है, और फिर यह कत्तई नहीं सोचता कि वह जीवित बचेगा भी या नहीं।

अब जरा सोचिये कि अगर कुत्ता प्राणी अपने इस अप्रतिम गुण को बिसार दे, तो फिर उसमें जाहिर है कि झगड़ालू प्रवृत्ति समाप्तु हो जाएगी। फिर वह हर प्राणी से स्नेह, प्रेम ही करेगा। जो भी सामने आयेगा, उसके सामने शेकहैंड करेगा, पूंछ खिलायेगा, लपलपायेगा। चाहे वह दुश्मन हो या फिर मालिक, या फिर कोई दूसरा जन्मजात दुश्मन कुत्ता। फिर तो कुत्तेा ही कुत्ते रहेंगे इस दुनिया में। कोई भी कुत्ता कभी भी कुत्ते की मौत नहीं मरेगा। सब प्रेम से रहेंगे, मरेंगे। सिवाय इंसान और बाकी प्रजाति और जैव-विविधता के।

उसका भोजन मनुष्य से मिली रोटी पर ही निर्भर करता है। लेकिन जरा यह तो सोचिये कि वह मनुष्य के प्रति अपने प्रेम की कितनी बड़ी कीमत अदा करता है कि उसे इंसान ने बाकायदा किसी कुत्ते से भी निकृष्टतम प्राणी से भी नीचे दुत्कार दिया है। क्या आपने नहीं लगता है कि इंसान ने ऐसे एक अपने अप्रतिम साथी-मित्र के प्रेम और स्नेह का बेहद शर्मनाक मूल्यांकन कर रखा है।

उधर हाथी के बारे में यह बात आप पहले अच्छी तरह से समझ लीजिए कि हाथी में स्नेह और प्रेम इंतिहा होता है। खास कर अपनी जाति के प्रति तो अतिशय ही होता है। लेकिन मनुष्य किसी हाथी की इसी मूलभूत मानसिक संरचना को अच्छी समझ चुका होता है। इसलिए वह जंगली हाथी को पकड़ने के लिए उस अस्त्र का इस्तेमाल करता है, जो हाथी में जन्मजात होता है।

यानी प्रेम, स्नेह, मोहब्बत। इंसान अपने पालतू हाथी की इस दैवीय प्रवृत्ति को पहचान चुका है। इसलिए वह जंगली हाथी को पकड़ने के लिए पालतू हाथी के मौलिक गुण को ब्रह्मास्त्र के तौर पेश करता है। पालतू हाथी जंगलों में विचरण करते अपने सहोदर हाथियों में प्रेम का जाल फेंकता है और बाद में जैसे ही जंगली प्रेम के वशीभूत हो जाता है, मनुष्य उसे दबोच कर उसे पालतू बना डालता है। अब जरा सोचिये कि अगर हाथी अगर अपने इस गुण को त्याग दे, तज दे, भुला दे, तो फिर इस सृष्टि में केवल हाथी ही हाथी मिलेंगे, जो पूरे ब्रह्मांड को ही रौंद डालेंगे।

लेकिन समस्या यही है कि इंसानी फितरत ही बेहद शर्मनाक, घटिया और एहसान-फरामोश होती है। इंसान के लिए जो भी प्राणी अपनी जान तक देने पर आमादा होता है, आत्माहुति देने को तत्पर होता है, उसे हम जितना भी लांछन दे सकते हैं, दे देते हैं। उसे घटिया और निम्नतम और निकृष्ट प्राणी तक साबित कर देते हैं। लेकिन चाहे वह ब्राह्मण हो, कुत्ता हो या फिर हाथी, वह मानवता के प्रति अपनी भूमिका और अपने समर्पण का भाव नहीं छोड़ता।

किसी भी कीमत पर नहीं।

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