चंद्रवदनी आइये, आप मोहित हो जाएंगे

मेरा कोना

: सती का शिर-अंग के तौर पर प्रख्यात टिहरी का मंदिर : हिमालय के गढ़वाल की गोद में है चंद्रवदनी मंदिर : मनोरम, शांत, सुरम्य , और मनमोहक दिव्य नजारा देखना हो तो सीधे इसी क्षेत्र में पहुंचिये :

कुमार सौवीर

श्रीनगर (गढ़वाल) : पौराणिक कथाएं हैं सती को लेकर। कहा जाता है कि राजा जनक के राजदरबार में आयोजित जब बिना बुलाये जब सती अपने पति शिव को जबरन लेकर गयीं तो जनक ने शिव के साथ अपमान कर दिया। शिव तो गरल-मस्त थे, लेकिन उनके अपमान को सती सहन नहीं कर पायीं और जनक के यज्ञ-वेदी में उन्होंने खुद की आहुति दे दी। यह देख कर शिव गुस्से में आग-बबूला हो गये। तांडव किया और अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर दिग्-दिगन्त् दौड़े-भागे।

बाद में देवताओं ने हस्तक्षेप किया और सती की लाश से शम्भू को निजात दिलाने का तानाबाना बुना गया। नतीजा यह हुआ कि सती का अंग-अंग कट-कट कर जमीन पर गिरने लगा।

अजी यह क्षेपक है, पौराणिक कथा। आप नास्तिक हैं तो उस पर चमत्कृत मत होइये, लेकिन अगर आप में आस्थाओं का सागर हिलोरें लेता है तो फिर आप एक नयी दुनिया में पहुंच जाएंगे। इनमें कामाख्या, तुलसीपुर आदि अनेक प्रमुख स्थल शामिल हैं। चंद्रवदनी भी इस कड़ी में प्रमुख रही है, जो गढ़वाल के श्रीनगर से करीब 80 किलोमीटर दूर एक निर्जन ऊंचे पहाड़ पर है। इस मार्ग पर 40 किलोमीटर तक तो कोई सार्वजनिक वाहन तक नहीं जाता है। आपको वहां पहुंचना है, तो सीधे या तो अपनी कार निकालिये या फिर एक टैक्सी बुक कीजिए।

इस मार्ग पर पहुंचने का उपक्रम करते ही आपको सुहानी ठण्डी बयार के झोंके स्वागत किये पलक-पांवड़े बिछाये दिख जाएंगे। बुरांश के फूलों की छटा मिलेगी, फालसा जैसे स्वादिष्ट नन्हें फल मिलेंगे। झूमते अखरोटों की कतारें मिलेंगी। हरे अखरोट आप उन लोगों ने कभी देखा तक नहीं होगा जो ऊंचे पहाड़ों से परिचित नहीं हैं।

हालांकि उत्तराखंड सरकार ने चंद्रवदनी तक सड़क और सीढि़यां आदि की व्यवस्था करा रखी थी। करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर बने चंद्रवदनी मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब एक किलोमीटर तक की सीढि़यां चढ़नी होती हैं। हर सौ-पचास मीटर की दूरी पर पहुंचते ही सामान्य शख्स बुरी तरह हांफ सकता है। लेकिन आपके लिए यहां जगह-जगह बेंच रखी हुई हैं। आप आराम से वहां पर बैठिये, अपनी सांसों को संयत कीजिए और इसी बीच आसपास के दूर-दूर तक के मनोरम नजारों का नजारा लीजिए।

मंदिर के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने पर आपको दरवाजे पर दो शेर की बड़े प्रतिमा दिखेगी। उनमें से बायीं ओर का शेर तो नर है। पक्का। लेकिन दूसरे को जाहिर है कि मादा ही होगा। बावजूद इसके कि उस मादा के गले पर भी नर शेर की तरह ही अयालों का झुण्ड है। मैंने दूसरे शेर के शरीर को गौर से देखने की कोशिश नहीं की। कुछ लोग वहां मौजूद थे। मेरी खोजी नजर उन्हें संशय में डाल सकती थी, इसलिए मैंने अपना इरादा बदल दिया।

इसके बाद गेट के ऊपर दाहिनी ओर हनुमान जी किसी पहरेदार की तरह गदा ताने खड़े हैं, जबकि बायीं ओर सीधे महादेव भोलेनाथ शंकर ही पहरे पर मौजूद थे। स्वाभाविक है कि यह स्थान उनकी पत्नी सती का ही है। ऐसे में पति ही तो सुरक्षा करेगा ना, है न।

इसको पार किया आपने, तो समझिये कि आप सीधे उन्मुक्त आकाश पर पहुंच गये।

इसका बाद का वृतांत मैं आपको नहीं बता सकता। आपको खुद उसे महसूस करना होगा। बस, इतना जरूर कीजिएगा कि इस पूरे दौरान खुद को उन्मुक्त  कर लीजिएगा। आप पायेंगे कि आप एक नये अप्रतिम जीवन में प्रवेश कर गये।

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