बिना ऑपरेशन 80 हजार का बिल, बिड़ला हिंदुस्‍तान खामोश

दोलत्ती

: बिड़ला जी स्‍वर्ग से झांक रहे हैं बिकाऊ खबरों के नर्क को : सच लिखने में फटता है जिगरा हिन्‍दुस्‍तान वाले शशि शेखर की टीम का : दलालों का अड्डा है बिड़ला का अखबार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गजब हालत है कि अब तो बड़े-बड़े बैनर वाले अखबारों की भी साफ और सपाट सच लिखने में चिरने-फटने लगी है। वजह या तो यह है कि वे दलाली में संलिप्‍त हैं, या फिर विज्ञापन के बोझ से दोहरी अपनी रीढ़ को एडजस्‍ट करने में जुटे हैं। कुछ भी हो, ऐसी किसी भी हालत में अंतत: अपराधी तो सम्‍पादक ही होता है, जिस पर खबरों को सम्‍भालने का जिम्‍मा होता है। लेकिन अपनी बड़बोली बकलोली के लिए मशहूर बिड़ला समूह के प्रतिष्ठित अखबार हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स समूह के हिन्‍दी प्रकाशन दैनिक हिन्‍दुस्‍तान ने जो आजकल खबरों के नाम पर बलात्‍कार कर डालने वाली हरकतों के तौर पर प्रमाणित खबरों को परोसने की साजिशें की हैं, वह वाकई बेहद शर्मनाक ही नहीं, बल्कि पत्रकारिता और बिड़ला समूह के चरित्र को बुरी तरह कलकिंत करती हैं।

ताजा खबर यह देखिये। राजधानी के एक बड़े नर्सिंग होम ने पेट दर्द से बेहाल एक मरीज पहुंचा। मोटी रकम उगाह कर डॉक्‍टरों ने उससे सारी जांच करवा लीं। नतीजा निकला कि मरीज के पेट में गॉलब्‍लॉडर के भीतर पथरी है। बताया गया कि मामला अर्जेंट है, इमरजेंसी है। मरीज की मौत कभी भी हो सकती है, इसलिए ऑपरेशन तत्‍काल करना होगा। खर्चा बताया गया अस्‍सी हजार रुपया।

जाहिर है कि तीमारदार हड़बड़ा गये। अपनों की जान से प्‍यारी कैसे हो सकता है रुपया। नतीजा, आनन-फानन सारा खर्चा नकद जमा करा लिया गया। ऑपरेशन हो गया। दो दिन बाद मरीज को छोड़ दिया गया। बताया गया कि तीन दिन बाद मरीज को लाना होगा, ताकि उसके घाव की सफाई और गाज-पट्टी बदली जा सके। मरीज के लिए नियमित रूप से मलहम-पट्टी बहुत जरूरी होती है, यह बताया गया तीमारदारों को। मरीज और उसके तीमारदारों ने डॉक्‍टरों का चरणस्‍पर्श कर उनके चरणों का रज लिया और उन्‍हें भूरि-भूरि धन्‍यवाद भी दिया।

लेकिन अगले ही दिन मरीज के पेट में फिर से दर्द होने लगा। वह तड़पने लगा। पड़ोस के एक डॉक्‍टर को बुलाया गया। उसने मरीज को चेक किया, तो डॉक्‍टर के होश ही उड़ गये। पता चला कि सिम्‍टम्‍स तो गॉलब्‍लॉडर में स्‍टोन होने के हैं, और ऑपरेशन के स्‍थान पर गाज-पट्टी भी चिपकी हुई है। लेकिन सच यही है कि यह ऑपरेशन हुआ ही नहीं है।

यह खबर हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने अपने 22 अक्‍टूबर-20 के अंक में छाप दी। लेकिन इस हत्‍यारे डॉक्‍टर और धोखेबाज नर्सिंग होम का नाम छापने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाया यह अखबार। आपको बता दें कि यह वही दैनिक हिन्‍दुस्‍तान अखबार है जिसके समूह संपादक शशि शेखर लगातार झूठ और प्रवंचना करते हुए हलब्‍बी आलेखों से कागज गंदा किया करते हैं, और बाकी संपादक या तो झूठ बोलते हैं, या फिर असत्‍य खबरें छापा करते हैं।

सच बात तो यह है कि झूठ और धोखाबाजी में लिप्‍त लोगों पर वाहवाही के पुल बांधने में माहिर है हिन्‍दुस्‍तान अखबार। सच लिखने से पुक्‍क-पुक्‍क करता है हिन्‍दुस्‍तान का फट्टू पत्रकार। केवल हिन्‍दुस्‍तान ही नहीं, बल्कि पूरी पत्रकारिता के लिए कलंक बनता जा रहा है यह अखबार। जाहिर है कि इस दलाल संस्‍कृति और बिकाऊ संस्‍कृति के सेनापति है इस अखबार के समूह सम्‍पादक शशि शेखर, जो अपनी बकलोली के लिए हर मोहल्‍ले,पत्‍ता-बूटा और कूचा तक में चर्चित हैं।

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