: लोकसेवक नहीं, खुद को वायसराय समझती हैं फतेहपुर की डीएम, ब्यूरोक्रेसी की नाक कटायी : सरकारी बंगले में पाली गयी डीएम की देसी देती है ढाई किलो दूध, आजकल थनेली से बेहाल : चीफ पशु अफसर ने जिला की समस्या को झड़क कर डीएम की गाय पर डॉक्टरों की टीम जुटायी :
कुमार सौवीर
फतेहपुर : एक डीएम साहेब हैं। उनको बीन की आवाज में झूम कर सांप नचाने का बहुत शौक बहुत है। अक्सर अपने दफ्तर से लेकर बंगला, और पूरे गांव, मोहल्ला, जंवार में सांपों को दुलराना, पुचकारना, और उनको डांट-फटकारना ही नहीं, बल्कि अपने इशारे में सांपों का डांस देखने-दिखाने में मशहूर हो चुकी हैं डीएम साहेब। एक दिन एक सांप से वह नाराज हो गयीं। आंखें तरेर कर उस बीमार सांप को फटकारा तो वह हार्ट-पेशेंट होकर कानपुर मेडिकल कालेज में भर्ती होने पर मजबूर हो गया। लेकिन उस सांप की जगह की ड्यूटी डीएम साहब ने एक जूनियर नाग को थमा दी। ताईद कर दी कि चाहे कुछ भी हो, मेरे हुक्म की उदूली नहीं होनी चाहिए। अब यह नयी ड्यूटी पर आया सांप को जल्दबाजी थी कि चाहे कुछ भी हो, डीएम साहेब की आस्तीन में ही बसा रहे, ताकि पुराने सांप का पत्ता हमेशा के लिए कट जाए। नये नाग की ख्वाहिश थी कि उसे चीफ की टोकरी में पहुंच कर अपनी कुंडली आसानी से मार सके।
लेकिन हालात अचानक पलटे कि इस नाग ने डीएम साहेब पर ही विषदंत गड़ा दिये गये। वह सांप भले ही सांप था, लेकिन था तो विषधर नाग ही। जहर कुछ इतना जबर्दस्त फैला कि लखनऊ में मुख्यमंत्री से लेकर सचिवालय तक के अफसरों के ही होश उड़ गये। अब डीएम साहेब पर धंसे इस जहर उतारने के लिए पूरी ब्यूरोक्रेसी ही जुट गयी है। वजह यह कि इस डीएम साहब के पति अभी हफ्ता पहले ही मुख्यमंत्री के विशेष सचिव विशेष जी थे और आजकल कानपुर नगर के डीएम हैं।
मामला है फतेहपुर का, और डीएम साहब हैं अपूर्वा दुबे। डेढ़ साल से ही वे फतेहपुर में ही हैं। अब पूरे जिले के सांपों पर उनके रिश्तों के बारे में तो दोलत्ती संवाददाता को पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन यहां के जिला पशु चिकित्सा अधिकारियों के साथ उनके व्यवहार ने उन पर ही उलटा जहर फेंक दिया है।
मामला बड़ा पेंचीदा है। योगी की गौशाला योजना का काम यहां डीएम के अलावा सीडीओ सत्यप्रकाश, ट्रेनी आईएएस अफसर डीपीआरओ निधि बंसल और परियोजना अधिकारी महेंद्र चौबे के साथ जिले के 32 पशुचिकित्सा अधिकारी भी कर रहे थे। सारा काम एकसाथ के साथ निपटाया जा रहा था, और ऊपरी काम वाला धाम भी चल रहा था।
लेकिन एक दिन धेउली गांव की गौशाला में बजरंग दल और विश्वहिन्दू परिषद के स्थानीय नेताओं ने प्रधान के साथ हंगामा किया। मसला था चारा-कमीशन का अतिरिक्त बंटवारा। बड़ा बवाल हुआ। बात डीएम तक पहुंची। इस पर बिंदुवार योजना तैयार की गयी। प्रभारी मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी ने दो दिन के अंदर ही योजना तैयार कर सीडीओ सत्यप्रकाश को थमा दी। सत्यप्रकाश ने फाइल अलमारी पर रख दी कि चूंकि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का दौरा होना है कि इस पर फाइल दस दिन बाद ही डीएम को भेजी जाएगी।
डीएम ने देरी देखी तो लीवर सिरोसिस से मौत-जीवन से जूझ होने के बावजूद ड्यूटी पर तैनात डॉ नीरज त्रिपाठी पर गुस्सा किया। उनको ताव आ गया और एक अन्य डॉक्टर दिनेश कटियार को डीएम से अटैच कर दिया। लेकिन सवा लाख महीना का वेतन करने वाले को डीएम के घर पर क्यों तैनात किया जाए, किसी की समझ में ही नहीं आया। यह तो सरासर अराजकता और मनमर्जी ही थी। लेकिन डीएम साहब तो पशुओं के साथ पशुवत व्यवहार करने की हिमायत करती थी, इसलिए उन्होंने पशु चिकित्सा अधिकारियों को अपनी बीन से नागिन-डांस करना शुरू कर दिया। कई अफसरों को प्रविष्टि दी गयी, किसी पर दीगर कार्रवाई भी हुई।
इस बदलावों से कई लोग कुपित और कुछ आह्लादित भी थे। इनमें से एक थे उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी संदीप कुमार तिवारी। उन्होंने डीएम के सामने बढिया डांस दिखाया तो डीएम खुश हो गयीं। आनन-फानन उनको प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी की कुर्सी दे दी गयी। पुराने प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ आरडी अहिरवार को झटका लगा तो वे हार्ट पेशेंट होकर कानपुर मेडिकल कालेज में भर्ती हो गये। तय होने लगा कि डीएम साहब की बीन के सुर अब बिगड़ गये हैं और पुराने डॉ अहिरवार की शामत अब आने ही वाली है। जानकार अफसरों बताते हैं कि डीएम साहेबा ने सभी पशु चिकित्सा अधिकारियों को देर रात तक गौशालाओं में चेक करने का आदेश किया। बिना किसी सुरक्षा के। इस पर अधिकारी बेहाल हो गये।
इसी बीच दो मामले अचानक हो गये। डीएम साहेब अपूर्वा दुबे को चूंकि देसी गाय का दूध ही पसंद है, जो डीएम के बंगले में ही चरती और विश्राम करते हुए रोजारा करीब ढाई किलो दूध देती रहती है। लेकिन इधर कुछ दिनों से उस देसी गांव को थनेली रोग हो गया था, यानी उसके थन में घाव हो गये थे। दूसरी बात यह कि धेउली गांव की गौशाला से उठा मामला अब जिले की गौशालाओं को समेटते हुए जो योजना तैयार की गयी थी, वह भी डीएम के सामने पेश कर दी गयी थी। इस पर चर्चा के लिए डीएम अपूर्वा दुबे ने प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी संदीप त्रिपाठी को बुलाया। सबसे पहले तो उनको बताया गया कि वे डीएम बंगले में रहने वाली और धनेली से पीडि़त गाय का इलाज करवा दें और गोशालाओं के निरीक्षण के लिए एक दल नियुक्त कर दें।
अब चूंकि प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी संदीप त्रिपाठी को केवल डीएम की बीन ही सुनायी पड़ती थी, वह भी केवल मतलब भर की। इसलिए वे गौशालाओं की योजना भूल गये। इसके बजाय उन्होंने सात पशु चिकित्सा अधिकारियों को प्रत्येक दिन-वार डीएम अपूर्वा दुबे के बंगले में सेवा-सुश्रुषा गटकने वाली और धनेली रोग से पीडि़त देसी गाय की सेवा में तैनात कर दिया। इतना ही नहीं, यह ड्यूटी समय से होती रहे, इसलिए उन्होंने दो अतिरिक्त पशु चिकित्सा अधिकारियों की तैनाती अनुश्रवण के लिए भी लगा दी।
जाहिर है कि मचा हंगामा। दोलत्ती संवाददाता से जब डीएम अपूर्वा दुबे से इस मामले पर पूछा तो उनको कहना था कि ऐसी खबर जरूर है लेकिन ऐसा कोई आदेश उनके पास नहीं पहुंचा है। वैसे भी उस पत्र में अन्य अधिकारियों को सूचनार्थ नहीं भेजा गया। उनका कहना था कि पुराने अधिकारी और वर्तमान प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी को सस्पेंड करने के लिए उन्होंने शासन को भेज दिया है। उनका कहना था कि यह दोनों ही नहीं, बल्कि कई अधिकारी शुरू से ही अनुशासनहीनता का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन अपने पिछले डेढ़ बरस के दौरान उन्होंने ऐसे अफसरों पर क्या कार्रवाई किया, वे केवल ताजा कार्रवाइयों का ही शिजरा पेश करती रहीं। इस मामले में सीडीओ, पीडी और प्रभारी मुख्य मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी संदीप त्रिपाठी ने तो अपना फोन ही नहीं उठाया।
ये क्या चांदूखाने की खबरें लिखते रहते हैं
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