दलित-चिंतकों ने आम्‍बेदकर के विचारों को न तो कभी बोया, न बोने दिया

मेरा कोना

: जैमिनी से लेकर आम्‍बेदकर तक ने भूमि व्‍यवस्‍था पर जो क्रांतिकारी विचार बोये, आम्‍बेदकर समर्थकों ने उसे उजाड़ डाला : दलित-चिंतकों ने अपने खेतों में आम्‍बेदकर की प्रतिमाएं खूब बोयीं, लेकिन विचार बोने में अक्षम साबित हुए : वे आम्‍बेदकर के अनुयायी नहीं, उनके विचारों के हत्‍यारे साबित होते जा रहे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जमीनी मुद्दों पर जो वैचारिक हस्‍तक्षेप डॉ आम्‍बेदकर ने किया, वह बेमिसाल भले न रहा हो, लेकिन क्रांतिकारी तो जरूर था। भूमि व्‍यवस्‍था को लेकर महर्षि जैमिनी  और महर्षि मनु ने जमीन पर आधिपत्‍य राजा के बजाय उस किसान पर माना है, जिसने उसे साफ कर जोता-बोया। किसानों और खेती को लेकर आचार्य याज्ञवल्क्य और आचार्य बृहस्पति ने भी व्‍यापक व्‍याख्‍याएं देकर अन्‍नदाताओं का जीवन-पथ प्रशस्‍त किया।

ठीक यही जैसे प्रयास टोडरमल ने और अंग्रेजी हुकूमत में वायसराय लॉर्ड कार्लवालिस ने भी किये, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह जमींदारी विनाश एक्‍ट बना दिया, वह बेमिसाल था। ठीक उसी दौर में आम्‍बेदकर ने ऐसे सुधारों की दिशा में एक नया अभिनव प्रयास किया। लेकिन डॉक्‍टर आम्‍बेदकर का यह प्रयास जमीनी नहीं, बल्कि वैचारिक धरातल पर ज्‍यादा था।

जाइये, आम्‍बेदकर का लिखा एक लेख पढि़ये जिसका शीर्षक है:- छोटी जोतों की समस्‍याएं।

फिर आपको एहसास होगा कि आम्‍बेदकर जैसों की कोई भी कमी नहीं रही है हिन्‍दुस्‍तान में। और ऐसी पंक्ति में आम्‍बेदकर शीर्ष-पंक्ति में हैं। बस दिक्‍कत की बात ही नहीं, बल्कि हैरत और आश्‍चर्य की बात है कि आम्‍बेदकर के विचारों पर आगे कोई भी चर्चा नहीं हो सकी। इसमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ही नहीं, आम्‍बेदकर के प्रशंसकों की मूढ़ता भी एक प्रभावशाली भूमिका निभा गयी।

आइये, अब सोचा और किया जाए कि आखिर आम्‍बेदकर को भगवान मानने वालों ने आम्‍बेदकर को तो ईश्‍वरीय-तत्‍व मान लिया, लेकिन समाज के दीगर सक्षम तत्‍वों को वैचारिक स्‍तर पर इतना हीन-दीन बना कर उन्‍हें घृणा करना शुरू कर दिया कि उनमें आम्‍बेदकर की बातों को बढ़ाने की न तो क्षमता रही, और न ही इच्‍छा-शक्ति। वे महर्षि मनु को धेला भर जानते नहीं, लेकिन गालियां सिर्फ मनु और सवर्णों को ही देते हैं। सच बात तो यह है कि आम्‍बेदकर के ऐसे सारे अनुयाइयों ने सवर्णों के खिलाफ इतना जहर बोना शुरू कर दिया कि उसके बाद से भारत में सवर्णों ने आम्‍बेदकर के विचारों के बीजों को अपने उर्वर खेतों में बोना ही बंद कर दिया। उधर इन दलित-चिंतकों ने अपने खेतों में आम्‍बेदकर की मूर्तियां तो खूब बोयी हैं, लेकिन विचार से परहेज रखा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि उनमें विचार बोने की कूवत-ताकत ही नहीं थी। विचार बोना न उनकी प्राथमिकता रही और न ही उसके लिए शारीरिक-मानसिक गूदा।

(अपने आसपास पसरी-पसरती दलाली, अराजकता, लूट, भ्रष्‍टाचार, टांग-खिंचाई और किसी प्रतिभा की हत्‍या की साजिशें किसी भी शख्‍स के हृदय-मन-मस्तिष्‍क को विचलित कर सकती हैं। समाज में आपके आसपास होने वाली कोई भी सुखद या  घटना भी मेरी बिटिया डॉट कॉम की सुर्खिया बन सकती है। चाहे वह स्‍त्री सशक्तीकरण से जुड़ी हो, या फिर बच्‍चों अथवा वृद्धों से केंद्रित हो। हर शख्‍स बोलना चाहता है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता तक नहीं होता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया कैसी, कहां और कितनी करनी चाहिए।

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