चीन की लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में धंसी है भारतीय संघियों की नाल

मेरा कोना

: सिर्फ कहने को ही है “केर-बेर” वाला “बहनापा”, वहां भी तमाशा है और यहां भी तमाशा : आप चीन के लोकतंत्र को समझने के साथ ही ठहाके भी लगाने लगेंगे : चीन के लोकतंत्र-समर्थक ठीक उसी तरह हैं, जैसे हमारे गौ-रक्षक :

त्रिभुवन

जयपुर : चीनी कम्युनिस्टों ने अपने यहां ग़ज़ब का लोकतंत्र विकसित कर रखा है। चीनी कम्युनिस्टों का विचित्र लोकतंत्र, जिस पर हमारे नव-राष्ट्रवादी भी फ़िदा हो जाएँगे। सच तो यही है कि यह दुनिया के सभी अजूबों से भी अजूबा है। आप भी लोकतंत्र के इस मॉडल के बारे में जानेंगे तो मुग्ध हो जाएंगे। मुझे लगता है, हमारे प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पैतृक संगठन को लोकतंत्र का यह मॉडल पसंद आएगा और राष्ट्र निर्माण के उनके ऐतिहासिक अभियान में गो-सेवा भी बढ़कर करेगा!

मैं अभी एक प्रोफ़ेसर से चीनी शासकीय मॉडल के बारे में बात कर रहा था तो पता चला कि चीन में लोकतंत्र है। यह ऐसी बात थी, मानो कोई कह रहा हो कि केक्टस गार्डन में रेड रोज़ खिले हुए हैं। चीनी साहित्य और चीनी मीडिया के लोग भी ऐसी ही बातें बता रहे थे। ये प्रोफ़ेसर सिंगापुर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और बहुत दिलचस्प इन्सान हैं।

मेरा प्रश्न था कि चीन और लोकतंत्र! वह बोले : जी हां। लोकतंत्र! मुझे लगा जैसे कसाई कह रहा है कि दरसअल वह तो गो-सेवक है। जैसा कि आजकल हमारे यहां पैदा हो ही गए हैं। मुर्गा पकाएंगे, हज़म करेंगे और गोरक्षा के लिए निकलेंगे। ईद के दिन मुसलिम भाइयों को बधाई देने जाएंगे और उनके घर ज़ायकेदार बकरे का रसास्वादन करके लौटते हुए गोशाला भी होते हुए आएंगे।

ख़ैर तो। चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी है। यही सब कुछ चीन में तय करती है। सारी सत्ता इसी की है। यहां तक तो ठीक था। यह मुझे जानकारी थी। लेकिन फिर बताया गया कि चीन में लोकतंत्र है और अन्य दल भी हैं। पता चला कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा चीन में आठ और राजनीतिक पार्टियां हैं। कमाल है। पहली बार पता चला कि कसाई ने अपनी कत्लगाह के पिछवाड़े कुछ बछिया और बछड़े भी बांध रखे हैं।

अब साहब, नाम पूछा तो पता चला कि इन आठ दलों के नाम हैं : चीनी कोमिनतांग पार्टी की क्रांतिकारी कमेटी, चीनी डेमोक्रेटिक लीग, चीनी डेमोक्रेटिक राष्ट्रीय निर्माण सोसाइटी, चीनी डेमोक्रेसी संवर्धन सोसाइटी, चीनी किसान एवं मजदूर डेमोक्रेटिक पार्टी, चीनी चीकुंग पार्टी, च्युसान सोसाइटी और थाइवान डेमोक्रेटिक स्वशासन लीग। कमाल है। चीन में विपक्ष भी है! ये कब बना?

पता चला कि इन की स्थापना तो जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध काल में या राष्ट्रीय मुक्ति युद्ध काल में ही हो चुकी थी। और तभी से लोग इन्हें लोकतांत्रिक दल कहते हैं।

तो ये किसी संसद में भी चुनकर आते होंगे। मेरा बड़ा भोला सा प्रश्न था। लेकिन जवाब देने वाले ने पहले तो मुझे शरारती अंदाज में मोदी भक्त कहा और फिर तेज़ कसते हुए बोला कि ऐसे प्रश्न तुम जैसे धूर्त, काईयां आैर बदमाश पूंजीवादी करते हैं! मैं ठटाकर हंस पड़ा।

तो वे महोदय मुझे समझाने लगे : राजनीतिक क्षेत्र में चीन के लोकतांत्रिक दल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आते हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ दीर्घकारक सहयोग करने और समान संघर्ष करने के दौरान उन्होंने यह इंतिखाब किया। मेरी आंखें फटी रह गईं। मुझे लगा जैसे कल राहुल गांधी सात रेसकोर्स रोड या नागपुर जाएं और कहें कि चलिए आरएसएस के झंडे नीचे हम सब एक हो जाते हैं और अब सबसे बड़ी पार्टी भाजपा होगी और हम दीर्घकालिक सहयोग कर रहे हैं। मुझे लगा, लालू यादव, सीताराम येचुरी, ममता बैनर्जी, मायावती आदि आदि सभी यही पुकार कर रहे हैं और एक लोकतंत्र का निर्माण हो रहा है।

और उन्होंने मुझ पूंजीवादी को बताया : देखिए, चीनी संविधान के तहत चीनी लोकतांत्रिक दल राजनीतिक स्वतंत्रता, स्वतंत्र संगठन और समान वैध स्थान का उपभोग करते हैं। अब मुझे फिर हैरानी हुई। चीन में संविधान भी है! वे बोले : नहीं संविधान ही नहीं, स्वतंत्रता, समता और मानवीय मूल्य भी हैं!

वे बताने लगे : चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और इन लोकतांत्रिक दलों के साथ सहयोग करती है। उन्होंने एक खास अंदाज़ में मुझ नासमझ को समझाया : दीर्घकारक सहअस्तित्व, आपसी निरीक्षण, एक दूसरे के साथ दिल खुलने और सम्मान देने के साथ सम्मान और ख़ून बहाने के साथ ख़ून देने के बुनियादी उसूलों पर आधारित है। मैं हतप्रभ!

तो आपके इस अदभुत लोकतंत्र में विपक्ष कैसे काम करता है? मेरे इस प्रश्न पर वे पहले अचकचाए, लेकिन बाद में उन्होंने जो बताया, उसने मुझे कैलेंडर वाली उस अदभुत गाय की याद दिला दी, जिसमें समस्त देवताओं का वास बताया जाता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऐसी ही गाय है, जिसमें लोकतंत्र के समस्त देवता वास करते हैं।

प्रोफेसर ने मुझसे जो कहा, मुझे ऐसा लगा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कोई दीक्षित विचारक मेरे सामने है और वह कम्युनिस्ट पार्टी नहीं, आरएसएस के सपनों के लोकतंत्र का कोई रूपक रच रहा है।

वे कहने लगे : चीन के आठ लोकतांत्रिक दल हैं, लेकिन यहां कोई गद्दार दल नहीं है।

मैंने कहा : गद्दार मानें तो?

वह बोले : कि सब कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को मानते हैं और वे सब सत्तारूढ पार्टी के साथ मिल कर सत्ता के प्रशासन में शामिल रहते हैं। सत्तारूढ़ दल जैसा चाहता है, वे उसके हिसाब से काम करते हैं।

मुझे लगा, नागपुर और पेइचिंग के बीच कोई गर्भनाल का रिश्ता है। मैंने कहा : काॅमरेड, यही तो नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार चाहते हैं। विपक्ष उनके साथ काम करे। उनकी शर्त पर काम करे!

वे बोले : चीन की विभिन्न स्तरीय जन प्रतिनिधि सभाओं, जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलनों, सरकारों और आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक और तकनीकी विभागों में इन लोकतांत्रिक दलों के सदस्य नेतृत्वकारी पद संभालते हैं। मिसाल के लिए इन के अध्यक्ष चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थायी समिति या चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। इन आठ राजनीतिक दलों का बड़ा विकास हुआ है। चीन के सभी प्रांतों, स्वायत्त् प्रदेशों, केन्द्र शासित शहरों या बड़े और मझौले शहरों में इन की स्थानीय शाखाएं हैं।

इस लोकतंत्र के बारे में जानकर मैं चकरा गया, लेकिन फिर मुझे लगा कि अगर यह मॉडल आरएसएस के हाथ लग गया तो मेरे देश का क्या वैभव होगा! ये आरएसएस वाले तो नाहक ही वामपंथियों के विरोधी हैं। वे भारत के जिस महारोग की दवा ढूंढ़ रहे हैं, उसका असली संजीवनी पर्वत तो चीन के कम्युनिस्टों के पास है।

और विपक्ष है सत्ता पक्ष के प्रकोष्ठ और मोर्चाें की तरह। क्या शानदार व्यवस्था रची है लाल क्रांति के माओवादियों ने।

एक विपक्षी दल है चीनी कोमिनतांग पार्टी की क्रांतिकारी कमेटी

प्रोफेसर मेरे प्रश्नों पर चकरा रहे थे। मैं जब इतिहास की किताबों से होते हुए कम्युनिस्ट आंदोलन के पन्ने छानते हुए ढूंढने लगा तो पला चला कि इस क्रांतिकारी विपक्षी दल की स्थापना 1 जनवरी 1948 को हुई। यह चीनी कोमिनतांग पार्टी के लोकतंत्रीय पक्ष और अन्य लोकतंत्रीय देशभक्तों से गठित है। यह राजनीतिक लीग के रूप में चलता है और चीनी विशेषताओं वाले समाजावद के निर्माण और मातृभूमि के पुन: एकीकरण में लगा हुआ है। इस के सदस्य करीब 65 हजार हैं और वर्तमान अध्यक्ष हैं वान अश्यांग। यह प्रमुख विपक्षी दल ऐसे काम करता है जैसे भारतीय जनता पार्टी और उसका अनुसूचित जाति मार्चा।

चीनी डेमोक्रेटिक लीग

महान चीनी लोकतंत्र में एक प्रमुख विपक्षी पार्टी है : चीनी डेमोक्रेटिक लीग। इसकी स्थापना मार्च 1941 में चीनी डेमोक्रेटिक राजनीतिक दल लीग के नाम से हुई। वर्ष 1944 में इसे वर्तमान नाम मिला। यह एक ऐसा राजनीतिक लीग है, जिस का मूल संस्कृति या शिक्षा में कार्यरत बुद्धिजीवी, समाजवादी श्रमिक और समाजवाद का समर्थन करने वाले देशभक्त हैं। इस का लक्ष्य समाजवाद की सेवा करना है। लीग के सदस्य 1 लाख 56 हजार हैं, और वर्तमान अध्यक्ष हैं चांग पाओवन। इसकी स्थिति महिला मोर्चा जैसी है। लेकिन चीन इसे बेहद फख़्र से अपना विपक्षी दल कहता है।

चीनी डेमोक्रेटिक राष्ट्रीय निर्माण सोसाइटी

आइए, अब आपको मिलवाते हैं सांस्कृतिक प्रकोष्ठ से। चीनी डेमोक्रेटिक राष्ट्रीय निर्माण सोसाइटी की स्थापना दिसंबर 1945 में हुई। सोसाइटी के मूल देशभक्त राष्ट्रीय उद्योगपति, व्यापारी और इन से संबंधित बुद्धिजीवी हैं। सोसाइटी के कुल सदस्य 85 हजार हैं और वर्तमान अध्यक्ष हैं छन छांगची। यह ऐसा ही है जैसे आपसे बीजेपी की सरकार कहे कि यह हमारा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ है, लेकिन है विपक्षी दल।

चीनी डेमोक्रेसी संवर्धन सोसाइटी

चीन का विरासत फाउंडेशन। इस की स्थापना भी दिसंबर 1945 में हुई। इस के मूल शिक्षा, संस्कृति, प्रकाशन विज्ञान जैसे कामरत बुद्धिजीवी हैं। कुल सदस्य 81 हजार हैं और वर्तमान अध्यक्ष हैं यान च्वुनछी।

चीनी किसान एवं मजदूर डेमोक्रेटिक पार्टी

आओ, किसान मोर्चा से भी मिल लो। इस की स्थापना अगस्त 1930 में हुई। पार्टी के मूल स्वास्थ्य, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीक, संस्कृति और शिक्षा के जगतों के बुद्धिजीवी और समाजवादी श्रमिक और देशभक्त हैं। पार्टी के कुल सदस्य 80 हजार हैं और वर्तमान अध्यक्ष हैं छन चू। आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए कि देशभक्ति और गद्दार जैसे आजादी पहले के शब्द मोदी और उनके समर्थक चीन से ही आयात करके लाए हैं।

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त्रिभुवन

चीनी चीकुंग पार्टी

सुब्रह्मण्यम स्वामी टाइप का मामला चीन में भी है। चीनी चीकुंग पार्टी की स्थापना अक्टुबर 1925 में हुई। इस के मूल प्रवासी चीनी और इन के परिजन हैं। पार्टी के कुल सदस्य 20 हजार हैं और वर्तमान अध्यक्ष हैं वान कांग।

च्युसान सोसाइटी

ज्युसान सोसाइटी की स्थापना मई 1946 में हुई। इस का मूल विज्ञान व तकनीक, संस्कृति और शिक्षा तथा चिकित्सा व स्वास्थ्य जगतों के बुद्धिजीवी हैं। इस के कुल सदस्य 80 हजार हैं और अध्यक्ष हैं हान छीत।

थाइवान डेमोक्रेटिक स्वशासन लीग

इस लीग की स्थापना नवंबर 1947 में हुई। लीग का मूल चीन की मुख्यभूमि पर रह रहे थाइवान प्रांत के समाजवादी श्रमिक और समाजवाद का समर्थन करने वाले देशभक्त हैं। लीग के कुल सदस्य 1800 हैं और अध्यक्ष हैं लिन वनयी।

अब आप जनाब मेरी बात मानो या न मानो, लेकिन मुझे भरोसा है कि चीनी कम्युनिस्टों के महान लोकतंत्र का यह अवतार कदाचित भारत में जन्म लेकर कुछ हिन्दुत्वादी न हो जाए। और कल को आरएसएस वाले चाहे कहें या न कहें कि भाजपा राज करेगी और कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां, बसपा, सपा, ये, वो और अन्य सभी चीनी विपक्षी दलों की तरह चीकुंग, टीकुंग टाइप की भूमिका में रहेंगी। मुझे यह खतरा भाजपा और आरएसएस से नहीं लग रहा, राहुल गांधी, प्रकाश कारात, सीताराम येचुरी, मायावती, अखिलेश जैसे नेताओं से ज्यादा लग रहा है; क्योंकि वे जिस तरह की परम अकर्मण्यता और निर्वीर्यता अपनाए हुए हैं, वे जिस तरह के भ्रष्टाचार और कुप्रबंध के शिकार हैं, वे जिस तरह का आचरण कर रहे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले कुछ वर्ष में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मुद्रा में होंगे और वे स्वयं चीनी विपक्षी दलों के वामन अवतार में।

मैं देख रहा हूं, चीनी लाल माओवाद की लकीर का फ़कीर बनकर मेरे देश में भगवा किस तरह फहराने को उत्कंठित है और उससे तमाम तरह के महान क्रांतिकारी राष्ट्रीय पर्व पर फूलों की तरह अपनी ही प्रेरणों से झड़ने को बावले और उतावले हो रहे हैं।

नये विचारों के साथ नये रास्‍ते खोजने-बताने में माहिर हैं त्रिभुवन।

राजस्‍थान में दैनिक भास्‍कर के एक संस्‍करण में सम्‍पादक है त्रिभुवन, उनका यह लेख उनके फेसबुक से साभार लिया गया है।

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