आभासी दुनिया: मूंदहि आंखी कतहुँ कछु नाहीं

दोलत्ती

: आभासी दुनिया में हमारी जरूरत सब कुछ मिलता है खुल्लमखुल्ला है. एक पर एक फ्री वाले फार्मूला एवं थोक के भाव से सब कुछ मिलता है. लेकिन कुछ नही मिलता तो वह है जीवन मूल्यों की आजादी : क्लिक-क्लिक कोलम्बस :
भारद्वाज अर्चिता
फुर्सत किसी को नहीं है. ना चेहरा पढ़ने की, ना भावनाएं पढ़ने की, ना अपनों का अपनापन, अपनों की आत्मीयता पढ़ने की, सब लिखे जा रहे हैं
आरकुट, फेसबुक, ह्वाट्सएप, ट्वीटर, जीमेल, और भी दर्जनभर ऑप्शन, सोशल मीडिया की दुनिया में आई यह एक लाख प्रकार की क्रांति एवम इस क्रांति के बीच लैपटॉप, सेलफोन और टेबलेट से चिपकी पड़ी अखण्ड पृथ्वी की हमारी 7.6 बिलियन आबादी सब व्यस्त है, बहुत व्यस्त हैं, हद की हद तक व्यस्त है. किंतु सोचनीय बात यह है, “बंधु ! कि कहां व्यस्त हैं ? क्यों व्यस्त है ? कब तक व्यस्त है ?” इस बारे में किसी को ठीक-ठीक कुछ भी नही पता.
सब के सब व्यस्त एक शून्य खामोश मगर बहुत उथल-पुथल भरी बेचैन क्लिक-क्लिक कोलम्बस वाली दुनिया में । यह क्लिक-क्लिक कोलम्बस सब कुछ जान, पढ, गढ़, नाप लेता है, हां यह कोलम्बस अगर कुछ नहीं पढ़, गढ़, खोज, ढूंठ, नाप, पा रहा है तो वह है हमारा अपना परिवार हमारे अपने परिवार के नैतिक मूल्य, शुद्ध आचरण, शान्ति, स्वच्छ/स्वस्थ्य वातावरण, संस्कार, सुकून, और अपना लक्ष्य. मजे की बात तो यह है कि इस आभासी दुनिया में हमारी जरूरत सब कुछ मिलता है खुल्लमखुल्ला मिलता है. बिना लाग-लपेट कहूँ तो एक पर एक फ्री वाले फार्मूला एवम थोक के भाव से सब कुछ मिलता है. लेकिन कुछ नही मिलता तो वह है जीवन मूल्यों की आजादी. जी हाँ जीवन मूल्यों की आजादी नहीं मिलती है, और सच की आजादी नही मिलती है .
अगर इस बेलौस अथातो बंजारन अर्ची की कलम पर यकीन न आये तो आप सब स्वयम अपने विवेक के टॉर्च मे मनन-चिन्तन का सेल डालकर खटाक से अपने दिमाग की बत्ती जला लीजिए और ढूंढ लीजिये वह सच जहाँ मेरी कलम आप सभी को लेकर जाना चाहती है .
बस इतना समझ लेने मे ही भलाई है साधो की इस मायाबी मगर आत्मा तक लुभाने वाली दुनिया मे सब शो-आफ सब छद्म सब छल सब फरेब पर सबके सब घोर आभासी घोर क्लिक क्लिक. परिणाम स्वरूप हमारे सामने एक बुम्बाट सत्य प्रगट हुआ है यथा :
इस आभासी दुनिया का जो एक अंतर्यामी पहलू है
बहुत साफ साफ बिल्लकुल डेटॉल साबुन रगड कर नहाया हुआ पहलू वह यह कि :
आजकल लिखा खूब हो रहा है, सब लिख रहे हैं, खूब लिख रहे, रोज लिख रहे हैं कुछ अपना मौलिक तो कुछ चुरा कर, कुछ पैसो की बदौलत दूसरो से लिखवा कर अपने नाम से छपवाकर, पर पढ़ी कोई नहीं करता
सच्ची कह रही हूं, सौ आने सच्ची कह रही हूँ आज के भागते व्यस्त सोशल मीडिया वाले दौर मे पढ़ने की फुर्सत किसी को नहीं है. ना चेहरा पढ़ने की, ना भावनाएं पढ़ने की, ना अपनों का अपनापन, अपनों की आत्मीयता पढ़ने की, सब लिखे जा रहे हैं, बस लिखे जा रहे है, बेढंगी आभासी दुनिया के बेतुके फिंगर राईटिंग विरादरी के उतावले भेड़-चाल वाले लेखक बनकर क्लिक-क्लिक कुछ लिखे जा रहे हैं सब के सब . नागफनी के काँटो सरीखा चुभने वाली बात तो यह है साहब की यहां हल्ला के हद तक जो हल्ला है वह केवल इस बात का हल्ला है क्योंकि सब एक साथ बोल रहे है, कोई किसी को सुनने को तैयार नही. सब बोल रहे हैं, सबको बोलने की आजादी है, हुंआने की आजादी है, चिघ्घाडने की आजादी है. साँस घूटने तक की आजादी. शायद यही वजह है यायावर की वर्जनावों को तोड़कर भौगोलिक सीमा-रेखा को बौना करके अपने खुरापाती दिमाग से मात्र तीन डग में सब कुछ नापकर सब बोल रहे हैं. इतना बोल रहे हैं कि 7.6 विलियन आबादी वाले सम्पूर्ण विश्व में सिर्फ शोर है कोलाहल है. कानों को बहरा बना देने वाला शोर, सत्य को थका देने वाला झुठला देने वाला शोर.
आज की इस आभसी क्लिक-क्लिक कोलम्बस की फास्ट दुनिया में रेंग-रेंग कर सांस लेने वाले एक सफल सदस्य के पास 5000 से ज्यादे फ्रैण्ड्स होते हैं फिर भी आभासी दुनिया का यह सफल सदस्य अपने ही घर में, अपने ही आफिस में, अपने ही मुहल्ले में, अपने ही आस-पडोस में, कोई अपना नहीं वाले फार्मूले पर विचरण करता है, जीता है, बेसुरे सुर मे बिना किसी लिरिक्स के ही खर्राटे भरता है. ना वह किसी के लिए उपलब्ध है न ही कोई और उसके लिए उपलब्ध है क्योंकि उसकी जिन्दगी तो बस क्लिक-क्लिक कोलम्बस हो गई है ।
मां, पत्नी, बच्चों के साथ फेसबुक पर मदर्स डे, फादर्स डे, एनवर्सरी डे, बर्थडे, फेस्टिवल, सब गर्मजोशी से सेलिब्रीट करने वाले इस महामानव को डेढ़ दशक से उपर हो गए एक कप चाय के साथ गपसप और रात के डिनर के साथ टमाटर, ब्याज, दूध, घी, आटा, चावल पर, बच्चों की पढाई पर, घर-गृहस्थी के मुद्दे पर, मां, पिता, पत्नी, पति, बच्चों के साथ एक कमरे मे, एक टेबल पर परिचर्चा किए हुए, आपसी पारिवारिक चकल्लस किए हुए, क्योकि आज की तारीख में जिन्दगी के लिए हर एक खुशी आनलाईन मिल जाती है .
: सारे रिश्ते आनलाईन .
: सारी रिश्तेदारी आनलाईन .
: सारी खुशी आनलाईन .
: सारे दर्द आनलाईन .
: अपनों के अपने पन का सारा एहसास आनलाईन .
: अपनेपन की सारी भावनाएं आनलाईन.
: सारा घर – परिवार आनलाईन.
: बिटिया रानी की गुलाबी वाली फ्राक आनलाईन.
: बेटे की स्केल, कलर पेंसिल, एवम स्कूल यूनिफार्म आनलाईन.
: घर का सारा किचेन आनलाईन.
: सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, रात का खाना.
: बर्गर, पिज़्ज़ा, आइसक्रीम, आनलाईन .
: सुबह आनलाईन, साम आनलाईन,रात आनलाईन.
सच कह रही हूँ बहुत व्‍यस्त है यह 7 महासागरों,195 देशों, और 7.6 याने के 7,595,845,895 विलियन वाली यह हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी. किसी के पास किसी के लिए समय नही सब अपनी अपनी दुनिया में सेलफोन. टेबलेट. लैपटाप के सहारे एकांतवाश के शिकार वह भी अनिश्चित काल तक के लिए. पर वर्तमान तकनीक और विज्ञान की माने तो यहां इस क्लिक-क्लिक कोलम्बस वाली दुनिया में भी शट द डोर के नियम का चलन है यही नही जनाब बल्कि इस पर तो बाकायदे कानून भी लागू होता है यथा शट द डोर का कानून. फॉर्मेट एंड डिलीट का कानून. गंभीर चुनौती तो यह है की यहाँ स्वस्थ जिंदगी के बैकअप की कोई गारंटी नहीं बचती है ।
मतलब क्लिक-क्लिक कोलम्बस वाले इन सभी बाहुबली संसाधनों का दरवाजा बाई लक / किस्मत से किसी दिन अगर बंद हो गया तो ..?? मेरा मतलब है अचानक से कुछ ऐसा बवण्डर हो जाए जिसके झोंके मे :
शट द मोबाइल.
शट द टेबलेट.
शट द लैपटॉप.
ओह यह तो बेहद अफसोस जनक स्थिति होगी हमारा क्लिक-क्लिक कोलम्बस तो बहुत अकेला हो जाएगा अर्ची उसकी आभासी दुनिया फुर्र. उसकी आभासी दुनिया की 5000 फ्रैन्ड सर्किल फुर्र. उसका सुकून फुर्र. उसका सुख-चैन फुर्र. उसके आसपास तो केवल घुप्प अकेलापन ही बचेगा और उसके सारे शट द संसाधन उससे बिलबिला कर कुछ इस तरह बिलाप कर रहे होंगे।
मैं तो हूं क्लिक-क्लिक कोलम्बस.
मैं तो हूं आभासी दुनिया.
सुनो सयाने / मूरख बंदे
मेरा तो दर्शन केवल इतना.
मेरा तो सच केवल इतना .
मुदहि आंखी कतहुँ कछु नाहीं
( दोलत्‍ती डॉट कॉम पर हम आप तक एक नयी व्‍यंग्‍य कॉलम श्रंखला प्रस्‍तुत करने जा रहे हैं। इस कॉलम का नाम है क्लिक-क्लिक कोलम्‍बस। इसकी लेखिका हैं प्रतिष्ठित लेखिका, चिंतक, और पत्रकार भारद्वाज अर्चिता। हमारी कोशिश रहेगी कि अर्चिता का यह प्रयास आप तक हर दूसरे पहुंच जाए। तो पहले बात की जाए अर्चिता पर। मूलत: गोरखपुर की रहने वाली भारद्वाज अर्चिता का लेखन बाल रचनाकार के रूप में शुरू हुआ। हिंदी, अंग्रेजी विषय में स्नातक, हिंदी साहित्य मे परास्नातक एवम पत्रकारिता मे स्नातक के बाद 3 जुलाई वर्ष 2007 मे दैनिक जागरण समाचार पत्र से जुडी। वर्तमान मे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश सहित देश भर की अनेक पत्र-पत्रिका में स्तम्भकार के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं।
नई दिल्ली से निकलने वाली पत्रिका “भारतीय धरोहर” मे ब्यूरो चीफ के पद पर कार्यरत रहते हुए भारत की ऐतिहासिक विरासत पर अपने विशेष स्तंभ लेखन के तहत इनके अनेक स्तम्भ को पांच हजार से भी ज्यादा पाठकों द्वारा पढ़े एवम स्वस्थ कमेन्ट दिए जाने के कारण पत्रिका की तरफ से वर्ष का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला स्तम्भ घोषित करते हुए इन्हे सम्मानित किया गया। दिसम्बर 2018 मे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पर इनकी समीक्षा देश के कई पत्र-पत्रिका ने अपने यहाँ पब्लिश किया, मध्य प्रदेश से चलने वाले “Khabar Digital Channel” ने अपने यहाँ इसे प्रथम स्थान दिया था !
पिछले कुछ वर्षो से भारद्वाज अर्चिता स्माइली लाइव क्रिएशन्स के तहत मातृशक्ति, एवम नारी शक्ति को समर्पित किताब पर लेखन कार्य कर रही हैं
हाल ही इनकी नयी किताब “संघर्ष से सफलता तक की आत्मकथा” पब्लिश्ड हुई है ।
अर्चिता से आप मोबाईल नम्बर : 9919353106 और architaved@gmail.com के माध्‍यम से सम्‍पर्क कर सकते हैं। )

1 thought on “आभासी दुनिया: मूंदहि आंखी कतहुँ कछु नाहीं

  1. Archita एक बेहतरीन लेखक और पत्रकार है. इनकी लेखनी सार्थक विषयों पर हमेशा चलती रहती है. शुभ आशीष है Archita को.

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