भावुक समाज है राजस्‍थान, उसकी कुल-देवी है पद्मिनी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: दरअसल, यह संस्‍कार है राजस्‍थान का, जिसका आदर्श है पद्मिनी : उसे बाइक-चौरा तक का अपमान असह्य, उसे चिढ़ाइये मत : सभी राजनीतिक कोने इस मसले पर अपने-अपने वोटों का ध्रुवीकरण कर चुके :  पद्मिनी। श्रद्धा-शिखर दरका, दावानल भड़का- तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दरअसल, यह संस्‍कार है राजस्‍थान का, जिसका आदर्श है पद्मिनी। रानी पद्मिनी, जिससे लम्‍पट खिलजी की नापाक ख्‍वाहिशों की खिल्‍ली उड़ाने के लिए जौहर अपना लिया। और सिर्फ पद्मिनी ही क्‍यों, राजस्‍थान तो ऐसी आस्‍थाओं को प्रतीकों में बदलने में कुशल है। यही तो उसका असली मर्म है, उसकी जिन्‍दगी का अर्थ भी। आप जोधपुर से पाली की ओर बढिये। बीच सड़क पर एक पेड़ पर टंगी एक बाइक मिलेगी, जहां उसके आसपास एक पुण्‍य-स्‍थल बनाया गया है। यह एक दुर्घटना-स्‍थल है, पचीसों बरस पुराना। लेकिन आज उसे पूजा-स्‍थल के चौरा में तब्‍दील कर दिया। आस्‍था का आलम यह है कि इधर से गुजरने वाला हर वाहन-चालक उस चौरा पर माला चढ़ाता है, टीका लगाता है।

दरअसल, एक भावुक समाज है राजस्‍थान। ऐसे में वह अपनी आदर्श आस्‍था की नायिका का अपमान कैसे सहन कर पाये। भले वह मंदिर हो अथवा कोई कला, उसे गंदला कैसे सहन कर सकता है यह समाज। हां, आपको अगर उनके व्‍यवहार पर आपको कोई ऐतराज हो, तो बेहतर होगा कि आप आप उसे समझाने की कोशिश कीजिये। अधिकांश मामलों में तो तो वह समझने के लिए तैयार हो जाएगा। लेकिन अगर आपने उसके आस्‍था केंद्रों को अपमानित करने की कोशिश की, या उसे तोड़ने का प्रयास किया, कुछ अनाचारी कहानी जबरन थोपी, उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की साजिश की, तो तलवार खींचने पर आमादा निकल पड़ेगा यह आन-बान-शान वाला राजस्‍थान। प्रमाण चाहिए, तो इतिहास से पूछिये।

चुनाव तो फिलहाल गुजरात में डांडिया कर रहा है। ऐसे में भाजपा शासित राज्‍यों ने ऐलान कर दिया है कि वे अपने यहां यह फिल्‍म का प्रदर्शन नहीं करने देंगे। मतलब यह है कि खूबसूरती का प्रतीक रही पद्मिनी फिलहाल राजनीति का एक नायाब सौंदर्यशाली पत्‍ता बन चुकी है। सभी राजनीतिक दल इस मसले पर अपने-अपने वोटों का ध्रुवीकरण कर चुके हैं। तीर-कमान, तेजे-भाले तैयार हैं। कम से कम गुजरात की सरगर्मी होने तक यह किस्‍सा सामाजिक सद्भाव की खाई को गहरा करता ही रहेगा।

जायसी की अपनी कल्‍पनाओं में खिलजी जैसे क्रूर शासक से आजिज होकर पद्मिनी ने जौहर तो किया था। लेकिन आज हकीकत में हमें यह तो मानना ही होगा कि मान्‍यताओं और आस्‍थाओं की नींव वाले इतिहास से बनी वर्तमान की अट्टालिका पर ठेस लगाना पूरे देश को सामूहिक जातीय-कुण्‍ड की दहकती ज्‍वाला पर जौहर पर झोंकने की नजीर बनती जा रही है पद्मावती। ( क्रमश: )

प्रेम और त्‍याग पर केंद्रित एक काल्‍पनिक कथानक की नायिका पद्मिनी सदियों से श्रद्धा के सर्वोच्‍च पायदान पर विराजती रही है। लेकिन आज उसी सर्वोच्‍च शिखर की इमारत को दरकाने की कोशिश शुरू हो गयी, तो तांडव शुरू हो गया है। इसी सब्‍जेक्‍ट पर यह लेख श्रंखला-बद्ध रूप में प्रस्‍तुत किया जा रहा है। अगर आप इसकी बाकी कड़ी देखना चाहें, तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

पद्मिनी। शिखर दरका, दावानल भड़का


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