यह है हमारे महान अखबारों की असलियत: दलित आंदोलन को ठेंगा, हनीमून में तेंदुआ पर हंगामा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: खुद को राष्‍ट्रीय अखबार का पाखण्‍ड करते चार अखबारों की पोल खोल दी है दिलीप सी मंडल ने : अहमदाबाद में दलितों की एक रैली पर एक भी लाइन नहीं छापी इन अखबारों ने :  दैनिक भास्‍कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्‍दुस्‍तान खुद को जन-समर्थक बताते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दिलीप सी मंडल अब पत्रकार नहीं रहे हैं, लेकिन एक वक्‍त था जब वे जन-प्रतिबद्धता के लिए पहचाने-जाने थे। इण्डिया टुडे का सम्‍पादन भी कर चुके हैं दिलीप सी मंडल। पहले वे जन-प्रतिबद्ध थे, लेकिन अब केवल दलित-विमर्श पर काम करते हैं। जगह है सोशल साइट्स और खास कर फेसबुक। उनकी हर पोस्‍ट पर अक्‍सर गम्‍भीर बातें दर्ज होती हैं, लेकिन ज्‍यादातर पोस्‍ट में कमेंट करने वाले लोग उनकी बात पर मां-बहन की गालियों से नवाजते हैं।

बावजूद इसके कि मैं दिलीप सी मंडल से सहमत नहीं। उनकी शैली निहायत शर्मनाक और केवल घृणित जातीय के कींचड़ से सनी हुई होती है। दुनिया का कोई भी काम हो रहा हो तो दिलीप सी मंडल अपना दिमागी कचरा परोस देते हैं। उनका वश चले तो वे सवर्णों को सरेआम जुतियाएं, लतियाएं और इसके लिए वे कानून और संविधान को भी अपनी जूती के नोक पर रखते हैं। दिलीप सी मंडल की ऐसी घटिया तब पनपी है जब वे बेरोजगार हो गये। मतलब यह कि नौकरी मिलते ही वे जन-प्रतिबद्ध हो जाते हैं और बेरोजगार होते ही जातीयता का जहर फैलाना शुरू कर देते हैं। अक्‍सर तो झूठ और अनर्थकारी पोस्‍ट करते हैं दिलीप मंडल। उनका कहना होता है कि जो कुछ भी अच्‍छा है, वह केवल दलितों का किया है, और जो गलत है उसके लिए केवल सवर्ण ही जिम्‍मेदार हैं।

लेकिन यह भी हकीकत है कि दिलीप में पत्रकारिता के सकारात्‍मक-सार्थक कीड़े कभी-कभार रेंग ही पड़ते हैं। आज भी यही हुआ। गुजरात में दलितों की एक सभा को लेकर दिलीप मंडल ने देश के चार प्रमुख हिन्‍दी अखबारों की बखिया उधेड़ डाली। उन्‍होंने इन चारों अखबारों की विवेचना और विश्‍लेषण के बाद पाया कि इन अखबारों में उक्‍त दलित आंदोलन की एक भी खबर नहीं है। जबकि नैनीताल में हनीमून मनाने गये एक नवयुगल के कमरे में दाखिल हुए एक तेंदुए के घुसने की खबर पर खूब चटखारा लिया गया है। इतना ही नहीं, यह भी खबर प्रमुखता से छापी हैं इन अखबारों ने कि एक दूल्‍हे ने दो सौ फीट की ऊंचाई से लटक कर शादी की है।

 

दिलीप सी मंडल की पोस्‍ट पर एक नजर डालिये। वे कहते हैं कि:- ये भारत के चार सबसे बड़े अखबार हैं. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान और अमर उजाला. इनके लिए पहले पन्ने की बड़ी खबर गुजरात का दलित विद्रोह नहीं है.

तो पहले पन्ने की देश की बड़ी खबरें क्या है?

1. दूल्हे ने 200 फुट पर लटककर शादी की

2. नवदंपति के कमरे में घुसा तेंदुआ

3. आमिर खान पर पर्रिकर के बयान से बवाल

4. पीएम ने साइबर अपराध पर चेताया

पढ़ते रहिए. वे आपको मूर्ख समझते हैं. अगर आप सूचनाओं के लिए सिर्फ अखबारों और चैनलों पर निर्भर हैं, तो फिर आपका कुछ नहीं हो सकता.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *