भाड़ में जाए नोटबंदी, कानपुर में बिक रहे हैं 2 करोड़ में फ्लैट। वह भी ह्वाइट

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: ठस्‍सम-ठस्‍सी वाले कानपुर के धन्‍ना-सेठ अब लैविश जीवन-शैली में फूंक रहे हैं दौलत : कम्‍पनी बाग के पास बने 50 मंजिली अपार्टमेंट में कुल 500 फ्लैट की कीमतें आसमान छू रही हैं : मंदी से जूझते बिल्‍डरों द्वारा ह्वाइट-मनी का धंधा करना आश्‍चर्यजनक है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आप जितना भी हल्‍ला-बवाल कर लें, लेकिन सच बात यही है कि देश में कुछ इलाके आज भी ऐसे हैं जहां रूपयों का कोई मोल नहीं। वहां केवल स्‍वाद और संतुष्टि ही सर्वोपरि होती है। और उससे भी ज्‍यादा जरूरी होता है उनकी उदार टेंट, यानी उनकी तिजोरी। माल बस पसंद होना चाहिए, फिर कोई दिक्‍कत नहीं। पसंद आया, तो नक्‍की करने में देरी नहीं लगाते हैं यहां के लोग।

जी हां, आपके भले ही इस बात पर यकीन न आये, लेकिन सच यही है कि कानपुर के धन्‍नासेठों के पास बेशुमार रकम है, और उससे भी बड़ी बात तो यह है कि उनके पास कितनी भी बड़ी रकम अदा करने का जिगरा यानी कूबत भी है। यकीन नहीं आ रहा हो तो कानपुर के कम्‍पनी बाग के इलाके में घूम जाइये। यहां रकम खर्च करना अब कत्‍तई मुश्किल नहीं है। आइये, कंपनी बाग के पास बनी 50 मंजिली कॉलोनी के फ्लैट की कीमत पूछिये। जवाब मिलेगा दो करोड़। कम से कम रेट है यहां। रेट इसके बाद ही शुरू होते हैं।

एक ओर जहां पूरे देश का भवन-निर्माण की कम्‍पनियां आजकल बेहिसाब मंदी से जूझ रही हैं, वहीं कानपुर के बिल्‍डरों द्वारा ह्वाइट-मनी का धंधा करना आश्‍चर्यजनक है। जी हां,  कानपुर में उद्योग और उद्योगपतियों का पलायन भले ही हो गया हो, लेकिन आज भी कम से कम कानपुर एक ऐसा कुबेर स्थल है जहां धन का भंडार जमा है। रूपया होना और उसे सफेद रकम के तौर पर समेटे रखना शायद कानपुर शहर के अलावा किसी और महानगर में नहीं।

अमर उजाला दैनिक समाचार पत्र के सम्‍पादक रह चुके शम्‍भूनाथ शुक्‍ल इस बारे में खासी जानकारियां बांटते हैं। कानपुर पर बातचीत करना और उसे सुनना-पढ़ना शुक्‍ला की प्राथमिकताओं में से है। वजह यह भी है कि वे आज भले ही गाजियाबाद में रह रहे हों, लेकिन हैं तो मूलत: कानपुर के ही। वे बताते हैं कि कानपुर और वहां के बाशिंदा यानी कानपुरियों का अंदाज बेमिसाल है। यहां रूचि अलहदा है। हालांकि शुक्‍ला जी मानते हैं कि यह शहर विसंगतियों का महानगर है।

वरिष्‍ठ पत्रकार शम्‍भूनाथ शुक्‍ल आजकल कानपुर और उनके बाशिंदों यानी कनपुरियों पर लिख रहे हैं। हालांकि फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन उनके इस शोध का शीर्षक होगा शहरनामा या कानपुर-नामा। करीब एक बरस से इस अभियान में जुटे हैं शम्‍भूनाथ शुक्‍ला। इसी विषय पर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरीबिटियाडॉटकॉम ने लम्‍बी बातचीत की। उस वार्तालाप की विभिन्‍न कडि़यों के तौर पर हम विषयवार प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कीजिए:-

कानपुर-कनपुरिया

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