कुर्मी आयेगा, न। ठाकुर देगा, न। मुसलमान, बिखर गया। कैसा समीकरण?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अब तो दामन फैलायेंगी मायावती मुसलमानों के दरवज्‍जे पर, दे सकती हैं एक सीट : व्‍यापक दलित हित में दलित को त्‍याग सकती है एक सीट बसपा :  भाजपा के पास केवल एक ही तुरूप का पत्‍ता है, न जाने कब चल जाए :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राज्‍यसभा में सदस्‍यों के मनोनयन को लेकर होने वाली बैठक के ठीक पहले पत्रकारों से बातचीत करते हुए शिवपाल ने ऐलान किया कि राज्यसभा कैंडिडेट्स की लिस्ट पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड के सामने रखी जाएगी। बोर्ड मेम्बर्स द्वारा नामों को फाइनल करने के लिए नेताजी को अधिकृत किया जाएगा और मुलायम सिंह यादव इन लोगों के नाम पर मुहर लगायेंगे।

इसके फौरन बाद मीटिंग शुरू हुई। सबसे पहला नाम अमर सिंह का नाम तय हुआ तो आजम खान ने बैठक का बहिष्‍कार कर दिया। हालांकि अमर के नाम पर रामगोपाल भी बिदके थे।

यह है समाजवादी पार्टी में लोकतंत्र, अनुशासन और सीटों को लेकर सर्वसम्‍मति से चुने जाने की प्रक्रिया का एक नमूना। खैर कुछ भी हो, आज की बैठक के बाद तय ह है कि समाजवादी पार्टी की ओर से राज्‍यसभा की रिक्‍त सीटों में अमर सिंह के अलावा बाकी कैंडिडेट्स में बेनी प्रसाद वर्मा, रेवती रमण, संजय सेठ, सुखराम यादव, वि‍शम्‍भर प्रसाद नि‍षाद और अरविंद प्रसाद को मनोनीत होंगे।

जबकि पिछले दो चुनावों में यह साफ हो चुका था कि बेनी प्रसाद वर्मा अब कुर्मी वोटबैंक के एकमात्र चेहरा नहीं रह गये हैं। उनमें से एक चुनाव में उनका बेटा अपनी जमानत जब्‍त करा चुका है और खुद बेनी प्रसाद चौथे स्‍थान पर आ सरक चुके हैं। यह तब हालत है जब कि गाडा और बराबंकी बेनी के बायें हाथ का खेल माना जाता है। लेकिन कुर्मी वोटों ने इन दोनों ही मामलों में बेनी को चारों खाने चित्‍त कर दिया। यानी असल समस्‍या अब विकराल होने वाली है, जानकार सूत्रों के मुताबिक तो ऐसा ही है। सूत्र बताते हैं कि सपा अब दगे कारतूसों पर नगाड़े-तुरही बजाने की कोशिश कर रही है।

इस चुनाव में ठाकुर वोटों की जो छीछालेदर हो चुकी है, वह जगजाहिर है। सपा ने अमर सिंह को सन-2008 से ही मरे चूहे की तरह खूब पटखनियां दी हैं। राजा भइया को जिस तरह पहले मंत्री बनाया और फिर हटाया और उसके बाद फिर मंत्री बनाया, उससे ठाकुर वोटों में अजीब निराशा है। ऐसे में अमर सिंह क्‍या नया गुल या चमत्‍कार कर पायेंगे, खुदा जाने। वैसे भी अमर सिंह ठाकुर वोटों के कम जोड़तोड़ वाली राजनीति के ही शातिर खिलाड़ी साबित होते रहें हैं। लेकिन इस बार तो जैसी फड़-बिसात पर अमर सिंह अपनी शकुनी-चाल चलने में माहिर थे, वह बिसात की रंगत ही बदल चुकी है।

बावजूद इसके कि मुसलमान वोट अब सपा की बपौती नहीं रह गयी है, लेकिन फिर भी आजम खान के तौर पर सपा में एक पोस्‍टर तो मौजूद ही है। लेकिन अमर सिंह से उनकी जानी-दुश्‍मनी के चलते भी माई-समीकरणों को हल करने में खासी दुश्‍वारियां हा सकती हैं। वैसे भी इस सीटों में मुसलमानों को एक भी सीट न दिया जाना मुसलमानों के चेहरे की रंगत बदल सकता है। और यह अगर हुआ तो खासा नुकसान हो सकता है सपा को।

ऐसे में बसपा का अगला दांव खासा चमत्‍कारिक हो सकता है। हो सकता है कि अपने कोटे की दो सीटों में से एक सीट मायावती सीधे मुसलमान को सौंप दें। ऐसा हुआ तो कमाल हो जाएगा। कांग्रेस-रालोद के बीच हो रही एक जोड़तोड़ का कोई मतलब ही नहीं है। और उधर भाजपा को केवल अपने तुरूप की चाल की ही प्रतीक्षा है। यह पत्‍ता ही भाजपा का अंतिम ब्रहमास्‍त्र साबित होता रहा है। और कहने की जरूरत नहीं कि इस नूरा-कुश्‍ती में सहभागिता होती है सपा की।

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