गोरखपुर अमर उजाला: नये सम्‍पादक आये, तो कूच कर गये प्रभारी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: गोरखपुर में पिछले ढाई महीनों से लगातार छुट्टी पर हैं मृगांक पाण्‍डेय, बताया कि पिता जी बीमार हैं : राजेश श्रीनेत्र के जमाने में रिपोर्टिंग-स्‍टाफ को खूब मथा था मृगांक ने, कुमार भावेश ताश की नयी गड्डी लेकर फेंटने के चक्‍कर में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : क्‍या मृगांक भइया, तुम तो ऐसा लापता हुए कि महान गोरक्ष-क्षेत्र में तुम्‍हारी कहीं गंध तक नहीं दिख रही है। न चरण दिख रहे हैं और न ही दैदिव्‍यमान मुखमंडल। मुखार-बिन्‍दु देखने के लिए लोग तरस गये हैं। ऐसा क्‍या हो गया गोरखपुर में, कि तुम मुरादाबाद में विलीन हो गये। कब आओगे भइया, कब त्राण दिलाओगे भइया हम सब निरीह चेला-चपाडि़यों का कल्‍याण करने।

आपने गुमनाम फिल्‍म तो देखी ही होगी। अरे वही मनोजकुमार और नंदा वाली फिल्‍म, जिसमें प्राण, धूमल, महमूद, हेलेन, मदनपुरी थे, और उसका गीत लता मंगेशकर ने गाया था। फिल्‍म फेयर अवार्ड पाया था इस फिल्‍म ने। जी हां, वही फिल्‍म। ठीक उसी गीत के टाइटिल-सांग की तरह आज गोरखपुर के अमर उजाला में यही सदायें गूंज रही हैं:- गुमनाम है कोई।

मृगांक पाण्‍डेय भी उसी तरह लापता हो गये हैं, जब से यहां सम्‍पादक की कुर्सी पर आये हैं कुमार भावेश। लखनऊ से आये हैं भावेश। उसके पहले रहे राजेश श्रीनेत्र अब रोहतक एडीशन में सम्‍पादक बना कर भेजे गये बताया जाता है। बताते हैं श्रीनेत्र की खूब छनती थी मृगांक की। कारण यह कि श्रीनेत्र सारा काम मृगांक के हवाले कर दिया करते थे, ऐसे में सारे सम्‍पादक-कर्म मृगांक निपटाते थे। सूत्र बताते हैं कि श्रीनेत्र के आठ महीने के यहां के कार्यकाल में मृगांक ने पूरी यूनिट को हिला दिया था।

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श्रीनेत्र के जमाने में मृगांक की ही तूती बजी, जबर्दस्‍त उठापटक हुई। मंडल मुख्‍यालय के अनुपम को हटा कर गोरखपुर भेजा गया, और वहां अरूण पाठक भेजे गये। देवरिया से पवन मिश्र को हटा कर सुधीर श्रीवास्‍तव को भेजा गया। ऐसे में पवन ने अमर उजाला छोड़ कर कम हैसियत में जागरण ज्‍वाइन कर लिया।  जबकि सुधीर अनजान से पत्रकार थे। कुशीनगर से चेतन हटाये गये और हिन्‍दुस्‍तान से उदयभान को लाया गया। महराजगंज में विनोद राय को हटाया गया, और उनकी जगह संजय मिश्र बिठाये गये। नतीजा, विनोद ने मुजफ्फर जागरण ज्‍वाइन कर लिया। खलीलाबाद से कुमार शोभित को हटाया गया, लेकिन चंद दिनों बाद उन्‍हें वापस वहीं बिठा दिया गया।

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लेकिन आठ महीने बाद ही श्रीनेत्र का विदाई-गीत सम्‍पन्‍न हो गया। नये आये भावेश की कार्यशैली बिलकुल अलहदा थी। परिणामस्‍वरूप मृगांक पैदल होने लगे। और हालत यह है कि मृगांक अब खुद ही गोरखपुर छोड़ने का मूड बना चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि वे इस जुगाड़ में हैं कि कैसे भी हो, किसी भी यूनिट में चले जाएंगे, गोरखपुर से दूर। लेकिन चूंकि अभी जुगाड़ नहीं हो पा रहा है, इसलिए मृगांक लम्‍बी छुट्टी पर निकल गये हैं। हालांकि उनकी करीबी बताते हैं कि उनके पिता जी की तबियत खराब है, और इसीलिए वे मुरादाबाद में हैं।

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