बापू को गाली देना आसान, समझना-जीना उससे आसान। कोशिश कीजिए न

दोलत्ती

: अदालतें में अधिकांश मुकदमे झूठी गवाही से छूटते हैं : हम-आप बात-बात पर झूठ बोलते हैं, गांधी ने एक बार भी झूठ नहीं बोला : नोआखाली दंगे में गांधी अकेले भूख हडताल पर बैठे, आप कर पाते : घर के बंटवारे में छोटे भाई का हिस्‍सा नहीं दिया जाना चाहिए ? गांधी ने न्‍याय किया तो आप बिफर पड़े : यह है तुम्‍हारी विश्‍व-गुरुता कि आपने ही पिता की हत्‍या कर दी : 

कुमार सौवीर

लखनऊ : तनिक अपने गिरहबान में झांकिये न। हम-आप बात-बात पर झूठ बोलते हैं, लेकिन गांधी ने एक बार भी झूठ नहीं बोला। आप ऐसा कर सकते हैं? कोई गुण है आपके पास, जो आप गांधी को गाली दे सकें? लेकिन गांधी ने जीवन भर किसी को गाली नहीं दी, सिर्फ लोगों को समझाते रहे, दुलारते रहे और प्रेम करते रहे। मकसद सिर्फ यह कि हिन्‍दुस्‍तान सभी धर्मों का एक अनोखा गुलिस्‍तां बन जाए।

वैसे आपको किस तरह का चमन चाहिए था या है ? गांधी ने लाठियां खायीं, आप अपनी जातियों को पीटने पर आमादा है। वे सभी नागरिकों को सम्‍मान के साथ रहने की आजादी की स्‍वतंत्रता चाहते थे, आप उन्‍हें अपने धर्म-विरोधियों को देश से बाहर निकाल देने पर आमादा रहते हैं। देश न बंटे इसके लिए भूख हड़ताल कर बैठते थे, आप अपनी लाठी को तेल पिलाते हैं और बंदूकों में बारूद भरते हैं। गांधी का हर व्‍यवहार स्‍पष्‍ट था, आप चुपके से छुरी मारते हैं। नोआखाली दंगे में गांधी अकेले दम पर भूख हडताल पर बैठ गये, जबकि आप अपनी चारदीवारी को मजबूत कर घर में मालपुआ और दूध डकारने में जुट गये।

सच बात तो यही है कि जिन्होंने अपनी जेब में भरपूर बापू छाप नोट घुसेड़ लिए हैं, वे ही देश की सारी समस्या का जिम्मेदार गांधी पर ही थोपते हैं। गांधी को दुराचारी, राष्ट्र-विरोधी कहते हैं। मुस्लिम परस्त और दुनिया का सबसे बड़ा पातकी करार देते हैं। सबसे बड़ा आरोप है कि गांधी ने 60 करोड़ पाकिस्‍तान को देने की जिद की, तो क्‍या गलत किया। घर के बंटवारे में मुखिया ही सबकी हिस्‍सेदारी तय करता है। गांधी हम-आप की तरह नहीं थे। सदियों में एकसाथ रहे थे करोड़ों बच्‍चे। हिन्‍दुस्‍तान के बंटवारे के बाद नये बनने वाले देश में अगर कुछ बच्‍चे जाना चाहते थे तो उनको जायज हक दिलाना चाहते थे बापू। जिन्‍हें ऐसा नही पसंद था, वे कत्‍लेआम पर आमादा हो गये। बापू को गालियां देने लगे।

सच बात यह जरूर है कि हत्‍याओं की शुरूआत पाकिस्‍तान के लोगों की तरफ से ही हुई थी, लेकिन बंटवारा के दौरान मारपीट, हिंसा, कत्‍ल क्‍या आपके आसपास गली-मोहल्‍ले या शहर में नहीं होता है क्‍या ? सच बात तो यह है कि बंटवारे और उस हिंसा का तनाव बढाने के लिए दोनों ही लोगों ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। हालात तब भी ऐसे ही थे, जैसे आज मौजूद है।

गांधी जी के साथ ही उनके ही सामानान्‍तर रहे शास्त्री का भी जन्‍मदिन है। अब आज आप खुद देख लीजिए कि ऐसे लोग ही बढ़-चढ़ कर गांधी-प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे। गांधी जी का जयजयकारा लगाएंगे कि महात्मा गांधी जी अमर रहें। गांधी प्रतिमा पर माला चढ़ाते हुए फोटो खिंचाएँगे। भाषणों में महात्मा जी का गुणगान करेंगे। लोगों को लड्डू खिलाएंगे। लेकिन मंच से उतरते ही गांधी पर गालियां देंगे। ऐसे सभी लोगों को भी महात्मा गांधी और शास्‍त्री-जयंती की बधाई, ढेर सारी बधाई।

काश ! दिखावा ही सही, लेकिन बरस में चंद घण्टों के बजाय अगर यह लोग एक दिन, महीना और पूरा साल गांधी के गुणों को आत्मसात कर लें तो आत्म-शुद्धि के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं।

गांधी और शास्त्री के जन्‍मदिन के इस पुनीत अवसर पर अगर आप आत्म-सुधार का पहला सबक सीखना चाहें तो मेरा दावा है कि सिर्फ इसी दिन आप अगर गांधी को समझने की कोशिश कर लेंगे, तो वाकई इंसान बन जाएंगे। गांधी क्लिष्‍ट नहीं, बेहद सरल हैं। बशर्ते कोई समझना तो चाहे। बेवजह दुराग्रह रखने वालों के लिए जो सिर्फ गांधी को गालियां देना ही अपना धर्म समझते हैं, उनका क्‍या कहा जाए। लेकिन जो विद्यार्थी भाव में प्रयास करे, उनके लिए गांधी हर पल नये-नये अद्भुत स्‍वरूप में सामने आ जाते हैं।

गांधी की राजनीति का इकलौता रास्‍ता था अहिंसा। उसके लिए उन्‍होंने अपनी सारी संचित मेहनत, परिश्रम और सम्‍मान तक को ठेंगे पर रख दिया। चाहे वे भगत सिंह और उनके साथियों को गोरी हुकुमत द्वारा फांसी देने के बाद गांधी के खिलाफ भयावह विरोध की लहर रही हो, या फिर चौरीचौरा पुलिस थाने में पुलिसवालों की हत्‍या पर गांधी द्वारा अपने आंदोलन को खत्‍म करने उस वक्‍त फैसला किया, जब वह आंदोलन अपनी सर्वोच्‍च पायदान तक पहुंच चुका था। क्‍या आप ऐसा कर सकते हैं?

गांधी ने जो भी फैसला किया, उसने पूरे देश की राजनीति की बयार फैल गयी और पूरे देश में गांधी का नाम राजनीतिक-प्रणेता के तौर पर स्‍थापित हो गया। और तुमने जो फैसला किया, उसमें तुम्‍हारा मकसद था गांधी को छोटा से छोटा कर देना। इसलिए तुमने नोटबंदी में सारे पुराने करेंसी नोट बदल कर उन्‍हें छौटे कर दिये। इतना ही नहीं, तुमने हर नोट पर गांधी का चेहरा उलट-पलट दिया। जरा सोचा तो कि तुमने ऐसा क्‍यों किया और उसका लाभ क्‍या निकला।
एक बार सोचना जरूर मेरे दोस्‍त, बहन, भाई, बेटी और बेटों। गांधी को पढ़ना, समझने की कोशिश भी करना कि जो फैसले गांधी ने उस वक्‍त किया, आप अगर उस वक्‍त होते तो क्‍या फैसला करते। जो भी सार-तत्‍व तो उस मनन करने के बाद हासिल करोगे, भविष्‍य में तुम्‍हारे बड़े आड़े वक्त-जरूरत पर बहुत काम आएगा।

चलो, अब अपना कामधाम शुरू करो। मैं गांधी को नये सिरे से खोजने, समझने और आत्‍मसात करने जा रहा हूं।

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।

मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
रामनाम शुं ताली रे लागी,
सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।

वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां,
कुल एकोतेर तार्या रे ॥

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥

यह भजन पंद्रहवी शताब्‍दी में गुजरात के मशहूर भक्‍त-संत नरसी मेहता का लिखा है, जिन्‍हें नर्सी मेहता के नाम से भी पहचाना जाता है। महात्‍मा गांधी की सभाओं में गाये जाने वाले भजनों में यह भजन सर्वोच्‍च और भावुक स्‍तर पर सम्‍मानित माना जाता था। आज भी। उसे सस्‍वर गाना शुरू कीजिए, तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और लगेगा जैसे गला रुंध गया,आंखें नम होने लगेंगी।

1 thought on “बापू को गाली देना आसान, समझना-जीना उससे आसान। कोशिश कीजिए न

  1. यक़ीनन….आपने महात्मा गांधी जी की जमीनी हकीकत से रूबरू कराकर कलयुगी देशलुटेरे बाहुबली हिटलरशाह इमोशनल ड्रामेबाजी में माहिर नौटंकीबाज तथाकथित सफेदपोशों के और उनके तथाकथित अनुनाईयों के मुंह पर जबर्दस्त तमाचा जड़ दिया परम आदरणीय भ्राताश्री जी… 🤔🤔🤔
    ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों क्रांतिकारियों की जयंती के पावन अवसर पर गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी के चरणों में ये नाचीज़ बन्दा बारंबार नतमस्तक होकर कोटि-कोटि नमन करता है…🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🎉🌺🌺🌺जय हो! 🙏🙏🙏🌹🌹🎉🌺🌺🎉🌹🌹

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