बड़े नेताओं के पूर्वज गोरों की जूतियां हथेलियों में सहेटते थे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: औकात शब्‍द का मतलब लगान के लिए जमीन का लेखा-जोखा करना : अंग्रेज बहादुर के पेन के लिए शीशी का दावात होता था, जरा हिलते ही तमाचा पड़ता था : तनिक भी विरोध के स्‍वर दिखे, तो बारह आना का लगान दण्‍ड भरना होता था :

ब्रजभूषण प्रसाद सिन्हा

गाजिबाद : मैंने वो जमाना देखा है।

एक बहुत धुँधली बहुत अस्पष्ट सी याददाश्त है। गांव में अंग्रेज बहादुर जमीन के लेखा जोखा पैमाइश लगान की औकात (ये शब्द सारगर्भित है, तब अंग्रेज बहादुर लगान की औकात तय करते थे जैसे आज जीएसटी का परसेंटेज है) का निरीक्षण करने आते थे। तब ऐसा लगता था कि गांव में मानो किसी परग्रही का हमला सा हो जाता था। शीशम का वजनी पलंग के ठीक ऊपर या फिर अंग्रेज-बहादुरों के आफिसों में उस पर मोटी कालीन और गिर्दा लगाके एक जना पंखा झलता था।

अंग्रेज बहादुर के पास निब वाला कलम और कांच की दवात होती थी। वो जब लिखता था तो एक आदमी दवात पकड़ के खड़ा होता था। कभी कभी दवात हिलती थी तो अंग्रेज बहादुर उसके चांटा कस देते। जमीदार उसे गालियों के साथ हिदायत देता। वो भी इस अत्याचार में हाथ बंटाता था। गांव के कुछ लोग विरोध करते थे जिन्हें बाद में 12आने की लगान का दंड भुगतना पड़ता था।

देश आजाद हुआ,जमीदार कांग्रेस में शामिल हुए गरीबों के रहनुमा बन गए,सिर्फ गरीबो की बातें करते एकदम देवता जैसे। अंग्रेज बहादुर का विरोध करने वाले आगे चलकर जनसंघी हुए।

आज जब कांग्रेस के नेताओं का आजादी में योगदान का गुनगुना गान सुनता हूँ तो उसी दृश्य की कुछ बारिख रेखाएं मस्तिष्क में उभर आती हैं जो दिन पर अंधेरे गर्त में जा रही हैं।

शायद मेरी चौथी पीढ़ी को पता न चलेगा कि आज के राजनीतिक कर्णधारों के पुरखे 100 साल पहले अंग्रेजो के जूते अपने हाथ उठाकर रखते थे।

( ब्रजभूषण प्रसाद सिन्हा बिहार सरकार के अधिकारी थे, सेवानिवृत्ति के बाद अब गाजियाबाद में बस गये हैं। )

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