मैं दान नहीं, तुम्हें,मोहब्बत के बंधन में बाँध रही हूँ

बिटिया खबर

कन्‍यादान पर अशोक त्रिपाठी की कविता बांचिये

” कन्यादान “

जाओ , मैं नहीं मानती इसे ,

क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,

जिसको दान में दे दूँ ;

मैं बांधती हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,

पति के साथ मिलकर निभाना तुम ,

मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रही ,

आज से तुम्हारे दो घर ,

जब जी चाहे आना तुम ,

जहाँ जा रही हो ,

खूब प्यार बरसाना तुम ,

सब को अपना बनाना तुम ,

पर कभी भी ,

न मर मर के जीना ,

न जी जी के मरना तुम ,

तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,

ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम ,

न तुम बेचारी , न अबला ,

खुद को असहाय कभी न समझना तुम ,

मैं दान नहीं कर रही तुम्हें ,

मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रही हूँ ,

उसे बखूबी निभाना तुम ……………..

(अशोक त्रिपाठी मूलत: बहराइच के पयागपुर वैनी गांव के रहने वाले हैं और फिलहाल बरेली में डाक विभाग में अधिकारी हैं।)

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