: सच के साथ थे मालवीय जी, जीते। बड़े वकील अपराधी संग थे, हार गये : वे हैसियत रखते हैं मुझे खत्म करने की, मगर आज मैं बोलूंगा जरूर : शाबाश जलज, तुमने वाकई कमाल कर दिया। वकील हो तो ऐसा : जलज गुप्ता ने ऐतिहासिक युद्ध छेड़ दिया बलात्कारी को सजा दिलाने में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : लखनऊ के बहुचर्चित आशियाना सामूहिक बलात्कार के संदर्भ में मैं आपके लिए कुछ तथ्य सौंप रहा हूं। यह मुकदमा है दुनिया में मशहूर रहे चौरी-चौरा काण्ड के मुकदमे का। इसी मामले में कोई 75 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ने वाले गोरी सरकार ने 170 विद्रोहियों को फांसी की सजा सुना दी थी। लेकिन उस दौर में महामना मदन मोहन मालवीय जी ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और उन सभी अभियुक्तों की पैरवी खुद की। नतीजा यह चला कि गोरी हुकूमत ने इनमें से 149 लोगों को फांसी की सजा से बरी कर दिया। इस मामले में सारा का सारा खर्चा महामना मालवीय जी ने ही जन-सामान्य से चंदा करके निपटाया। वजह यह कि मालवीय जी के पास वह साहस था, सत्य का आधार। लेकिन आशियाना सामूहिक बलात्कार काण्ड में प्रदेश के ख्यातिनाम वकीलों ने अपनी सारी ताकत लगा दी, लेकिन वे उस अभियुक्त को बचा नहीं सके। वजह यह कि यह वकील सत्य के धरातल पर थे ही नहीं। वे उस एक ऐसे घिनौने और कुकर्मी दुराचारी के पक्ष में पैरवी कर रहे थे, जिसे षडयंत्र-दर-षडयंत्र के चलते 11 साल पहले ही जेल के सींखचों के पीछे होना चाहिए था।
मैं जानता हूं कि जिन लोगों के बारे में यह लिखने जा रहा हूं वे उत्तर प्रदेश के खासी बडी और कद्दावर शख्सियत रखने वाले नामचीन वकील हैं। जाहिर है कि ऐसे वकीलों में इतनी हैसियत है ही, कि वे मुझे मेरी इस हिमाकत को खासा सबक सिखा सकें। वे कानून के माहिर व्याख्याता हैं, तर्क के महारथी हैं, प्रस्तुतिकरण में बेमिसाल हैं। लेकिन आज मैं बोलूंगा जरूर।
2 मई-05 को यह दर्दनाक सामूहिक बलात्कार हुआ लखनऊ के आशियाना इलाके में, जिसने अदब और तमीज के शहर की शर्म को ही कुचल डाला। आप आसानी से कल्पना कर सकते हैं कि 13 साल की उस गरीब बच्ची की क्या हालत कर दी होगी उन आधा दर्जन से ज्यादा दुराचारियों ने। सभी अपराधी पकड़े गये, लेकिन उनमें से एक युवक को उसके राजनीतिक रसूख के चलते जेल के बजाय किशोर-गृह में भेज दिया गया। बोर्ड ने उसे बालिग करने का आधार कई फर्जी कागजों को मान लिया। इतना ही नहीं, इसके 15 वें दिन ही किशोर न्यायालय बोर्ड ने उस युवक को नाबालिग करार देते हुए उसे उस शर्मनाक हादसे से बचाने की कोशिश कर ली। यह मामला लगातार सात साल तक चलता रहा। इस मामले में युवक की पैरवी की थी मशहूर वकील राकेश मृदुल ने। लेकिन इसके बाद इस पूरे मामले में गौरव शुक्ला की ओर से खड़े हुए ख्यातिनाम अधिवक्ता गोपाल नरायण मिश्र। श्री मिश्र जी बार काउंसिल के अध्यक्ष रह चुके हैं।
लेकिन इतनी बड़ी धाकड़ पैरवी के बावजूद गौरव शुक्ला का जो जघन्य अपराध जगजाहिर हो चुका था, वह अदालत में पूरी तरह कानूनी तौर पर भी सच हो गया और अदालत ने उस पर अपनी मंजूरी दे दी। गौरव शुक्ल अब जेल में हैं और अगले दस साल तक उसे जेल में ही रहना पडेगा। लेकिन जिस शख्स ने उस मासूम बच्ची को न्याय दिलाने का अभियान छेड़ दिया, उसका नाम अब तक कानून और अदालतों में तनिक भी चर्चित नहीं था। लेकिन उसके इंसाफ को समर्पित हौसलों और उस मासूम बच्ची को न्याय दिलाने की हरचंद कोशिश करने वाली जिजीविषा ने आज उसे जमीन से अचानक आसमान तक पहुंचा दिया है। वह भी बड़े-बड़े दिग्गज वकीलों के सामने। उसका नाम है जलज कुमार गुप्ता। इंदिरा नगर में दुर्बल आय वर्ग के मकान में रहने वाले जलज ने बिना किसी फीस के यह मुकदमा लड़ा और तमाम धमकियों, लालच और अड़चनों के सामने चट्टान की तरह ही अड़ा रहा। जलज की ख्वाहिश थी जज बनना। लेकिन पारिवारिक समस्याएं ऐसी आयीं कि उसका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। मगर आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए जज बनने का उसका जो संकल्प और उद्देश्य था, वह उसकी वकालत में लगातार किसी मजबूत जज्बे की तरह हिलोरें ले रहा है।
शाबाश जलज ! तुमने वाकई कमाल कर दिया। वकील हो तो ऐसा…
इसके बावजूद कि मालवीय जी के बाद से आज के वकीलों के बीच मूल्यों में गिरावट खासी दर्ज हुई है, जलज गुप्ता किसी उम्मीदों के चमकदार सितारे की तरह है। मुझे यकीन है कि आज न कल, हमारा अधिवक्ता समाज इस तथ्य को समझेगा कि वकालत में क्या उठान और गिरान की धाराएं चल रही हैं। यह सच है कि किसी भी अधिवक्ता का यह पहला दायित्व होता है कि वह किसी भी पीडि़त-वादी को न्याय दिलाये। लेकिन सवाल यह भी तो है कि जब एक व्यक्ति अपने पक्ष में झूठे कागज तैयार कराने वाला साबित हो चुका है, ऐसे में वकीलों में अपने दायित्वों के पुनर्विचार करने की जरूरत खड़ी हो जाती है।