बुजुर्गों को जंगल भेजा जाता है। ताकि शेर उन्‍हें खा जाए, और मुआवजा मिले

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: घने जंगलों वाले पीलीभीत में अफवाह-नुमा खबर पर लोगों में भारी आक्रोश : टाइम्‍स ऑफ इंडिया की खबर पर हंगामा, झूठी खबर छापने का आरोप : पीलीभीत के कलेक्‍ट्रेट पर आठ को प्रदर्शन होगा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक शख्‍स अपने परिवार के माता-पिता आदि बुजुर्ग को घने जंगल में इसलिए भेजता है, ताकि बाघ-शेर जैसा कोई जंगली जानवर उनका निवाला बन जाए। मकसद यह कि उनके मारे जाने पर उसके लिए तयशुदा मुआवजा की पूरी रकम मारे गये सदस्‍य के परिवारीजनों की जेब में चली जाएगी। यह एक खबर है।

लेकिन उससे भी बड़ी खबर यह है कि इस तरह की अमानवीय सोच और प्रवृत्ति से शिकार होने वाला कोई एक शख्‍स ही नहीं है। बल्कि नेपाल से सटे उत्‍तर प्रदेश के सीमान्‍त जिले पीलीभीत में रहने वालों में यह सोच गहरे तक धंसी-जमी हुई है।

लेकिन सबसे बड़ी खबर तो यह है कि इससे जुड़ी ऐसी एक खबर को पीलीभीत के लोग पूरी तरह फर्जी और मनगढ़ंत मान रहे हैं। लोगों का आक्रोश जंगल में आग की तरह भड़क गया है।

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पीत-पत्रकारिता से आतंकित पीलीभीत

दरअसल, पीलीभीत पूरी तरह जंगल से आच्‍छादित जिला है। रूहेलों की राजनीति का केंद्र जरूर रहा है यह जिला, लेकिन हमेशा से ही शांत स्‍वभाव के लोग रहे हैं यहां। विवादों, झगड़ों से सामान्‍य तौर पर दूर। इस जिले के जंगल से सटा एक बड़ा हिस्‍सा सिखों के कब्‍जे में हैं, जहां वे पिछले कई दशकों से यहां खेती करते रहे हैं।

लेकिन टाइम्‍स ऑफ इंडिया की इस खबर ने इस शांत जिले में कोई बड़ा भूडोल खड़ा कर दिया है। कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि यहां के लोग केवल चंद रूपयों की लालच में अपने परिवारी जनों को जंगल में भेजने पर बाध्‍य करते होंगे। वह भी इस लिए, कि जंगल में खूंख्‍वार जानवर उन का शिकार कर लें, और फिर उसके लिए मिलने वाला नियमित मुआवजा की रकम उन्‍हें मिल जाए।

हे राम।

स्‍थानीय नागरिक इस खबर पर खासे नाराज हैं, और वे इस मसले पर जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन करने जा रहे हैं। यह प्रदर्शन आठ जुलाई को होगा।

जी हां, जंगल की आग के बारे में आपने खूब सुना होगा। लेकिन टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने दो दिन पहले एक खबर छापी, तो घने जंगलों से घिरे यूपी के पीलीभीत में आग लग गयी। यह आग जन-आक्रोश के रूप में है। वजह है टाइम्‍स आफ इंडिया। इतना ही नहीं, इस अंग्रेजी अखबार के स्‍थानीय संवाददाता और इस खबर के तर्क बुनने वाले शख्‍स पर भी यहां के लोगों की भृकुटि तनी हुई है, जिन्‍होंने वन्‍य जगत में अपने आप को सबसे बड़ा आधिकारिक प्रवक्‍ता समझ लिया था।

दरअसल, पिछली चार जुलाई के अंक में टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्‍करण ने एक सनसनीखेज खबर छापी। इस पर लोगों का आक्रोश भड़क गया। खबर का शीर्षक था:- `मुआवजे के लिए, वरिष्ठ नागरिकों को बाघों के शिकार के रूप में भेजा गया ‘

यह खबर लिखी इस अखबार के स्‍थानीय रिपोर्टर केशव अग्रवाल ने। खबर में लिखा था कि:- पीलीभीत टाइगर रिजर्व (पीटीआर) की सीमाओं के गांवों में एक अजीब प्रवृत्ति होती है। अधिकारियों को संदेह है कि स्थानीय परिवार जंगल में पुराने सदस्यों को शेर शिकार के रूप में भेज रहे हैं, और उनके शरीर फिर से खेतों में स्थानांतरित कर रहे हैं, हमलों का आह्वान करने और सरकार से मुआवजे में लाखों का दावा करने के लिए।

बुजुर्गों पर हाल ही में घातक बाघों के हमले की एक स्ट्रिंग हुई है, जिसमें से सात मौतों की रिपोर्ट फरवरी 16 के बाद से अकेले माला वन क्षेत्र की निकटता में हुई है। क्षेत्र में बाघों के हमलों की जांच करते समय एक केंद्रीय सरकार की एजेंसी, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) के कलीम अतहर की रिपोर्ट के हवाले से निष्कर्ष पर पहुंची। अथर ने पीटीआर के आसपास बाघ के हमलों की जांच की, व्यक्तिगत मामलों, शरीर की स्थिति और स्थानीय लोगों के खातों की जांच की। “ब्यूरो के अधिकारियों ने आगे की कार्रवाई के लिए इस मामले को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को सौंपने का फैसला किया है।”

जाहिर है कि इस खबर से हंगामा खड़ा हो गया। सपा के नेता हेमराज वर्मा के नेतृत्‍व में इस जन-आक्रोश को बटोर कर उसे मूर्त रूप देने की तैयारी चल रही है।

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