अर्णब जानता था कि जीजा हैं कोतवाल, फिर डर काहे का

मेरा कोना

: न पीएमओ के छिछोरेपन पर अचरज आ रहा है, और न ही महाराष्‍ट्र की सरकार अथवा पुलिस की सक्रिय पर : अर्णब समझ चुका था कि जीजा हैं कोतवाल, फिर डर काहे का : अर्णब-कांड- एक

कुमार सौवीर

लखनऊ : बालाकोट एयर-स्‍ट्राइक की पूर्व-सूचना थी अर्णब गोस्‍वामी के पास, तो इसमें आश्‍चर्य की क्‍या बात है। होने को तो यह भी हो सकता है कि पुलवामा कांड के पहले ही उस हादसे की रणनीति और क्रियाविधि की जानकारी भी अर्णब के पास रही हो। अर्णब की प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ में निर्बाध और निरन्‍तर आवाजाही की खबर भी अब चौंका देने वाली नहीं बची है। इस पर भी कोई अचरज की बात नहीं हो सकती है कि केंद्र सरकार के मोदी, अमित शाह जैसे दिग्‍गजों और भाजपा अध्‍यक्ष जैसे लोगों के साथ अर्णब गहरी डील कराया करता था।

हां, अचरज इस बात पर भी नहीं हो रहा है कि महाराष्‍ट्र की पुलिस ने अर्णब गोस्‍वामी के वाट्सएप को खंगाल डाला। इतना ही नहीं, इस पर भी हैरत नहीं है कि पुलिस ने उसके वाट्सएप की जानकारी प्रेस तक पहुंचा दिया। यह भी आश्‍चर्यजनक नहीं है कि हिन्‍दी और खास कर राष्‍ट्रवादी चैनलों और अखबारों ने अर्णब की करतूतों का खुलासा करने में अपने हाथ सिकोड़ लिया और उसकी खबर को दबाने की कुत्सित करतूत कर डाली। इस पर भी हैरत की बात नहीं है कि अर्णब गोस्‍वामी के वाट्सएप ने अपने दलालों, मंत्रियों और बिजनेस-कारिंदों की चैट को अपने पास क्‍यों सुरक्षित रखा।

उपरोक्‍त सवालों की एक वजह है। पहली बात तो यह कि पुलिस ने कोई महान काम नहीं कर दिखाया है। पुलिस का चरित्र ही अपने रिंग-मास्‍टर की उंगलियों के इशारे में नाच-नचउव्‍वरी करना होता है। आप देख लीजिए। सपा सरकारों के दौरान महिलाओं के साथ जितने घिनौने बलात्‍कार, हत्‍या वगैरह के मामले हुए, वे सरकार के इशारे पर ही पुलिस ने दबाया। चाहे वह मोहनलालगंज के प्राथमिक विद्यालय में 17 सितम्‍बर-14 को एक महिला की रक्‍त-रंजित लाश का मामला रहा हो, या फिर शाहजहांपुर में पत्रकार जागेंद्र सिंह को मिट्टी का तेल डाल कर जिन्‍दा फूंक डालने का पैशाचिक कांड।

इन दोनों ही मामलों में सरकार की शह में पुलिस, अफसरशाही और एक घिनौनी दलाली में सर्वोच्‍च संलिप्‍त पत्रकार की सहायता से हादसे को ठण्‍डे बस्‍ते में डाल दिया था। और तो और, तब के मुख्‍य सचिव आलोक रंजन ने अपने मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की जानकारी में ही अपने दो कर्मचारियों को करीब ढाई महीनों तक पुलिस और एसटीएफ के अफसरों ने लखनऊ के विभिन्‍न थानों और कोतवालियों में अवैध रूप से बंद कर उन पर शैतानी-पिटाई करायी थी। हुआ यह था कि आलोक रंजन के बेटे की शादी में डेढ़ करोड़ का जो जडा़ऊ-हार उपहार में मिला था, उसकी चोरी हो गयी थी। चर्चाओं के अनुसार यह बहुमूल्‍य तोहफा या एक बड़े नौकरशाह ने अपने मुख्‍य सचिव को खुश करने के लिए दिया था, जो अब अपर मुख्‍य सचिव के पद पर तैनात हैं। या फिर एक बड़े बिल्‍डर ने यह तोहफा अपनी कम्‍पनी को मुख्‍य सचिव मनमाफिक रिश्‍ता बनाये रखने के लिए थमाया था। ऐसी हालत में महाराष्‍ट्र की पुलिस ने अगर अपने राजनीतिक आकाओं की शह में अर्णब की खाल उतार कर उसमें भूसा भरने का अभियान छेड़ दिया है, तो इसमें चौंकने का कोई औचित्‍य नहीं बनता है।

पुलिस ने अर्णब के वाट्सएप को खंगाल कर उसे मीडिया तक थमा दिया था, तो भी कोई दिक्‍कत नहीं। जैसे यूपी, एमपी और बिहार आदि भाजपा-नीत सरकारें विपक्ष की खबरों को तनिक भी तवज्‍जो नहीं दे रही हैं, और अपनी गोदी-सरकार के प्रेस-नोट को रिपोर्टिंग के तौर पर पेश कर रही है। अर्णब ने अपने धंधों से जुड़े लोगों के वाट्सएप को सुरक्षित इसलिए रखा था, कि वह जरूरत पड़ने पर उन पर मनमाफिक दबाव बना सकें, दलाली कर सकें, ब्‍लैकमेल कर सकें।

बस आश्‍चर्य की बात सिर्फ यह है कि अपने वाट्सएप का रिकार्ड अर्णब ने अपने मोबाइल पर क्‍यों सुरक्षित बनाये रखा। इसी आधार पर यह तय हो सकता है कि अर्णब या तो परले दर्जे का मूर्ख है, या फिर इतना बेमिसाल गुंडा की तरह दादागिरी की तर्ज पर दबंग है जो मानता है कि अपनी केंद्र सरकार और भाजपा के राजनीतिक नेतृत्‍व में इतना सशक्‍त बन चुका है, जिसके बल पर वह चाहे कुछ भी हो जाए, उस पर कोई भी आंख तरेरने की औकात नहीं जुटा पायेगा।

लेकिन इसी अपने अति‍विश्‍वास के चलते ही अर्णब गोस्‍वामी पूरी तरह नंगा हो गया। और सिर्फ अर्णब ही नहीं, बल्कि उसने राष्‍ट्रवादी मीडिया को भी पूरी तरह अविश्‍वसीय तरीके से सर्वांग नंगा कर डाला।

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